पथ के साथी

Wednesday, March 19, 2008

लिखो


जब लिखो मीत लिखो ।
हार मत जीत लिखो ॥
नफ़रत के द्वार पर
सिर्फ़ तुम गीत लिखो।
……………………………
गाते चलो
अँधेरों को ठोकर लगाते चलो ।
उजालों से दामन सजाते चलो ।
आँसुओं की कहानी जीवन नहीं ।
मत आहें भरो ,गीत गाते चलो ॥
……………………………………
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
19 मार्च 2009

2 comments:

  1. नाकारात्मक सोच वाले आज के वातावरण में ऐसी ही सकारात्मकता की ज़रूरत है। "नफरत के द्वार पर, सिर्फ़ तुम गीत लिखो" की जगह ऐसा हो - नफ़रत के द्वार पर, सिर्फ़ प्रेम-गीत लिखो…" तो कैसा रहे।
    -सुभाष नीरव

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  2. प्रेम शब्द लिखने से एक मात्रा बढ़ जाएगी । यदि 'प्रेम का गीत लिखो' तो सही होगा।
    'हिमांशु'

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