अंजू खरबंदा
शादी के उपहारों में
ससुराल के रिश्तेदारों की ओर से
मुझे मिला था एक चाँदी का गुच्छा
जो पड़ा रहा वर्षो तक अलमारी में!
सामान सहेजते हुए
अक्सर ही हाथ में लेकर उसे
निहारती देर तक
तक समझ नहीं थी
कि ये सिर्फ चाबी का छल्ला भर नहीं है
इससे जुड़ा है पूरा परिवार
परिवार से जुड़ा हर सदस्य
हर सदस्य की सौ- सौ परेशानियाँ
उन परेशानियों का हल ढूँढने की जिम्मेदारी!
सासू माँ के
जाने के बाद
जब जिम्मेदारियाँ सिर पर पड़ी
निभाना पड़ा सब अकेले ही
हर रिश्ते की सार-सँभाल करते -करते
कितनी ही बार याद करती हूँ
कि ऐसे वक़्त सासू माँ क्या करती
कौन-सा लेती निर्णय
किससे करती सलाह-मशवरा
रिश्तों को निभाते-निभाते
उलझनों से घिरी मैं
महसूस करती हूँ बेहद करीब
स्नेहमयी सासू माँ को
उसके द्वारा लिए गए निर्णयों को
उन निर्णयों पर अडिग रहने के
उनके विराट व्यक्तित्व को!
वे सास होते हुए भी
मेरे अंग- संग माँ-सी रही
माँ होते हुए सास भी बनी रहीं
मुश्किल घड़ियों में
बस याद आती है
सासू माँ!
और तब चाँदी का भारी गुच्छा
एकाएक लगने लगता है भारहीन!
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(13 मार्च 2023)
रिश्तों की गरिमा का निर्वाह करती स्त्री के मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति।बधाई अंजू खरबंदा जी।
ReplyDeleteखूबसूरत पंक्तियाँ।
ReplyDeleteसुंदर रचना।बधाई आपको।
ReplyDeleteसुदर रचना।
ReplyDeleteबधाई आपको।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteखूब आभार प्यारी दी ❤️🌹
Deleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीया
सादर
बहुत प्यारी रचना!
ReplyDeleteसादर
अनिता ललित
धन्यवाद जी 😊🌹
Deleteअत्यंत सुंदर सृजन 🌹🙏😊
ReplyDeleteWaah
ReplyDeleteआभार
Deleteकविता में सासू माँ बनाम.माँ के भावनात्मक रिश्ते की गर्माहट चाँदी के गुच्छे से होती हुई पाठक तक पहुँच गई है । बधाई प्रिय अंजू ।
ReplyDeleteविभा रश्मि
बहुत सुंदर रचना...बधाई आपको।
ReplyDeleteहार्दिक आभार 🌹🌹
Deleteबहुत ही सुंदर
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