सोन चिरिया
रतन रैना
स्मृतियों के झरोखे से
झाँकती सोन चिरिया- सी
विचारों की एक लहर
उमड़ती- सी आई
मेरे मानस पर छा गई
और पहुँचा गई
हिमाच्छादित पर्वतों के आँगन में
खिलते पम्पोश से सुवासित
डल झील में
तुम्बकनारी के साथ
गीत गुनगुनाते
हाजियों के पास
मलयज का गीत
गुनगुनाते
सेव अखरोटों के
बागान में
लुका- छिपी खेलता
मासूम बचपन
पनचक्की में
धान पीसता
सौन्दर्य जो
दिल की गहराइयों तक पैठा है
निर्वासन के बाद
और भी बढ़ गया।
एक पीर , एक कसक
फिर से जाग गई
जन्नते- कश्मीर के लिए।
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परिचय
श्रीमती रतन रैना
एम,ए संस्कृत, हिन्दी,एम एड
जन्म स्थान- श्रीनगर कश्मीर
शिक्षा ग्वालियर (म,प्र)
केन्द्रीय विद्यालय ग्वालियर 1969 प्राथमिक अध्यापक। विभिन्न केन्द्रीय विद्यालय मै कार्यरत कामठी,सागर,सूरत, बाल्को,ध्रांगध्रा ,दिल्ली ।दिल्ली मे करीब बीस साल ।यहीं से प्राचार्या से सेवानिवृत्त।
यत्र तत्र कहानियो का प्रकाशन ।कविता पुस्तक
विचारो की सोन चिड़िया प्रकाशित ।
बहुत ही सुंदर कविता। बधाई रतन जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता। हार्दिक बधाई रतन रैना जी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना, बधाई रतन जी
ReplyDeleteसुंदर कविता।हार्दिक बधाई रतन जी।
ReplyDeleteरतन रैना जी सुंदर कविता के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteअनुपम भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन की हार्दिक बधाई आदरणीया।
सादर
कश्मीर की वादियों पर बहुत भावपूर्ण रचना, बधाई रतन रैना जी.
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई रतन रैना जी।
ReplyDeleteएक पीर , एक कसक
ReplyDeleteफिर से जाग गई
जन्नते- कश्मीर के लिए।
जाने कितनो के दिल की पीर है ये...सुन्दर रचना के लिए बहुत बधाई...|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना,हृदय से बधाई रतन जी।