कलियुगी एकलव्य
कलियुग में बोले द्रोणाचार्य एकलव्य से-
'प्रसन्न हूँ तुम्हारी भक्ति से
जो चाहते सो माँगो ।'
एकलव्य बोला –'गुरुदेव ,
यदि प्रसन्न हैं मुझसे
तो एक काम कीजिए-
द्वापर में आपने
कटवाया था अँगूठा
यह कलियुग है
अपना दायाँ हाथ
काटकर दे दीजिए ।
-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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