रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1-अनुभूति
हे मेरे प्राणों के प्राण!
तू मेरे हर दुख का त्राण।
तुझसे मेरे तीनों लोक
तुम हर लेते मेरे शोक।
कभी न होना मुझसे दूर
तुम मेरे नयनों का नूर।
(
15मात्राओं का बना)
25/8/2023
-0-
अभिव्यक्ति
ईर्ष्या की लू लपट से तन जला,मन भी जला।
राख केवल अब बची किरदार ऐसे हो गए ।
22/8/2023
दोहा
तन से
हँसते वे दिखे,जो मन से बीमार ।
मन मिलने पर टूटती, जो खींची दीवार ॥
22/8/23
सुंदर! बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अनुभूति एवं अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर, हार्दिक बधाई आपको
ReplyDeleteसादर
सुरभि डागर
बहुत सुंदर अनुभूति,अभिव्यक्तिऔर दोहा तो अनुपम।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteअति सुन्दर-भावपूर्ण सृजन। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन...हार्दिक बधाई आपको।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteतन से हँसते वो दिखे....भावपूर्ण रचना! धन्यवाद आदरणीय।
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर आदरणीय सर जी... 🌹अति भावपूर्ण अभिव्यक्ति 🌹🙏
ReplyDeleteसुन्दर, बहुत सुन्दर सर ! हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteभावपूर्ण और उत्कृष्ट सृजन, हार्दिक बधाई शुभकामनाएं
ReplyDeleteभाई कम्बोज जी , अनुभूति और अभिव्यक्ति दोनो ही अपने आप में पूर्ण हैं हार्दिक बधाई । सविता अग्रवाल “सवि”
ReplyDeleteअनूठी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर और अर्थपूर्ण। हार्दिक बधाई भइया।
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