गीत
सुनीता काम्बोज
चौदह वर्षों बाद राम जी,लौट अवध में आए थे
अवधवासियों ने खुश होकर ,घी के दीप जलाए थे ।
कार्तिक की अमवस्या का दिन,पावन बड़ी दिवाली है
कहते इस दिन घर आते ये ,धन वैभव खुशहाली है ।
इस दिन हरि ने नरसिंह बनकर ,सारे पाप मिटाए थे
अवधवासियों ने खुश होकर ,घी के दीप जलाए थे ।
साँझ ढले सब दीप जलाकर ,लक्ष्मी पूजन करते हैं
जगमग दीपक तम से लड़कर,अंधकार को हरते हैं ।
त्योहारों की इस खुशबू ने घर आँगन
महकाए थे
अवधवासियों ने खुश होकर ,घी के दीप जलाए थे ।
गली - गली सब द्वार सजाते ,अदभुत बड़े नजारें हैं
ऐसा लगता आज धरा पर ,उतरे सभी सितारें हैं ।
छट गए अब वो धीरे धीरे,जो घन काले छाए थे
अवधवासियों ने खुश होकर ,घी के दीप जलाए थे ।
सुन्दर एवम सामयिक गीत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई ! - सुभाष चंद्र लखेड़ा
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ReplyDeleteसुंदर सरस गीत रचना सुनीता जी ।कम शब्दों में दीपावलि की कथा कह गई । बधाई एवं बहुत सारी शुभकामनायें दीपावलि की । सभी सहज साहित्य के रचना कारों और पाठकों को दीवाली शुभ और मंगलमय हो ।दीपावलि से शुरू होने वाला नव वर्ष विश्व में अमन शान्ति लाये यही कामना है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत सुनीताजी
ReplyDeleteसुंदर सरस गीत,बधाई सुनीता जी।
ReplyDeleteमनभावन
ReplyDeleteराम जी पर सुंदर , सरस गीत प्रिय बहन सुनीता !
ReplyDeleteआपको हार्दिक बधाई !
सुंदर सरस गीत सुनीता जी...बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना सुनीता जी ...बहुत बधाई !
ReplyDeleteसादर आभार आप सबका
ReplyDeleteबहुत सरस-मधुर गीत है...हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteसुनीता जी दीपावली के अवसर पर रचा बहुत मधुर गीत है हार्दिक बधाई |
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