रामेश्वर
काम्बोज ‘हिमांशु’
1
घर-द्वार सभी छूटा
सपनों-सा पाला
संसार यहाँ लूटा ।
2
आँखों में आ घिरता
चन्दा -सा माथा
अब सपनों में तिरता ।
3
भावों में पलते हो
बस्ती के दीपक !
रजनी भर जलते हो ।
4
सागर तर जाएँगे
पर इतना बोलो-
तुमको कब पाएँगे ?
-0-
बहुत बहुत खूबसूरत भाव व अभिव्यक्ति !
ReplyDelete~सादर!
waah bahut sundar hai sabhi ...hardik badhai aapko himanshu ji
Deleteसुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteसागर तर जाएँगे
ReplyDeleteपर इतना बोलो-
तुमको कब पाएँगे ?
क्या बात है .....!!
जवाब देने की कोशिश .....
कौन रोक पायेगा
जन्मों का है मेल
सजन आओ तो सही
सागर तर जाएँगे
ReplyDeleteपर इतना बोलो-
तुमको कब पाएँगे ?...बहुत भावपूर्ण
सादर बधाई !!
लेखनी ने गागर में सागर भर दिया .
ReplyDeleteबधाई .
सुन्दर भाव बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावों से परिपूर्ण ,मधुर माहिया ...बहुत बधाई !
ReplyDeleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
आपके माहिया तो दिल में उतरते चले गए ।
ReplyDeleteनि:शब्द कर दिया है । लाजवाब प्रस्तुति !
बधाई !!
सागर तर जाएँगे
ReplyDeleteपर इतना बोलो-
तुमको कब पाएँगे ?
वाह! सभी माहिया सुन्दर किन्तु यह विशेष लगा| बधाई|
सागर तर जाएँगे
ReplyDeleteपर इतना बोलो-
तुमको कब पाएँगे?
बहुत खूबसूरत भाव। उमदा माहिया..बहुत बधाई।
सागर तर जाएँगे
ReplyDeleteपर इतना बोलो-
तुमको कब पाएँगे ?
bhaiya itna sunder bhav ki kya kahun
घर-द्वार सभी छूटा
सपनों-सा पाला
संसार यहाँ लूटा
uf kitna khoob kaha hai
bhaiya bahut bahut badhai
rachana
अति उत्तम सुन्दर भावों से ओत- प्रोत ,मधुर माहिया ...बहुत आनंद आया ! आपको हार्दिक बधाई !
ReplyDelete- सुभाष लखेड़ा
सागर तर जाएँगे
ReplyDeleteपर इतना बोलो-
तुमको कब पाएँगे
वाह भाई साहब क्या बात । कितने सुन्दर भाव हैं......... हार्दिक बधाई।
सागर तर जाएँगे
ReplyDeleteपर इतना बोलो-
तुमको कब पाएँगे ?
दिल को छू गया...| बहुत ही प्यारा लगा...|
बहुत आभार और बधाई...इतनी खूबसूरत प्रस्तुति के लिए...|
प्रियंका
सभी माहिया में गहरे भाव. ये बहुत ख़ास लगा...
ReplyDeleteसागर तर जाएँगे
पर इतना बोलो-
तुमको कब पाएँगे ?
इस 'तुमको' में कोई ईश, प्रीत या कोई अपना या सपना... सब शामिल है. बहुत खूब, बधाई भैया.
घर-द्वार सभी छूटा
ReplyDeleteसपनों-सा पाला
संसार यहाँ लूटा
Bahut gahan abhivyakti haiसपनों-सा पाला
संसार यहाँ लूटा bahut achchhi lagi ye upama...bahut2 badhai...
बेहद अफ़सोस है कि २३ को मैंने जयपुर के लिए उड़ान भरी और आपने यहाँ ये बेहद खूबसूरत माहिया प्रकाशित किए अत: इन्हें बहुत विलंब से पढ़ रही हूँ। हर माहिया भावों की निर्झरिणी है । अत्यंत मनभावन अत्यंत ह्रदयस्पर्शी -
ReplyDeleteभावों में पलते हो
बस्ती के दीपक !
रजनी भर जलते हो ।
नमन आपके सृजन और साहित्य साधना को !