1-माँ से कुछ बातें
सत्या शर्मा ‘कीर्ति’ ( राँची)
सत्या शर्मा कीर्ति |
माँ कहनी है तुमसे कुछ अनकही- सी बातें
कई बार चाहा कह दूँ तुमसे हर वो बात
पर कहाँ था वक्त तुम्हारे पास
तुम भागती रही सफलता और
शोहरत के पीछे
और मैं अकेली ही उलझती रही
तुम्हें समझने में ,
जाने कितनी रातें तुम्हें पकड़ कर
सोने के लिए मचली हूँ मैं
जाने कितने गीले तकिये गवाह हैं
मेरे अकेलेपन का
जानें कितनी अँधेरी डरावनी रातें
सिर्फ तुम्हारे मौजूदगी के एहसास से
लिपट कर गुज़ारी हैं ।
बहुत ढूँढा तुम्हें माँ
जब बचपन बदल रहा था यौवन में
समझनी थी कितनी अनसुलझी -सी बातें पर ...
नारी स्वतंत्रता की पथगामिनी तुम
देती रही भाषण , लिखती रही लेख
उन्ही लेखों का प्रश्न चिह्न (?)थी मैं
माँ तुम्हारे ही कोख से जन्मी
तुम्हारी पुचकार से दूर
तुम्हारी ममतामयी गोद से महरूम
थपकियों के एहसास से परे
माँ द्वारा दी जाने वली सीख से जुदा
ढूँढती रही कार्टूनों और नेट की दुनिया में
कई बार चाहा कह दूँ तुमसे हर वो बात
पर कहाँ था वक्त तुम्हारे पास
तुम भागती रही सफलता और
शोहरत के पीछे
और मैं अकेली ही उलझती रही
तुम्हें समझने में ,
जाने कितनी रातें तुम्हें पकड़ कर
सोने के लिए मचली हूँ मैं
जाने कितने गीले तकिये गवाह हैं
मेरे अकेलेपन का
जानें कितनी अँधेरी डरावनी रातें
सिर्फ तुम्हारे मौजूदगी के एहसास से
लिपट कर गुज़ारी हैं ।
बहुत ढूँढा तुम्हें माँ
जब बचपन बदल रहा था यौवन में
समझनी थी कितनी अनसुलझी -सी बातें पर ...
नारी स्वतंत्रता की पथगामिनी तुम
देती रही भाषण , लिखती रही लेख
उन्ही लेखों का प्रश्न चिह्न (?)थी मैं
माँ तुम्हारे ही कोख से जन्मी
तुम्हारी पुचकार से दूर
तुम्हारी ममतामयी गोद से महरूम
थपकियों के एहसास से परे
माँ द्वारा दी जाने वली सीख से जुदा
ढूँढती रही कार्टूनों और नेट की दुनिया में
माँ वाला
प्यार...
अभी भी कहनी है तुमसे कुछ बातें ...
-0-
अभी भी कहनी है तुमसे कुछ बातें ...
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2-कलम
डॉ मधु त्रिवेदी ( आगरा)
सूरज की पहली किरण के साथ
कुछ कहने को कुछ लिखने को
लालायित मैं उत्साहित हो उठी
पर कलम चुप थी
कुछ कहने को कुछ लिखने को
लालायित मैं उत्साहित हो उठी
पर कलम चुप थी
कुछ दुनियादारी के बोझ तले
मैं
कुछ अप्रकट अहसासों में दबी मैं
अशांत भावनाओं के वेगों में घटी
पर कलम चुप थी
कुछ अप्रकट अहसासों में दबी मैं
अशांत भावनाओं के वेगों में घटी
पर कलम चुप थी
कुछ खोज रही थी शून्य में
ताकते
जा टिकी दृष्टि पास पड़े अखबार पे
शुरू स्याही बद्ध तथ्यों का मंथन
पर कलम चुप थी
जा टिकी दृष्टि पास पड़े अखबार पे
शुरू स्याही बद्ध तथ्यों का मंथन
पर कलम चुप थी
नेह -भरी कोमल यादों का चिंतन
अपना -सा कहने बाले शब्दों का जादू
शुरू उद्वेगों का मचलकर उठना
पर कलम चुप थी
अपना -सा कहने बाले शब्दों का जादू
शुरू उद्वेगों का मचलकर उठना
पर कलम चुप थी
शब्द भी सिहरकर सिसकने को बेताब
आँसू रोकर कहने को हाल -बेहाल
भावना के वेग में अज्ञात दोहराए पर
पर कलम चुप थी ।
आँसू रोकर कहने को हाल -बेहाल
भावना के वेग में अज्ञात दोहराए पर
पर कलम चुप थी ।
-0-
सत्या शर्मा जी की सुंदर रचना माँ की तलाश का सत्य , प्रश्न मार्मिक है .
ReplyDeleteमधु जी ने कलम पर मार्मिक , पीड़ा की मनोहारी अभिव्यक्ति की है .
आप दोनों को हार्दिक बधाई
सत्या जी ह्रदय को छूने वाली मार्मिक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteमधु जी बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई
ReplyDeleteसत्या जी बहुत सुन्दर मार्मिक रचना।
ReplyDeleteमधु जी हुत सुन्दर अभिव्यक्त।
आप दोनों को बहुत बधाई!
Bahut marmik komal bhavon se lipti rachnayen sochne par majbur karti hain hardik badhai svikaren...
ReplyDeleteसत्या जी...दिल को बींध गई आपकी रचना...बहुत बधाई...|
ReplyDeleteमधु जी, बहुत मर्मस्पर्शी रचना...| बधाई स्वीकारें...|
ReplyDeleteसत्या जी."माँ से कुछ बातें" छिपी व्यथा , कसक , छटपटाहट पीड़ा को पाठक के मन में सहज ही उतारनें की एक अनोखी क्षमता रखती है
मार्मिक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई!!!
कलम की चुप्पी बहुत कुछ कह गई मधु जी... भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई!!!
मर्म को छूती हुयी रचना ...
ReplyDeleteAs usual शानदार पोस्ट .... Bahut hi badhiya .... Thanks for this!! :) :)
ReplyDeleteसत्या जी "माँ से कुछ बातें" और मधु जी की "कलम"नामक कवितायें बहुत बेतरीन हैं आप दोनों को हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteनारी स्वतंत्रता की पथगामिनी तुम
ReplyDeleteदेती रही भाषण , लिखती रही लेख
उन्ही लेखों का प्रश्न चिह्न (?)थी मैं।
ओहो! बहुत मार्मिक विश्लेषण बाल भावनाओं का ।
डॉ मधु त्रिवेदी जी की कलम रचना अच्छी लगी।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक ...बाल मन की पुकार ...'माँ से कुछ बातें ' ..अनुपम !
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ..'कलम' !
दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई ..