रश्मि विभा त्रिपाठी
1
वो मेरा ही सगा बनकर
क्यों मुझे डँसता है,
मैंने तो ये सुना था-
हर दिल में खुदा बसता
है!
2
होठों से टपके प्यार
हर दिल में भरा छलावा,
अब किसी को चाहने का
मतलब है-
अपनी मौत का बुलावा!
3
उनकी बेरुखी की अदा
से
रेज़ा- रेज़ा बिखर गई,
वो जख़्म अपनों से
मिला
कि मैं प्यार से अब
डर गई।
4
साँप को अपना समझकर
हमने बाहों में कस
लिया,
अंजाम तो ये होना ही
था,
उसने प्यार से डँस लिया।
5
पेश आया बदतमीजी से
अदब की आदत नहीं रही,
यक़ीनन उस शख़्स को
अब मुझसे मुहब्बत
नहीं रही।
6
यों तो वक़्त माहिर
है
हर मर्ज का इलाज करने
में
मगर
इक उम्र लगती है
दिल के घाव भरने में।
7
तल्ख़ लहजे में तेरा
यों मुझसे उलझ जाना,
मुमकिन नहीं अब उम्र
भर
रिश्ते का सुलझ जाना।
8
न वक्त खराब है
न लोग खराब हैं
हाँ!
पहले दूसरों के बारे
में
सोचते थे
अब सबकी आँखों में
अपने- अपने ख़्वाब
हैं।
9
माँग- माँगकर
अपनेपन की भीख
मैं हारी
तब रिश्तों ने दी एक
सीख
सुख में सबके संग खूब
नाच
दुख में भूले से मत
दीख।
10
ये प्यार सच्चा है या
झूठा
अभी लेते रहो ये बात
हलके में
खैर,
इसकी पुष्टि होगी किसी
दिन
तहलके में।
11
बहुत मिले अपने
सबने दिखाए संवेदना
के सपने
पर समय ने एक दिन ली
जब मेरी परीक्षा कड़ी
तब गौर से देखा
सबको अपनी- अपनी पड़ी
मानवता किसी के लिए
थी ही नहीं बड़ी।
12
नहीं देख सकते
खाते हुए चैन की रोटी
मेरे कुछ रिश्तेदारों
को अपच है
कोई किसी का नहीं,
सुनती आई थी
पर अब मैं मानने लगी
हूँ-
ये बिल्कुल सच है।
13
हमने यह पाया-
हरेक का होकर,
बीत रहा है पल
हर दिन अब रोकर।
14
किस पे एतबार करूँ,
पल- पल रंग बदलते
शख़्स,
मुझे फिर से मुहब्बत
नहीं करनी,
ख़ुदा के लिए मुझे तू
बख़्श।
16
दिल में मोम रखो,
पर भूसा न भरो अक्ल
में
भेड़िए घूमते- फिरते
हैं
अब इंसान की शक्ल
में।
17
ये जिस तरह मुसलसल
मुझे आ रही है हिचकी,
परदेस में मेरी याद
में
तुम्हीं ने ली होगी
सिसकी।
18
चार किताबें पढ़करके
मत सिखालाओ होशियारी,
मुझको इतना पता है-
एक तरफ है प्यार,
एक तरफ दुनियादारी।
19
मुहब्बतों के फूल
कहाँ हैं
दिलों की शाख पर
आजकल
जज़्बात सबने
रख दिए हैं ताख पर।
20
प्यार के फूल
सिर्फ महकाते हैं,
आप किस दम पे
मुझे बहकाते हैं?
21
वो कौन थे, कहाँ के थे
जो एक- दूसरे के लिए
रखे रहते थे
अपनी जान हथेली पर,
इस बज्म में तो अब
सबके सब नजर टिकाए
हैं
धन- दौलत, हवेली पर।
22
किसी का प्यार
दे जाए सुकूँ
कभी तो पल को
आँख झपके
खुलती है बात धोखे की
सुनूँ किस्से झड़प के
रह जाता है दिल
तड़पके!
23
जरा- सा दिल भर आया,
दो आँसू आँख से क्या
टपके,
अपनी- अपनी ताक में
लोग मेरी ओर लपके।
24
चाँद आसमाँ का
मेरी छत पे उतर आया,
उसकी यादों का
मैंने एक चिराग क्या
जलाया!
25
तुम इस तरह मिले
और यों जुदा हो गए,
उस पल के बाद से
मेरे लिए खुदा हो गए।
26
मेरी रातों में
चाँद
मेरे कमरे में निकलता
है
तुम्हारी याद का
इक कतरा
जब
मेरे सीने में पिघलता
है।
-0-
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteक्षणिका प्रकाशन के लिए आदरणीय सम्पादक जी का हार्दिक आभार।
ReplyDeleteआदरणीय ओमकार जी की टिप्पणी की हृदय तल से आभारी हूँ।
सादर
छल-प्रपंच,विश्वासघात और स्वार्थपरता से भग्न हृदय की अभिव्यक्ति करती सुंदर क्षणिकाओं हेतु रश्मि जी को बधाई।
ReplyDeleteवाह्ह्ह!! क्या कहूँ मेरे पास कोई शब्द नहीं रश्मि जी... 😢प्रत्येक क्षणिका अश्रु प्रपात है... हृदय की अव्यक्त पीड़ा से सिक्त.... 🙏 🌹
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