मुकद्दमा
-डॉ.
कविता भट्ट
अरे साहेब!
एक मुकद्दमा तो
उस शहर पर भी बनता है
जो हत्यारा है–
सरसों में
प्रेमी आँख-मिचौलियों का
और उस उस मोबाइल को
भी घेरना है कटघरे में
जो लुटेरा है–
सरसों
सी लिपटती हँसी-ठिठोलियों का
उस एयर कंडीशन
की भी रिपोर्ट लिखवानी है
जो अपहरणकर्त्ता है-
गीत गाती पनिहारन सहेलियों का
और उस मोबाइल को भी
सीखचों में धकेलना है
जो डकैत है-
फुसफुसाते होंठों-चुम्बन-अठखेलियों का
उस विकास को भी थाने
में कुछ घंटे तो बिठाना है
जिसने गला घोंटा;
बासंती गेहूं-जौ-सरसों की बालियों का;
लेकिन इनका वकील खुद
ही रिश्वत ले बैठा है
फीस इनसे लेता है;
और पैरोकार है शहर की गलियों का
ओ साहेब!
आपकी अदालत
में पेशी है इन सबकी
कुछ तो हिसाब दो -
उन
मारी गयी मीठी मटर की फलियों का
बहुत अच्छा मुकदमा कविताजी । वास्तव में हम विकास केनाम पर प्रकृति से कितने दूर हो गए हैं।
ReplyDeleteनए तेवर में रची बहुत सुंदर एवं व्यंजनात्मक रचना। हार्दिक बधाई कविता जी । समय पर पोस्ट करने के लिए बहन ज्योत्स्ना शर्मा जी का भी आभार।
ReplyDeleteकाम्बोज
हार्दिक आभार , महोदय
Deleteवाह, कविता जी अलग ही अंदाज़ है कहन का, अच्छा व्यंग्य भी। बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर ,सामयिक सृजन !
ReplyDeleteकविता जी को बहुत बधाई !
इस साहित्य-साधना का मुझे भी एक उपकरण बनाने के लिए
माँ शारदे को बारम्बार नमन करती हूँ :) नमन आ.काम्बोज भाई जी को भी !
हार्दिक आभार, आदरणीया
Deleteआज के समय पर बहुत सुन्दर रचना लिखी है कविता जी...
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई आपको !
हार्दिक आभार, सखी
Deleteसखी ज्योत्स्ना शर्मा जी को भी हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteलाजवाब कहन है कविता जी। बहुत बधाई
ReplyDeleteलाजवाब कहन है कविता जी बहुत बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक आभार, आपका
Deleteवाह ! एक अलग अंदाज की रचना पढ़ने का अवसर मिला ..हृदय से बधाई कविता जी ।
ReplyDeleteएक अलग अंदाज में उत्कृष्ट सृजन ..हार्दिक बधाई कविता जी ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार, सखी।
Deleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना। इसके लिए आपका आभार
ReplyDeleteहार्दिक आभार, महोदय
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