पथ के साथी

Thursday, July 14, 2011

चिन्ता करना

-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

चिन्ता करना
खुलते घोटालों की
रक्षा करना
सत्ता के दलालों की
आम आदमी
मरता मरने दो
अपराधी को
लॉकर भरने दो
भूखे तड़पें
उनकी फ़िक्र नहीं
अन्न सड़ाओ
गड्ढों में भरने दो
देश है रोता
तुम कभी न रोना
लाशों को देख
धीरज नहीं खोना
भाषण देना
खुछ भी न करना
छुप जाना तू
ऊँची कुर्सी के नीचे
बैठे रहना
अपनी आँखें मीचे
सारी बाधाएँ
खुद टल जाएँगी
जनता का क्या
यूँ ही जल जाएगी
चिथड़े उड़ें
तुझको क्या डर है
परमपापी !
तू सदा अमर है
जो सच बोले
अगवा करवा दो
गुण्डों के बल
उनको मरवा दो
खा लेना सब
स्वीकार नहीं लेना
डकार  नहीं लेना
-0-


11 comments:

  1. रामेश्वर जी ,
    कहाँ से लाते हो यह सच की स्याही ....
    और कलम में शक्ति ....
    आपकी कलम हमेशा सच लिखती है जो हम सब देख तो लेते हैं मगर बोलते नहीं |


    आम आदमी
    मरता मरने दो
    अपराधी को
    लॉकर भरने दो........

    दिल को छू गईं यह पंक्तियाँ !

    रामेश्वर जी यह दुनिया आप जैसे अच्छे इंसानों के विश्वास पर ही चल रही है|नहीं तो रब जाने साँस भी लिया जा सकता या नहीं ?

    मार्मिक रचना के लिए बधाई !

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  2. एक और प्रभावकारी कविता, अपने समय के कड़वे सच को उजागर करती हुई ! प्रजा भूख-प्यास से मरे, बम-धमाकों से या रेल दुर्घटनाओं में, सत्तासीन लोगों को इसकी क्या फिक्र ! सही लिखा है आपने-
    आम आदमी
    मरता मरने दो
    अपराधी को
    लॉकर भरने दो
    भूखे तड़पें
    उनका फ़िक्र नहीं
    अन्न सड़ाओ
    गड्ढों में भरने दो…

    वर्तमान की कटु सच्चाई को आपने शब्द दे दिए…

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  3. जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

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  4. जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

    आप का बलाँग मूझे पढ कर अच्छा लगा , मैं भी एक बलाँग खोली हू
    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/

    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.

    अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।

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  5. bhaiya kalam ho to aesi jisme bhara ho bhavo ka sagar shbdon ki patvar .aur is sahitya ki sarita me hum pathak gote lagate rahen.
    bahut sunder
    saader
    rachana

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  6. सही बात कही है सर इस कविता में.

    सादर

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  7. देश है रोता

    तुम कभी न रोना

    लाशों को देख

    धीरज नहीं खोना

    भाषण देना

    खुछ भी न करना

    बहुत सही लिखा है आपने, देश रोये तो रोये, लाशों के ढेर लगें तो लगें ... ये सिर्फ बयानबाजी के आलावा कुछ और नहीं करेंगे देश के लिए...

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  8. बहुत सुन्दर और प्रभाव शाली रचना है|सब कुछ हमारे सामने ही होता है
    किन्तु इतनी सफ़ाई से शब्दों में बाँध नहीं पाते|
    न तीर न तलवार
    न बन्दूक न हथियार
    फिर भी भीषण है वार
    वह है कलम का प्रहार|
    सादर
    ऋता

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  9. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा शनिवार (१६-०७-११)को नयी-पुरानी हलचल पर होगी |कृपया आयें और अपने विचार दें |आभार.

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  10. अक्षरश: सत्‍य कहा है आपने ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  11. देश है रोता
    तुम कभी न रोना
    लाशों को देख
    धीरज नहीं खोना....
    Sach kaha in logon ko kaya fark padta hai kisi ka bhai,kisi pati kisi ka pita,ya maa bahan na jaane kitne riste aaye din lashon ke dher ban jaate han riste toa am aadmi ke liye han na in logon ke liye to kursi,paisa hi sab kuch hai..aankh band karke sachai nigal jaana inki aadat ban chuki hai....

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