[आगे बढ़ो तुम पार अँधेरे के ।
दो क़दम दूर हैं द्वार सवेरे के॥]
मुस्कान तुम्हारीपीछे तो केवल छाया है
यही तुम्हारा सरमाया है ।
तुम अपनों को ढूँढ़ रहे हो
कोई साथ नहीं आया है ।
देखी है मुस्कान तुम्हारी
सब कुछ आँसू से पाया है ।
जिसको तुमने गीत कहा था
चुपके रो-रोकर गाया है ।
तुम भी बाज नहीं आते हो
जी भरके धोखा खाया है ।
आशीषों की वर्षा करके
केवल ज़हर तुम्हें भाया है
अपनों का तो सपना पाला
गैरों ने ही अपनाया है ।
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
19 मार्च 2009
दो क़दम दूर हैं द्वार सवेरे के॥]
मुस्कान तुम्हारीपीछे तो केवल छाया है
यही तुम्हारा सरमाया है ।
तुम अपनों को ढूँढ़ रहे हो
कोई साथ नहीं आया है ।
देखी है मुस्कान तुम्हारी
सब कुछ आँसू से पाया है ।
जिसको तुमने गीत कहा था
चुपके रो-रोकर गाया है ।
तुम भी बाज नहीं आते हो
जी भरके धोखा खाया है ।
आशीषों की वर्षा करके
केवल ज़हर तुम्हें भाया है
अपनों का तो सपना पाला
गैरों ने ही अपनाया है ।
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
19 मार्च 2009
khubsurat bahut pasand aayi rachana
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है ...
ReplyDeleteतुम अपनों को ढूँढ़ रहे हो
ReplyDeleteकोई साथ नहीं आया है ।
eakdam sacchi bat ...koi sath nahi deta...khubsurat rachna...bahut2 badhai..
Jisko tumne geet kaha tha....chupke ro-roker gaya hai....
ReplyDeleteati sunder bhav....BAdhai