मेरा घर *
कमला निखुर्पा
मेरा घर
बड़ी -बड़ी बल्लियों
वाली छत
पिता की बाँहों की
तरह
फूलों से महकता आँगन
ज्यों माँ का आँचल ।
मेरा वो घर जिसकी
गोद में
मासूम बचपन ने देखे
खट्टे मीठे सपनें ।
परी नही थी मैं
फिर भी हर रोज
हाथों में ले जादू
की छड़ी
हर कोने को सजाया
करती थी ।
ब्रश और रंगों ने भी
की थी दीवारों से
ढेरों बातें
क्रोशिया के फंदों
से बने लिबास पहन
इतराती थी कुर्सियाँ
हँसते थी मेज
गेरू से लिपा माटी
का पूजाघर
जिसमें उकेरे थे माँ
की उँगलियों ने
ऐपण की लकीरें
वो स्वस्तिक और ॐ का
चिह्न भी
बचा न सका
मेरे घर को
चलती रही
लालची कुल्हाड़ियाँ
कटते रहे पेड़
आया सैलाब
बहा ले गया
सारी स्मृतियाँ
पुरखों की निशानियाँ
वीरान और उजाड़
मलबे से घिरा
अकेला खड़ा है
मेरा घर ।
जिसकी दहलीज पे
कदम रखते हुए भी
लगता है डर ।
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* कमला निखुर्पा का घर
2 जून-16 की रात
में बादल फटने से तबाह हो गया । घर के चार दृश्य।
(3 जुलाई 2016)
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[ बस इतना कहना है बहन कमला जी को कि आपका एक और
मायका भी है, जहाँ आपका अग्रज रहता है। उस घर के द्वार सदा आपके लिए खुले हैं। -काम्बोज]
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गहन अनुभूतियों से उपजी मर्मस्पर्शी कविता। पढ़कर दिल भीग गया। कमला जी आपकी क्षति का सुनकर दुःख हुआ। हृदय से संवेदना।
ReplyDeleteभावना सक्सैना
बेहद मार्मिक रचना कमला जी. बहुत भयावह लग रहा है चित्र से. मकान सिर्फ घर नहीं होता बल्कि वहाँ व्यतीत हुए वक़्त का एक एक पल ठहरा होता है. सब छीन गया. बहुत दुःख हुआ कमला जी. हिम्मत से काम लीजिये और पुनः बिखरे हुए को समेटने का प्रयास कीजिए. शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteगहन मार्मिक अनुभूति लिए कविता।
ReplyDeleteमार्मिक कविता... कमला जी ! चित्र भी दिल दहला देने वाले हैं। आपके घर के बारे में जानकर बेहद दुख हुआ। जिस घर में बचपन बीता हो, उससे तो कुछ अधिक ही लगाव होता है। आपका दर्द समझ सकते हैं। हम सब इस दुख में आपके साथ हैं। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आपको सब्र दे और बिखरे हुए तिनकों को पुनः जोड़ने की हिम्म्त दे।
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
कविता ने बहुत मार्मिक दृश्य दिखला दिये दिल दहलाने वाले ।घर का तिनका तिनका बिखरा देखना बहुत दुखद है ।बीते पल यहाँ घर सहेजे बैठा था सब का बह जाना कितना पीड़ा दायक है कल्पना करना भी मुश्किल है ।चित्र सब बयाँ कर रहें है ।आप के इस दुख में हम सब शरीक हैं ।भगवान से प्रार्थना है आप सब पुन: बना सकें वैसा ही घर । शुभकामनायें ।
ReplyDeleteस्वयं की पीड़ा व्यक्त करती कविता,मार्मिक अभिव्यक्ति प्रकृति की निष्ठुरता ने अपना आतंक ऐसा फैलाया कि वर्षों से प्रेम से रचा- बसा घर देखते -देखते ही छिन गया|ईश्वर आपको इस आघात से उबरने की शक्ति दे , आप फिर से अपना घर बना सकें| आशा है आप सपरिवार सुरक्षित होंगी |
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
बहुत हृदस्पर्शी रचना...कमला जी। इस घटना के विषय में जान कर बहुत दुख हुआ। घर के चप्पे-चप्पे में यादें बसी होती हैं। पुरखों की निशानियों का यूँ बिखर जाना बहुत कष्टदायी होता है। ईश्वर आपको इस दुख से उबरने का हौंसला दे।
ReplyDeleteकमला जी बहुत दर्द है आपकी कविता में जो स्वाभाविक भी है इस तरह सब कुछ नष्ट हो गाया जानकार ह्रदय द्रवित हुआ |प्रभु की मर्जी के सामने हम सब बौने हो जाते हैं |भगवन आपको धैर्य प्रदान करें |
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ...चित्र हृदय विदारक ! पल-पल संजोयी स्मृतियों ,अनुभूतियों के अधिष्ठान का यूँ नष्ट हो जाना बेहद पीड़ादायक है कमला जी ..लेकिन आपको स्वयं धैर्य रखकर परिवार को संभालना है ।ईश्वर से सभी के स्वस्थ ,सुखी जीवन की कामना करती हूँ ।
ReplyDeleteभैया आपके स्नेह का प्रतिदान दे पाना मेरे लिए इस जन्म में संभव नहीं ... जाने कितने जन्मों का पुन्य संचित हुआ होगा जो आप मिले , इतने सारे साहित्यिक बुद्धिजीवियों सखियों और मित्रों का स्नेह मिला .... आप सबके शब्दों ने मुझे नया जीवन दिया है | बहुत आभार ..
ReplyDeleteआपका स्नेह आत्मीय भाव बेजोड़ है बहन !
ReplyDeleteगेरू से लिपा माटी का पूजाघर
ReplyDeleteजिसमें उकेरे थे माँ की उँगलियों ने
ऐपण की लकीरें
वो स्वस्तिक और ॐ का चिह्न भी
बचा न सका
कमला जी आपकी कविता ने , हृदय विदारक चित्र ने तो रुला ही दिया क्योंकि इसमें जो दर्द हैं ,पीड़ा हैं वो बहुत गहरी हैं ....हम आपका दर्द महसूस करते हैं ...प्रभु से कामना है कि आपकी परेशानियाँ समाप्त हो जाए.. आपलोग स्वस्थ रहें ... खुश रहें ...
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बहुत मार्मिक रचना प्रस्तुत की आदरणीया कमला जी ने...लेकिन क़ुदरत के सामने हम सब बेबस होते हैं
ReplyDeleteउफ्फ्फ कितनी पीडादायक स्थिति को आपकी कलम ने संवारा वो भी ऐसे वक्त में दिल से नमन आदर्णीया कमला जी |
ReplyDeleteपीड़ा की प्रभावी अभिव्यक्ति
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