जय भारती
हिमगिरि का पहने जो ताज है
जय भारती, जय- जय भारती
मिलकर उतारेंगे आरती
जय भारती,जय- जय भारती
वेदों के
गूँजें
यहाँ मंत्र हैं
रामायण-
गीता- से ग्रंथ हैं
ऋषियों ने दिये गूढ़मंत्र हैं
यहीं हैं
अपाला और गार्गी
जय भारती, जय- जय भारती
बंसी बजाई यहाँ श्याम ने
मर्यादा सिखलाई राम ने
पावन किया चारों धाम ने
प्रयाग-धार
भव से उतारती
जय भारती, जय-जय भारती
चरणों को सागर पखारता
दिग्दिगंत
ओम ही उचारता
स्वर्ग
से है इसकी समानता
ऋतुएँ भी रूप आ निखारतीं
जय भारती, जय-जय भारती
नदियों का माँ जैसा मान है
अतिथि यहाँ देवता समान है
वीरों ने वार दिये प्राण हैं
जब-जब
वसुंधरा पुकारती
जय भारती, जय- जय भारती।
-0-
बहुत सुन्दर गीत, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteख़ूबसूरत गीत...हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत है । सुरंगमा जी हार्दिक बधाई स्वीकारें। सविता अग्रवाल “सवि”
ReplyDeleteबहुत सुंदर मनमोहक गीत। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना. हार्दिक बधाई सुरंगमा जी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीया 💐🌹
सादर
सुंदर गीत के लिए हार्दिक बधाई सुरँगमा जी!
ReplyDeleteआदरणीय भैया का एवं आप सभी का हृदयतल से आभार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित