पथ के साथी

Saturday, November 3, 2012

सुगन्ध छुपी, ( हाइकु)


रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1
क्षय -पीड़ित
हुआ नील गगन
साँसें उखड़ीं ।
2
तन झुलसा
घायल सीने का भी
छेद बढ़ा है ।
3
कड़ुवा धुँआ
लीलता रात-दिन
मधुर साँसें ।
4
सुरभि रोए
प्राण लूट ले रहीं
विषैली गैसें ।
5
वसुधा -तन
रोम- रोम उतरा
विष हत्यारा ।
6
सुगन्ध छुपी,
पहली वर्षा में जो
दुर्गन्ध उड़ी ।
7
दुर्गन्ध बने
घातक रसायन
माटी  मिलके ।
8
गुलाब दुखी
बिछुड़ी है खुशबू
माटी हो गया ।
9
घास  जो जली
धरा गोद में पली
गौरैया रोए ।
-0-


6 comments:

  1. सच है ..
    प्रकृति का हाल..
    बेहाल है

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  2. bahut acche baaw sabhi hiku ke ....

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  3. बहुत ही सुन्दर क्षणिकायें..

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  4. बहुत ही सही चित्रण आजकल के दूषित वातावरण का...~सभी हाइकू बहुत बहुत बढ़िया !
    सादर !

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  5. प्रदूषण की वजह से पर्यावरण कितना दूषित हो रहा है आपके हाइकु इस सामायिक समस्या को बाखूबी बता रहे हैं ।

    सुरभि रोए
    प्राण लूट ले रहीं
    विषैली गैसें ।

    गुलाब दुखी
    बिछुड़ी है खुशबू
    माटी हो गया ।

    गुलाब से खुशबू छिन गई है । अगर जल्दी इस तरफ ध्यान न दिया गया तो वो दिन दूर नहीं जब ये फुल खिलना ही बंद हो जाएँगे ।
    बहुत अच्छा संदेस दे रहे हैं आपके सभी हाइकु !
    हरदीप



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  6. http://internationalhindiconfrence.blogspot.in/

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