आग़ के ही बीच में ,अपना बना घर देखिए ।
यहीं पर रहते रहेंगे ,हम उम्र भर देखिए ॥
एक दिन वे भी जलेंगे ; जो लपट से दूर हैं ।
आँधियों का उठ रहा , दिल में वहाँ डर देखिए ॥
पैर धरती पर हमारे , मन हुआ आकाश है ।
आप जब हमसे मिलेंगे , उठा यह सर देखिए ॥
जी रहे हैं वे नगर में ,द्वारपालों की तरह ।
कमर सज़दे में झुकी है , पास आकर देखिए ॥
टूटना मंज़ूर पर झुकना हमें आता नहीं ।
चलाकर ऊपर हमारे , आप पत्थर देखिए ॥
भरोसे की बूँद को मोती बनाना है अगर ।
ज़िन्दगी की लहर को सागर बनाकर देखिए ॥