पथ के साथी

Friday, August 25, 2023

1365-अनुभूतियाँ

 

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'


1-अनुभूति

हे मेरे प्राणों के प्राण!

तू मेरे हर दुख का त्राण।

तुझसे मेरे तीनों लोक

तुम हर लेते मेरे शोक।

कभी न होना मुझसे दूर

तुम मेरे नयनों का नूर।

( 15मात्राओं का बना)

25/8/2023

-0-

अभिव्यक्ति

ईर्ष्या की लू लपट से तन जला,मन भी जला।

राख केवल अब बची किरदार ऐसे हो गए

22/8/2023

दोहा

न से हँसते वे दिखे,जो मन से बीमार                      

मन मिलने पर टूटती, जो खींची दीवार  

22/8/23

 

 

15 comments:

  1. सुंदर! बहुत बहुत बधाई।

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  2. बहुत सुंदर अनुभूति एवं अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

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  3. बहुत ही सुन्दर, हार्दिक बधाई आपको
    सादर
    सुरभि डागर

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  4. बहुत सुंदर अनुभूति,अभिव्यक्तिऔर दोहा तो अनुपम।हार्दिक बधाई।

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  5. अति सुन्दर-भावपूर्ण सृजन। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय।

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  6. बहुत सुंदर सृजन...हार्दिक बधाई आपको।

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  7. बहुत सुन्दर

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  8. बहुत ही सुंदर

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  9. तन से हँसते वो दिखे....भावपूर्ण रचना! धन्यवाद आदरणीय।

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  10. अत्यंत सुंदर आदरणीय सर जी... 🌹अति भावपूर्ण अभिव्यक्ति 🌹🙏

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  11. सुन्दर, बहुत सुन्दर सर ! हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  12. भावपूर्ण और उत्कृष्ट सृजन, हार्दिक बधाई शुभकामनाएं

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  13. भाई कम्बोज जी , अनुभूति और अभिव्यक्ति दोनो ही अपने आप में पूर्ण हैं हार्दिक बधाई । सविता अग्रवाल “सवि”

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  14. अनूठी अभिव्यक्ति

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  15. बहुत सुंदर और अर्थपूर्ण। हार्दिक बधाई भइया।

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