1....क्योंकि तुम वृक्ष हो..
- डॉ.शिवजी श्रीवास्तव
तुम-
हमारी ही तरह ,
पलते हो ,बढ़ते हो,
फलते हो, फूलते हो ,फैलते हो
फिर भी हमसे कितने अलग दिखते हो
क्योंकि,
तुम वृक्ष हो मनुष्य नहीं।
दो गज ज़मीन भी तो नहीं चाहिए तुम्हें
बस,बित्ते भर जगह में
खड़े हो जाते हो,
हवा से, धूप से ,
मिट्टी से और पानी से
अपना जीवन चलाते हो।
धरती से खींच कर प्राण रस
अपनी ऊर्जा से मीठे फल बनाते हो,
दुनिया भर को खिलाते हो,
और खुद
आनन्द से नाचते हो/गाते हो/ताली बजाते हो
क्योंकि तुम वृक्ष हो मनुष्य नहीं।
तुम्हारा अनंत विस्तार,
तुम्हारा विराट रूप भी
आतंकित नहीं करता किसी को
क्योंकि तुम जितना ऊपर बढ़ते हो
भीतर भी उतना ही उतरते हो,
तुम्हें किसी से ईर्ष्या नहीं/द्वेष नहीं
तुम्हारे अंदर मद नहीं/मत्सर नहीं/मोह नहीं।
तुम्हें किसी से कुछ लेना नहीं
बस देना ही देना है।
तुम्हारे अंदर
लय है,गति है
नृत्य है गीत है
आनन्द संगीत है
और
सारे ज़माने पर
लुटाने के लिए प्रेम है,बस प्रेम है
क्योंकि
तुम वृक्ष हो मनुष्य नहीं।
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2.गौरैया बनाना
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-डॉ. शिवजी श्रीवास्तव
प्रभु,
मुझे अगले जन्म में गौरैया बनाना.
क्योंकि गौरैयों के मुखौटे नहीं होते.
गौरैयों में बडे या छोटे नहीं होते।
गौरैया नेता नहीं होती,
गौरैया अभिनेता नहीं होती,
गौरैया में धर्म-जाति के झगड़े नहीं होते
गौरैया मे बात-बेबात के लफ़ड़े नहीं होते
गौरैया बस गौरैया होती है.
जाने कहाँ-कहाँ से चुन-चुनकर तिनके लाती है
अपने गौरा के साथ मिलकर नीड़ बनाती है,
अलस्सुबह,
पंख फड़फड़ाती है,
प्रेम गीत गाती है
ला-ला कर दाने अपने चूजों को चुगाती है
और फिर,
शाम को नीड
मे लौट कर ,
गौरा के शीश पर शीश टिकाकर
प्रेम से सो जाती है।
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विमोहा छन्द में तेवरी-(212 2120
रमेशराज
ज़िन्दगी लापता
रोशनी लापता।
फूल जैसी दिखे
वो खुशी लापता।
होंठ नाशाद हैं
बाँसुरी लापता।
लोग हैवान-से
आदमी लापता।
प्यार की मानिए
है नदी लापता।
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डॉ शिवजी श्रीवास्तव जी द्वारा रचित कविता क्योंकि तुम वृक्ष हो ...मनुष्य और वृक्ष की मनोदशा के अंतर को बखूबी दर्शा रही है | गौरैया बनाना ... नामक कविता में भी कितनी सरलता है जो मानव को एक साधारण जीवन की शिक्षा देती है |रमेश जी द्वारा रचित विमोहा छन्द में तेवरी पढी ज़िन्दगी लापता रौशनी लापता | आप दोनो रचनाकारों को इसके लिए हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteसविता अग्रवाल'सवि'जी हार्दिक धन्यवाद
Deleteबेहद सुन्दर रचना हार्दिक बधाई आदरणीय!
ReplyDeleteशिवजी जी एवं रमेश जी आपको बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteतीनों रचनाएँ बहुत सुंदर....
डॉ. पूर्वा जी हार्दिक धन्यवाद
Deleteशिवजी एवं रमेश जी बहुत सुन्दर रचनाएँ आप दोनों की।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteडॉ. सुरंगमा जी हार्दिक धन्यवाद
Deleteशिवजी की रचनाएँ क्योंकि तुम वृक्ष हो तथा गौरैया बनाना सरल . सहज होते हुए भी बहुत गहरी बात कह रही हैं।बधाई आपको ।
ReplyDeleteरमेशराज जी की विनोदी छंद में तेवरी बहुत सुंदर है ।
लोग हैवान से
आदमी लापता है।
सम्मान्य सुदर्शन रत्नाकर जी हार्दिक धन्यवाद
Deleteविमोहा छंद
ReplyDeleteआदरणीय शिवजी भैया, कितनी सरलता से आपने इतनी गहन बात कह दी, बहुत आनन्द आया -'क्योंकि तुम जितना ऊपर बढ़ते हो, भीतर भी उतना ही उतरते हो...,(जो शायद मनुष्य कभी नहीं कर पाता है) 'गौरैया बस गौरैया होती है...', बहुत सुंदर, आपको ढेरों शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteरामेशराज जी को भी सुंदर तेवरी के लिए बधाई!!
धन्यवाद प्रीति बहिन
Deleteसभी रचनाएँ बहुत उम्दा। शिवजी एवं रमेश जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद कृष्णा जी
Deleteबहुत सुन्दर रचनाएँ...बहुत बधाई...|
ReplyDeleteआ. शिवजी ... बहुत ही सुंदर कविताएँ हैं -वृक्ष की उदारता सचमुच अतुलनीय है! प्यारी गौरया तो बहुत ही मासूम सी दिल को लुभाने वाली है! बहुत-बहुत बधाई आपको इस ख़ूबसूरत सृजन हेतु!
ReplyDeleteआ. रामेशराज जी... विमोहा छंद में काफ़ी गहन बातें कही हैं! बहुत सुंदर! बहुत-बहुत बधाई!
~सादर
अनिता ललित
ReplyDeleteबेहद सुन्दर रचनाएँ... आद.शिवजी एवँ आद.रमेश जी को हार्दिक बधाई!!
उम्दाभिव्यक्ति आदरणीय शिव श्रीवास्तव जी
ReplyDeleteसमस्त विद्वजनों द्वारा विमोहा छंद में रचित तेवरी की सराहना हेतु सभी का आभारी हूँ। अग्रज हिमांशु जी ऐतिहासिक कार्य कर रहे हैं, अवश्य ही सुनहरे अक्षरों में दर्ज होगा।
ReplyDelete*रमेशराज