रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1सेदोका
1
लो
शाम हुई
भोर के स्वप्न
मरे
दोपहर रो
पड़ी,
प्यार खो
गया
धूल भरी आँधियाँ।
नीड
तोड़ती गई ।
[कैनेडा-3-40 अपराह्न-24 जुलाई-2014;भारतीय
समय: 25 जुलाई पूर्वाह्न 1-10 बजे,माता जी की मृत्यु से 10 मिनट
पहले]
-0-
मुक्तक
1
सूरज की किरनों का जग में व्यापार नहीं होता ।
अपनेपन से बढ़कर रिश्तों का सार नहीं होता
।
जिसको चाहा दो
पल उसको सब कुछ करना अर्पण
बदले में कोई कुछ माँगे , वह प्यार नहीं होता
।।
2
बोझ ज्ञान का ढोकरके कोई गुणवान् नहीं बनता
,
जड़े खोदकर औरों की नेक इंसान नहीं बनता ।
सारा जीवन जिया है जिसने केवल अपनी खातिर ,
है अभिशाप का
रूप वह ,कभी वरदान नहीं
बनता ।।
(16 अगस्त-14)
-0-
माँ से बढ़कर इस जीवन में कुछ भी नहीं |किन्तु एक दिन सभी को ईश्वर के पास जाना ही है ,यही सोच कर तसल्ली करना पड़ती है |ईश्वर माँ की आत्मा को शांति प्रदान करें व आप सभी को यह दुख सहने की क्षमता प्रदान करें !!इस दुख की कठिन घड़ी में मैं आपके साथ हूँ भैया !!
ReplyDeleteMAA KI JAGAH KOE NAHI LE SAKTA PAR SAMAY PE HAMAARA KOE VASH NAHI HAI MAATAA JEE KO SADAR VINARAM SHRADHAANJALI EVAM AAPKEE KARMATHATAA AUR DHAIRY KO NAMAN.
ReplyDeleteसृजन तो माँ ही करती है . माँ के उन बिछुड़ते पलों में आपके गहरे भावों का चितन पढ़ मेरे आंशु निकल पड़े . ईश आपको दुःख सहने की शक्ति दे .
ReplyDeleteभाई उन्हें मेरा मौन नमन , हार्दिक श्रद्धांजलि.
अादरणीय रामेश्वर जी,
ReplyDeleteबहुत दुख हुअा माता जी के विषय मे जानकर, ईश्वर उनकी अात्मा को शांति प्रदान करें अौर अपको एवं समस्त परिवार को धैर्य प्रदान करें !
सादर
मंजु
ओह ईश्वर उनकी अात्मा को शांति प्रदान करें अौर अपको एवं समस्त परिवार को धैर्य प्रदान करें तथा इस दुःख को सहने की शक्ति दें , माँ से बढ़कर कुछ नहीं जब वह साथ छोडती है तो बहुत दुःख होता है ....:(
ReplyDeleteमां से बढ़कर कोई नहीं, मां को खोने का दुख सब से बड़ा दुख है। भगवान आप को सहनशक्ति दें और माता जी की
ReplyDeleteआत्मा को शांति प्राप्त हो।
--------प्यार खो गया
धूल भरी आँधियाँ।
नीड तोड़ती गई । ............... किस प्रकार मन की तहें जिन्दगी के सत्य पहचान लेती है।
सादर श्रद्धांजलि !
ReplyDeleteमन भर आया। :((
ReplyDeleteमाता-पिता की जगह कोई ले भी नहीं सकता। आपके दिल ने उदास होकर आपको अहसास दिला दिया... इस बेहद दुखभरी घटना का। पूज्यनीय माता जी को सादर श्रद्धांजलि। ईश्वर आप सभी को यह दुःख सहने की शक्ति दे... हालाँकि बोलना बहुत आसान है, जिसपर बीतती है...वही इस कष्ट को समझ सकता है।
आप धैर्य रखियेगा भैया जी। हम सभी बहनें आपके साथ हैं।
मुक्तक के भाव भी बहुत ही सच्चे , दिल से निकले हुए हैं। सचमुच! प्यार से बड़ा कोई धन नहीं। अपनेपन का कोई मोल नहीं।
~सादर
अनिता ललित
एक माँ के जाने से सच में लगता है जैसे पूरा आशियाना ही ढह गया हो...| ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे...| उनकी यादें ही अब धरोहर के रूप में सहेजी जा सकती हैं, बस...|
ReplyDeleteमुक्तक मर्मस्पर्शी हैं...|
आपके विदेश प्रवास के दौरान ही माता जी का सदा के लिए चला जाना, बेहद कष्टदायी समय रहा. जीवन जितना बड़ा सच है मृत्यु भी, और यह अवश्यम्भावी है, फिर भी मन इसे स्वीकारता नहीं. यही नियति है और इसे स्वीकार करना ही होता है.
ReplyDeleteलो शाम हुई
भोर के स्वप्न मरे
दोपहर रो पड़ी,
प्यार खो गया
धूल भरी आँधियाँ।
नीड तोड़ती गई ।
बेहद मार्मिक रचना.
man ko bhigone wali rachna....bhavishya mein kuch hone ka andesha..aapko ho gaya tha bhaisahab...ye man ki peer prem ki adhikta ka sakshy hai ...sadar shrddhanjli .
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