डॉ.कविता भट्ट
सूरज को नमन संसार करता है,
हम साहसी जुगनू के मतवाले हैं।
जले तो इसका प्यार संवरता है,
इसी से तो आशा के उजाले हैं।
हारता नहीं, हर बार निखरता है,
सराहते नहीं, जिनके मन काले हैं।
धीमी सही, एक झंकार भरता है,
प्रकाश- पुंज और रंग तो निराले हैं।
मन जुगनू- स्वप्न लिये फिरता है,
इसने कितने ही बादशाह पाले हैं।
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