निरुपमा सिंह
मेहँदी शगुन की
अरमानों की, खुशियों की
सभी के कर- कमलों पर
यूँ सज जाती है
..मानो
वातावरण में.. अनेकों
रजनीगंधा महक रही हों!
नववधू के हाथों पर
जब उतरती हो
चाँद -तारे सी दमकती हो
अपनी मादक सुगंध से
मन को उन्माद से भर
देती हो!
सर्वप्रथम नव-युगल को
अंगीकार तुम्हारा
होता है
कितनी कुँवारी आँखों
के
सपने पूरित होने का
वर
तुमसे ही तो मिलता
है!
मेहँदी तुम बहुत
भागों वाली हो
विधाता से ये अधिकार
तुम ही पाई हो!
ना जाति- धर्म में बँटी
हो
ना धनी- निर्धन में
सभी की हथेलियों पर
अपनत्व से रच जाती हो
सब वर्गों में
समान रूप में
वंदनीय हो
अहो भाग्य!
तुम्हारा!!
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संक्षिप्त परिचय
निरुपमा सिंह
शिक्षा-स्नातकोत्तर(समाजशास्त्र)
सक्रियता-राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न
पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
संप्रति-जनपद बिजनौर(उ.प्र.)
Email id-nirupma singh32@gmail.com
बहुत सुन्दर कविता...
ReplyDeleteमेंहदी के माध्यम से प्रतीकात्मक रूप में सामाजिक समरसता का संदेश देती सुंदर कविता।निरुपमा जी को बधाई।
ReplyDeleteसुंदर रचना।बहुत-बहुत बधाई निरुपमा सिंह जी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना, बधाई निरुपमा जी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, खूब बधाइयाँ।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई,💝💝💝💝💝💝💝👏👏👏👏👏👏👏👌👌👌👌👌👌👌👍👍👍👍👍
ReplyDeleteख़ूबसूरत रचना है निरुपमा जी बधाई हो। सविता अग्रवाल “ सवि”
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर विषय, प्रतीक एवं भावों से सजी कविता
ReplyDeleteहार्दिक बधाई निरुपमा जी
बहुत सुंदर कविता ...बधाई निरुपमा जी।
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