पहले कभी
प्रियंका गुप्ता
पहले कभी
मेरी कमीज़ पर बटन टाँकते
चुभ जाती थी
उसकी उँगली में सुई
मैं झट उँगली चूस
पूछ लेता था-
"दर्द तो नहीं हुआ?"
वो आज भी मेरी कमीज़ पर
बटन टाँकती है
कौन जाने
चुभती भी होगी सुई अक्सर
पर अब
मोबाइल पर टकटकाती मेरी उँगलियों को
पता ही नहीं चलता कुछ
उँगलियों से उँगलियों की ये दूरियाँ
अब मुझे भी चुभने लगी हैं
सोचता हूँ-
नया सुई-धागा ले आऊँ
और दिल पर टाँक दूँ
ये उधड़े हुए रिश्ते...।
-0-
2-करोना
राज महेश्वरी ( कैनेडा)
करो-ना नाम तुम्हारा, लेकिन
तुमने क्या क्या न किया, कुछ बुरा पर कुछ भला भी
चलो जान लें थोड़ा-थोड़ा, और सीख लें थोड़ा-थोड़ा
लोगों को बंद घर-घर में
किया
पर जानवरों को कुछ
स्वतंत्रता का अवसर दिया
मनुष्य जाति को सोचने का
एक अवसर है मिला
चाहे सँभले या न सँभले बदलाव तो आएगा
गंगा-जमुना नदियाँ स्वच्छ हो बहीं
जीभर स्वतंत्र श्वास लेने
योग्य हवा चली
सैकड़ों कि.मी. दूर स्थित
पर्वत शृंखलाएँ
प्रदूषण से अदृश्य थीं, पुनः उन्हें दृष्टिगोचर कराया
प्रातः काल टहनियों पर बैठ
चिड़ियों का चहचहाना
कर्ण-प्रिय मधुर संगीत के
स्वरों का फिर गूँजना
कहीं-कहीं सड़कों पर जंगली
जानवरों का विचरण
मछलियों का यकायक वेनिस की
जल-भरी गलियों में प्रकट होना
प्रकृति की सामर्थ्य का
अद्भुत प्रदर्शन
स्वयं कुछ ही समय में
उपचार
अपना कर दिखाया
विश्वास नहीं था ऐसा हो
सकता था
स्पष्ट है करोना का सन्देश
दस्तक दे रहा परिवर्तन, द्वार पर खड़ा
पैसा ही सब कुछ नहीं, भौतिक सुख भी नहीं
स्वास्थ्य और सम्बन्ध ही सर्वोपरि हैं
स्वास्थ्य और सम्बन्धों के पथ पर ही
जीवन अग्रसर हो, भटके नहीं
सम्प्रति करोना से लड़ ही
रहे -
भविष्य में भी किसी
महामारी से
हमारा उत्तम स्वास्थ्य
सफलतापूर्वक जूझ सके
आवश्यक है, प्रकृति को कुपित न करें
प्रकृति को जीने दें और
खुद भी जिएँ
पशु, पक्षी और वृक्षों को शत्रु नहीं, मित्र समझें
प्रकृति और पृथ्वी दोनों
ही
हमारे जीवन के मूल आधार जो हैं
प्रियंका जी एवं राज माहेश्वरी जी को समसामयिक रचनाओं के लिए - बधाई , शुभकामनाएँ | वाकई हमारी अपनी ही ऊँगलियों के बीच भी दुरी बन रही है , कोई ज्यादा प्रिय है तो कोई कम - उपयोग के आधार पर और कोरोना के लिए इस समय रचे जा रहे सभी साहित्य को कोरोना दौर के नाम से जानना चाहिए |
ReplyDeleteसुंदर,समसामयिक सृजन के लिए प्रियंका जी एवं राज महेश्वरी जी को बधाई।
ReplyDelete--'रीत'
सुंदर और सामयिक
ReplyDeleteप्रियंका जी सुंदर छोटी सी कविता।
ReplyDeleteराज माहेश्वरी जी समय को दर्ज किया आपने बधाई
समसामयिक,सुंदर कविताएँ ।प्रियंका जी एवं राज महेश्वरी जी को हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सामयिक कविताएँ ।प्रियंका जी ने सही कहा है आज हम सचमुच अपने करीबी रिश्तों से ही दूर होते जा रहे हैं,सोशल मीडिया पर रिश्ते ज्यादा निभा रहे हैं । राज माहेश्वरी जी की कोरोना काल की सुन्दर कविता है।बधाई आप दोनों को ।
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत तथा समसामयिक रचनाओं के लिए प्रियंका जी एवं राज महेश्वरी जी को हार्दिक बधाई !!
ReplyDeleteसुई-धागे-बटन में भी कितने रिश्ते पलते हैं, सोशल-मीडिया ने कुछ दिया तो बहुत कुछ छीन भी लिया! बहुत सुंदर कविता प्रियंका जी! बहुत बधाई आपको!
ReplyDeleteआ. राज महेश्वरी जी... सच है! प्रकृति को जीने दिया होता, फलने-फूलने दिया होता तो आज स्थिति शायद कुछ बेहतर होती! सामयिक रचना हेतु बहुत बधाई!
~सादर
अनिता ललित
बेहद खूबसूरत कविता प्रियंका जी, बड़ा ही आनंद आया। राज महेश्वरी जी आपने भी बड़ा ही सुंदर ब्यौरा दिया कोरोना का! आप दोनों को बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteउँगलियों से उँगलियों की ये दूरियाँ /अब मुझे भी चुभने लगी हैं... बहुत सुंदर .... सच में दिल को छूती रचना
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें ।
राज जी आज के दृश्य प्रस्तुत करती सुंदर रचना... आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आप सभी की इतनी उत्साहवर्द्धक और प्यारी-प्यारी टिप्पणियों के लिए दिल से आभार...| आदरणीय काम्बोज जी का बहुत धन्यवाद जिन्होंने मेरी कविता को यहाँ स्थान दिया |
ReplyDeleteराज जी, आपने बहुत सामयिक रचना प्रस्तुत की है, सुन्दर रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकारें |
प्रियंका जी और राज महेश्वरी जी की सामयिक रचनाओं से मन प्रभावित हुआ दोनों को हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteप्रियंका जी की रचना दिल को छू गई. बहुत बधाई प्रियंका जी.
ReplyDeleteराज महेश्वरी जी ने कोरोना से जुड़े हर पहलू को रचना में उतार दिया है. सटीक व सामायिक रचना. बधाई.
बहुत सुंदर सामयिक रचनाएँ। प्रियंका जी, राज जी आप दोनों को हार्दिक बधाई।
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