सीढ़ियाँ गवाह हैं
...
कमला निखुर्पा
ये खेतों की सीढ़ियाँ गवाह हैं ...
एक ही साँस में,
जाने किस आस में....
पूरा पहाड़ चढ़ जाती पहाड़न के पैरों
की बिवाई को ...
रोज छूती हैं ये सीढ़ियाँ खेतों की ...
ये गवाह है -पैरों में चुभते काँटों
की ....
माथे से छलकती बूँदों की ...
जिसमें कभी आँखों का नमकीन पानी भी मिल जाता है ....
ढलती साँझ के सूरज की तरह...
किसी के आने की आस की रोशनी भी ....
पहाड़ के उस पार जाकर ढल जाती है...
रोज की तरह ...
धूप भी आती है तो मेहमान की तरह
...कुछ घड़ी के लिए ..
पर तुम नहीं आते ...
जिसकी राह ताकती हैं ,रोज ये सीढ़ियाँ खेतों की ...
जिसकी मेड़ पर किसी के पैर का एक
बिछुवा गिरा है ...
किसी के काँटों बिंधे क़दमों से एक
सुर्ख कतरा गिरा है ...
कितनी बार दरकी है... टूटी ह ये सीढ़ियाँ खेतों की ...
वो पीढ़ियाँ शहरों की ....कब जानेंगी ?
!!!!
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Kamla ji … This is a master piece … I am completely speechless… itni gahrayi bhavon me shabdon me …ek-ek pankti maano seedh hriday ko chhoo rahi ho. pahli baar jaana kavita padh kar bhi rongte khade ho sakte hain … bas … adbhut .. adbhut … adbhut !!!
ReplyDeleteसच! बहुत सुन्दर भाव !
ReplyDelete~कितनी मंज़िलों का पता होती हैं सीढ़ियाँ
कितनी बातों की गवाह होती हैं सीढ़ियाँ ....~
~सादर
अनिता ललित
वाह, अद्भुत शब्द रचना
ReplyDeleteकितनी बार दरकी है... टूटी ह ये सीढ़ियाँ खेतों की ...
ReplyDeleteवो पीढ़ियाँ शहरों की ....कब जानेंगी ?
सारा दर्द छलक गया इन पंक्तियों में...बहुत मर्मस्पर्शी रचना है...| बधाई कमला जी...|
आभार आप सभी का ... मेरी टूटी फूटी सी रचना आपको भा गई | सादर कमला
ReplyDeleteएक तपस्या को कहती .. बहुत सशक्त , सुन्दर रचना ...बहुत बधाई कमला जी !
ReplyDeleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
sundar rachna .....badhai kamla ji
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