पथ के साथी

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Saturday, May 2, 2015

ज़िन्दगी तो इक सफ़र



1-डॉ  सुधेश

मंज़िल पर पहुँचना चाहता है मन
 क्या पता कब बैठ जाए तन 

ज़िन्दगी तो इक सफ़र से कम नहीं
अनमना चलना पड़ेगा पाँव को ,
राही भटक ले सारे विश्व भर में
लौट  आना ही पड़ेगा गाँव को ।
   संकल्प के ऊँचे क़िलों को जीतना है
    इन हड्डियों में समाये कितनी थकन ।

रोज़ सपने बिन बुलाये अतिथि से
आ धमकते द्वार पर मेरे सवेरे
उन को टूटना ही था अगर आख़िर
क्यों लगाये मेरे नयन में डेरे ।
    फिर भी देखता रंगीन सपने नित
    क्या पता मन मीत से फिर  हो मिलन ।

पर्वत  चोटियाँ देखो  बुलाती हैं
हरी घाटी गूंजती है गीत से
घृणा के ज्वाला मुखी नित उबलते हैं
सब  दिलों को  जीतना है प्रीत  से 
    मेरे शब्द करते ऊँची  घोषणा  यह
    यहाँ होगा फिर मुहब्बत का  चलन 

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   314 सरल अपार्टमैन्ट्स ,  द्वारिका , सैक्टर १० ,नई दिल्ली-110075

फ़ोन  09350974120 Email Drsudhesh@gmailcom 
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1-मेरा राम तू, मेरा रहीम तू

नीतू शर्मा

नीतू शर्मा
सुकून के पल मिलें
तेरी चौखट पर
फिरा मैं  दरबदर
बस राहत मिली तेरे दर पर

इस क़ायनात में
तेरा दीदार ही खुशनुमा हैं
तेरे बिना एक खलिश- सी हैं
और हर कोई  गुमशुदा सा हैं

मेरी हस्ती है एक तेरे दम से
तेरी रहमत है मुझ पर
महफूज़ हूँ मैं हर ग़म से

बरसी है बरक़त तेरी मुझ पर
मुझे तो रहना है अब तेरी ख़िदमत में

मेरा राम तू, मेरा रहीम तू
मैं तो एक नादान- सा बन्दा हूँ
तू रहनुमा मेरी इस ज़िन्दगी का
मैं तो बस तेरे ही  नूर  का एक ज़र्रा हूँ ।

है गुजारिश एक तुझसे
ना करना जुदा कभी खुद से
तू ही तो है रब मेरा
नवाजे तू मुझे अपनी नवाजिश से
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नीतू शर्मा:

 मैने जनवरी 2015 में मास्टर इन मास कम्युनिकेशन पास किया हैं, जिसमें  मुझे स्वर्ण पदक मिला हैं। । इसके अलावा मैने पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा किया है ह्यूमन रिर्सोस मैनेजमेंट में । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं ओर मैं दैनिक भास्कर, जयपुर, राजस्थान पत्रिका जयपुर, दैनिक युगपक्ष बीकानेर के लिए लिखती  हूँ। मुझे कविताएँ  लिखना भी पंसद हैं। इसके अलावा मैं आकाशवाणी जयपुर में नाटक विभाग में नाटक भी लिखती हूँ ओर इसके साथ साथ आकाशवाणी जयपुर के युवा कार्यक्रम युववाणी में कैजुअल एंकर का काम भी करती हूँ।
 नीतू शर्मा, 1916, खेजड़ों का रास्ता, चाँदपोल बाजार, जयपुर 302001

Thursday, October 30, 2014

पौधा



डॉ ०सुधेश
 
        मैं सड़क के बीच का पौधा
         किस ने लगाया
         किस अभागे समय,
         आने वालों जाने वालों को
         बस देखता हूँ
         जगत भी आवागमन का सिलसिला
         कारों तिपहिया वाहनों ट्रकों
         से निकलते ज़़हर में साँस लेते
          मेरे पत्ते काले पड़ गए हैं
          खिली दो चार कलियों ने
          फूल बनने से किया इंकार
           फिर कहाँ फूलों की हँसी
          कहाँ मादक गन्ध
          मेरी सुरभि का कोष
            लूटा सभ्यता की दौड़ ने
           जैसे दिन दहाड़े लुट गया
           सड़क का आदमी
           सड़क के बीचों बीच ।
मैं अगर खिलता
फैले कार्बन को सोख
क्सीजन लुटाता
पर्यावरण सौन्दर्य में
कुछ वृद्धि करता
पर मैं अभागा
सड़क के बीचोंबीच
केवल मूक दर्शक
बन गया हूँ
जैसे सड़क का आदमी ।
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Thursday, March 6, 2014

मेरी नई कविताएँ

मेरी नई कविताएँ –डॉ सुधेश

1-साधक की खोज

ख़ुशामदी अवसरवादी
तोता चश्म यशलोभी
निकले आगे
और आगे और आगे
मैं धिकलता गया पीछे
और पीछे और पीछे
साधक की खोज हुई
आगे बहुत भीड़ थी
पीछे वालों में
सरस्वती की करुण दृष्टि
पड़ गई मुझ पर
बिना याचना के
मैं पाया गया
प्रथम ।
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2-दु:ख कहाँ है

दु:ख सब को माँझता है
पर जो दु:ख को
काली कमाई से माँज कर
सुख की मरीचिका में बदलते
पूछते हैं-
दु:ख कहाँ है
मन का भ्रम है
भक्ति का पर्याय
परोपकार का बीज है ।
  पर उन का क्या होगा
    जो दु:ख की पहाड़ियों में दबे
    मौत माँगते हैं ?
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