पथ के साथी

Sunday, January 31, 2016

612


1-मन्जूषा मन

ये कैसे दर्द
सारे दर्दों की दवा
सारे ग़मों का इलाज़
ये कविता ही तो है
ये कविता ही है,
जो मरहम बन
हर ज़ख्म को
राहत देती है,
हर सूनेपन में
कविता ही तो है
जो साथ होती है,
जब कोई न हो
कहने सुनने को
तब कविता ही साथ
हँसती है रोती है
कहती और सुनती है
पर आज,
ये कौन सा दर्द है
ये कौन सी पीड़ा है
ये कैसा सन्नाटा है
ये कैसे ज़ख्म हैं
जिनका कोई इलाज
कोई मरहम
कोई सुकून
बन न पा रही
मेरी कविता।
-0-

2-सुनीता शर्मा ,गाजियाबाद


सुनो !!! तुम
कविता लिखना
छोड़ दो ....
उसने कहा,
कविता तो ....
लय -तालबद्ध
से परे .....
केवल तुम्हारे
मन की त्रास
बुझाती है ,
तुम .... पहले
कवि बनने के लिए
सारथी ढूँढना
सोने के , मोती के
हार- सा सम्मान
पहनाने वाले
क्योंकि;
आज असली कवि
तो झोले में दिखता है
और आज का कवि
केवल नोटों पर बिकता है
तो सुनो कवि
तुम अभी स्वयं को
तराशो हीरे की भाँती
और उस सुनहरे कल
का इंतज़ार करो
जिसमे समाज में
नाम तो हो
परन्तु ....
सम्मान का ....
तिरस्कार ना ढोना पड़े
-0-

13 comments:

  1. परन्तु ....
    सम्मान का ....
    तिरस्कार ना ढोना पड़े .... वाह क्या बात कही है

    दोनो ही रचनायें बहुत सुन्दर हैं, दोनो ने अपने अपने ढंग से कविता के रूप रंग को एवं महत्तव को प्रस्तुत किया है

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  2. मंजूषा जी आपकी कविता दर्द की दवा और ज़ख्मों का इलाज करती है और सुनीता जी आपने अपनी कविता में समाज में नाम तो हो परन्तु सम्मान का तिरस्कार न हो ...सुन्दर बात कही है आपदोनो को हार्दिक बधाई .

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  3. वास्तव में सुख-दुःख बाँटने वाली कविता ज़ख्म का मरहम मानी जाने वाली कविता आज स्वयं दुखी मन की पीड़ा से आहत है वह जो स्वयं दर्द के गीत गाती है शायद अपना गुण भाव भूल गयी है , मंजूषा जी ने इस दर्द को अपने शब्दों में सुन्दरता से व्यक्त किया है बधाई ,प्राप्त सम्मान के तिरस्कार के विरोध में लिखी कविता का भाव भी सुंदर है सुनीता जी आपको भी बधाई |

    पुष्पा मेहरा

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  4. मंजूषा जी कविता के दर्द की बात खूब कही ।कविता जो कवि के मन के दुख सुख को शब्दों का बाणा पहना कर उस का मन हलका करती है ।यह कैसी विडम्बना है कि वही कविता आज अपनी पीड़ा का उपचार ढ़ूंढ़ रही है ।अच्छी अभिव्यक्ति है।और सुनीता शर्मा जी आप ने भी सामयिक बात कही समाज में जो सम्मान का तिरस्कार हो रहा है ।यह भी मन को खटकता है ।ऐसा नही होना चाहिये ।आखिर कविता को ही मुंह खोलना पड़ा । बधाई आप दोनों को संवेदना से भरी रचना के लिये ।

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  5. dono rachnaon me man moh liya bahut bahut badhai...

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  6. सुन्दर ,कोमल भावों में रची बसी दोनों कविताएँ मोहक हैं ..हार्दिक बधाई !!

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति मनोहर कविताएँ। आप दोनों को हार्दिक बधाई।

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  8. बहुत सुन्दर रचनाएँ...मेरी बधाई आप दोनों को...|

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  9. dono kavitayen sunder bavon se bhari hai aur sach kahti hai
    badhai
    aap dono ko
    rachana

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  10. दोनों कविताएँ मनमोहक,भावपूर्ण ।मँजूषाजी ,सुनीता जी बधाई।

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  11. मन को छू लेने वाली दोनों ही कविताएँ !
    बहुत-बहुत बधाई मंजूषा जी एवं सुनीता जी !!!

    ~सादर

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  12. कविता की पीड़ा उड़ेलती कविता।

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  13. दोनो ही रचनायें बहुत सुन्दर हैं, मन को छू लेने वाली !
    बहुत-बहुत बधाई मंजूषा जी एवं सुनीता जी !!!

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