दोहे
रामेश्वर
काम्बोज ‘हिमांशु’
1
महल बेहया हो गए , करते हैं परिहास । ।
2
दीमक फ़सलें चट करें ,घूम
-घूम घर द्वार ।
गाँव- नगर लूटे सभी, लूटे
सब बाज़ार । ।
3
इज़्ज़त लुटी गरीब की , लूट
लिया हर कौर ।
डाकू तो बदनाम थे , लूटे कोई और । ।
4
पोथी से डरकर छुपा , जेबों में कानून ।
जिसकी जेबें हों भरी ,
उसको चढ़े जुनून । ।
कर्ज़ चढ़ा हल तक बिका, बिके
खेत खलिहान ।
दो रोटी की भूख थी, सिर्फ़
बचा अपमान । ।
-0-
मार्मिक पंक्तियाँ....कटु सत्य
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया दोहे लगे आपके। पहला कुटिया वाला तो दिल को छू गया। बधाई !
ReplyDeleteकौन दिशा मन आस हो, सच में डूबा हाल,
ReplyDeleteहर दिन निर्णय खींचते, हैं समाज की खाल।
मार्मिक वर्णन ! लेकिन...कड़वा सच ! :(
ReplyDelete~सादर !
कुटिया रोई रात भर , ले भूख और प्यास ।
ReplyDeleteमहल बेहया हो गए , करते हैं परिहास । ।
क्या बात है .....!!
बहुत ही बढ़िया ......
डाकू तो बदनाम थे , लूटे कोई और
बिलकुल सही अब डाकुओं की जरुरत ही क्या घर-घर डाकू बैठे हैं .....
बेहद सटीक और मार्मिक चित्रण ....!!
कुटिया रोई रात भर , ले भूख और प्यास ।
ReplyDeleteमहल बेहया हो गए , करते हैं परिहास । ।
मर्मस्पर्शी...सच्चाई कहते सभी दोहे बहुत अच्छे...सादर बधाई!
सभी दोहे कटु यथार्थ का वर्णन करते हैं .पहला दोहा मनको छू गया .
ReplyDeleteआज के हालात का सच बताते दोहे .... देश के सर्वेसर्वा ही डाकू बने हुये हैं .... दीमक बन देश को ही चाटते जा रहे हैं .... सार्थक दोहे
ReplyDeleteकटु सत्य..सार्थक और समसामयिक हैं...
ReplyDeleteयथार्थ कितना कडवा हो सकता है, इन्हें पढ़ कर तो पूरी सामाजिक,प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर शंका हुई | धन्यवाद आपका |
ReplyDeleteबहुत मार्मिक...हार्दिक आभार और बधाई...।
ReplyDeleteप्रियंका
डाकू तो बदनाम थे , लूटे कोई और
ReplyDeleteyahi to ho raha hai kare koi bhare koi
कुटिया रोई रात भर , ले भूख और प्यास ।
महल बेहया हो गए , करते हैं परिहास ।
jis din mahal ko samajh aajayegi sare kasht hi dur ho jayenge
bahut khoob
badhai
rachana
मार्मिक सत्य । आज के युग की कटु तस्वीर
ReplyDeleteबहुत भावात्मक दोहे।
ReplyDeleteकुटिया रोई रात भर...बहुत खूब।
बहुत ही सटीक और भावपूर्ण दोहे ...बहुत कुछ सोचने को मजबूर करते हैं !
ReplyDeleteबधाई हिमांशु जी !
कुटिया रोई रात भर , ले भूख और प्यास ।
महल बेहया हो गए , करते हैं परिहास । ।
डॉ सरस्वती माथुर
बहुत अच्छे दोहे हैं काम्बोज जी, आपको बधाई ।।।
ReplyDeleteक्या आप रोहिणी में रहते हैं, कहिएगा
बेहद शानदार लाइनें हैं...सही में
ReplyDeleteदीमक फ़सलें चट करें ,घूम -घूम घर द्वार ।
ReplyDeleteगाँव- नगर लूटे सभी, लूटे सब बाज़ार । ।
कमाल का अभिव्यक्त किया गया कौशल है जहां शब्द सुर और ताल में प्रवाहमान होकर रक्स कर रहे हैं॥सभी दोहे ...सुंदर, नगीनेदारी, कौशल को स्पर्श कर रहे हैं....बधाई
आ. हिमांशु जी ,सभी दोहे बहुत सटीक और समसामयिक हैं ,बहुत -बहुत बधाई ..... आपको और आपके परिवार को दीपावली की अनंत मंगलकामनाएँ ........
ReplyDeleteह्रदय के दर्द को बहुत ही सशक्त ढंग से प्रस्तुत किया है आपने इन दोहों के माध्यम से ...
ReplyDeleteकुटिया रोई रात भर , ले भूख और प्यास । महल बेहया हो गए , करते हैं परिहास ...
सच है महलों में रहने वाले बेहयाई की हद से पार हो गए हैं .... उनको किसी की भूख प्यास या तकलीफ से कोई फर्क नहीं पड़ता वे तो बस अपने सुखों के उपभोग में ही मगन हैं ....
सादर
मंजु
सभी दोहे सामयिक हैं संवेदनाओं से परिपूर्ण. आज के जीवन का सच जो मन को आहत करता है...
ReplyDeleteपोथी से डरकर छुपा , जेबों में कानून ।
जिसकी जेबें हों भरी , उसको चढ़े जुनून । ।
सभी दोहे बहुत अर्थपूर्ण, शुभकामनाएँ.
सामयिक सत्य को बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त किया है आपने ...कुटिया रोई रात भर ...से ...सिर्फ बचा अपमान तक की व्यथा कथा मर्म स्पर्शी है !!
ReplyDeletesundar...sundar....aur ati sundar.....
ReplyDeleteSabhi dohe eak se badhkar eak hai..
ReplyDeleteकर्ज़ चढ़ा हल तक बिका, बिके खेत खलिहान ।
दो रोटी की भूख थी, सिर्फ़ बचा अपमान । ।
is dohe men bahut teekshan kataaksh kiya hai jo taarefe kaabil hai ...hardik badhai...
apke dohe sarahniye hai, pratham aur pachva ati sunder
ReplyDeleteapke dohe bahut acche hai. Pratham aur pachva ati sunder.
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