पथ के साथी

Tuesday, July 11, 2023

1346-मानसून की कविताएँ

 भीकम सिंह 


1

पानी का भार लेकर

बोझिल हुई हवा 

लंबे रस्तों पर

लौट रहे मेघ ,

एक कोने में पड़ी दिखी 

पानी पीती हुई तलैया

गाँव में नाच उठे खेत

ता - ता  थय्या 

2

नदी की  देख दुर्गत

बचाने आए मेघ

रोटी में ज्यों नमक ,

कहा-सुनी हुई 

कुछ सयानें मेघों में 

बीच में विद्युत ग धमक ।

3

पैरों में हवा की चप्पल 

मेघों तक नहीं पहुँचती 

नंगे पैर चलते हैं 

मानसूनी यात्राओं पर ,

सूखे खेतों पर खड़े होते

बरसते नहीं 

चकित होते 

कड़कती बिजली  पर ।

4

देर तक रुकी रही 

सिन्धु पर हवा 

सिन्धु होता रहा ख़फा 

पर मेघ नहीं आए ,

निगाह झुकाए 

बदली ने कहा 

मुझे आती है शर्म 

अब इनको ढोते हुए 

5

बाढ़ में से देखा 

नदी ने कई बार 

लापता खेतों के 

वस्त्रों का तार-तार ,

तटों को धक्का देकर 

मुस्कराती है आज 

कल तक जो 

रो रही थी ज़ार- ज़ार।

 

 

-0-

9 comments:

  1. वर्षा ऋतु में गाँव का यथार्थ चित्रण करती सुंदर कविता। बधाई भीकम सिंह जी। सुदर्शन रत्नाकर

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  2. नदी ने कई बार

    लापता खेतों के

    वस्त्रों का तार-तार बहुत सुन्दर चित्रण

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  3. बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने।
    हार्दिक बधाई
    सादर
    सुरभि डागर

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  4. बहुत सुंदर-साकार चित्रण ।बहुत-बहुत बधाई सर।

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  5. वाह,नवीन बिम्बों एवं मानवीकरण द्वारा वर्षा के उत्कृष्ट चित्र।बेहतरीन कविताएँ।बधाई भीकम सिंह जी।

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  6. मेरी कविताएँ प्रकाशित करने के लिए सम्पादक जी का हार्दिक धन्यवाद और आप सभी की खूबसूरत टिप्पणियों के लिए आभार, सच में जब आप जैसे टिप्पणी करते हैं तो लगता है कविता ठीक ही होगी ।पुनः आभार ।

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  7. भीकम सिंह जी की अनुपम बिम्बों वाली पावस के विभिन्न चित्र उकेरती कविता के लिए हार्दिक बधाई ।
    विभा रश्मि

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  8. अजब गजब कविताएं! बधाई भीकम सिंह जी!

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  9. बहुत सुन्दर-सुन्दर कविताएँ. हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी.

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