पथ के साथी

Tuesday, June 21, 2016

ब सोचता है लड़का-

 डॉ.कविता भट्ट

 1

 वसंत, होली और परीक्षाएँ

सब एक ही समय क्यों आते हैं

पुस्तक खोल, सोचता था वह घण्टों

और एकटक निहारता था

उसे एक लड़की के मुखड़े -सा

अक्षर- प्रियतमा के होंठों से थिरकते थे

पन्नों की सरसराहट-

जैसे बालों में हाथ फेरा हो उसके

उभर आती थी आँखें उसकी पृष्ठों पर

लड़के का किशोरमन निश्छल प्रेम करता था

क्योंकि तब वह संसार के गणित में नहीं रमा था

अब सोचता है लड़का-

अहा! वो भी क्या दिन थे?

-0-

2

 बोझिल पलकों को लेकर

लिखना चाहती हूँ -

दर्द और संघर्ष

देखूँ- पहले क्या ख़त्म होता है

कागज, स्याही, दर्द, दर्द की दास्ताँ,

या फिर मेरी पलकों का बोझ...?

जो भी खत्म होगा

मेरे हिस्से कुछ न आएगा

क्योंकि समय ही कद तय करता है,

दर्द और संघर्ष कितना भी बड़ा हो

बौना ही रहता है...।

-0-

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