पथ के साथी

Tuesday, April 26, 2022

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1-केवट प्रसंग (चौपाई छंद )

 सुशीला धस्माना मुस्कान

वन  की  ओर  चले  रघुराई।


पावन  गंगा  मग   में  आई।।

प्रभु  केवट  को  परिचय देते।

चरण-धूलि   केवट  हैं  लेते।।1।।

 

दूर   वनों   में   हम अब  जाते।

मातु-पिता का वचन  निभाते।।

तुम  निज  नाव  हमें   बैठाना।

गंगा   पार    हमें    है  जाना ।।2।।

 

बड़े   भाग   रघुनाथ   पधारे।

जाग   गये हैं   पुण्य   हमारे।।

कई जन्म  है बाट   निहारी।

कृपा हो ग अवध  बिहारी।।3।।

 

जन्मों  से  थी  यह  अभिलाषा।

जाने  प्रभु  मम  मन की भाषा।।

श्यामल छवि प्रभु मुझको भाती।

दरस -आस थी  मुझे  जिलाती।।4।।

 

चरणन रज की महिमा न्यारी।

पाहन    बनता   सुंदर नारी।।

नाव   काठ   मेरी    रघुराई।

यह तो नार  शीघ्र बन जाई।।5।।

 

यही जीविका   नाथ हमारी।

खाए क्या  फिर संतति सारी।।

नाथ   उतारें  आप   खड़ाऊँ ।

पग पखार प्रभु   नाव चढ़ाऊँ।।6 ।।

 

मीठे बैन व चतुर  सुजाना।

समझ गये रघुवर भगवाना।।

प्रभु बैठाए  तरुवर   छाया।

केवट ने पानी   मँगवाया।।7।।

 

भूमि  बैठ  तब  पाँव  धुलाए।

निज परिजन सब बेगि बुलाए।।

चरणामृत  उन  सबने  पाया।

अपना जीवन  सफल  बनाया।।8।।

 

चरण   पोंछ    आसन  बैठाए।

केवट  जीवन  निधि  हैं पाए।।

कंदमूल  फल   केवट    लाया।

प्रभु को भोजन तब करवाया।।9।।

 

नाव चढ़ा तब   पार उतारा।

प्रभु ने मन में तुरत  विचारा।।

सीता पिय  का मन पहचाने।

मुँदरी    देनी   है यह जाने।।10।।

 

मुँदरी     देते    हैं    रघुवीरा ।  

हाथ  जोड़  बोला  मतिधीरा ।।

केवट , केवट  दोनों   भाई।

फिर  कैसे  लूँ   मैं उतराई।।11।।

 

प्रभु  आए  जब मेरे द्वारे।

मैंने  प्रभु तब पार उतारे।।

ले परिवार घाट जब आऊँ।

बदला नाथ तभी मैं  पाऊँ।।12।।

 -0-

2-कुण्डलिया

डॉ. उपमा शर्मा 

1


रीते जीवन में सभी
,रंग और सब राग।

आन बसो तुम जब हृदय, मन हो जाये फाग।

मन हो जाये फाग,प्रेम की रितु ये आई।

कलित कुंज में रास, मनोहर ज्यों सुखदाई।

मुदित हुआ मन मग्न,नेह में हर पल बीते।

हृदय तुम्हारा वास,रहे अब राग न रीते।

2

जाऊँ जब मैं ले विदा, होना नहीं उदास।

 उड़ जाते पंछी सदा, कब रहते वो पास।

कब रहते वो पास, गेह बाबुल का न्यारा।

छूटा मुझसे साथ, लगे पिय का घर प्यारा।

थामा पिय का हाथ, दुआयें सबकी पाऊँ।

मैया हो न उदास, विदा हो जब मैं जाऊँ।

 

11 comments:

  1. बहुत बहुत आभार व धन्यवाद, भ्राता श्री , मेरी रचना को इस प्रतिष्ठित पत्रिका में!
    आदरणीय डाक्टर उपमा शर्मा की कुंडलियां बहुत भी हृदयस्पर्शी हैं ! विशेषकर दूसरी कुंडलिया में विवाहोपरांत विदा लेती दुहिता के मुख से अपनी जननी से जो विरह भीने शब्द उच्चरित हुए हैं बहुत ही भावपूर्ण हैं! हार्दिक बधाई आपको आदरणीया!

    -सुशीला धस्माना 'मुस्कान'

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  2. बहुत ही सुंदर रचना।
    आप दोनों को हार्दिक बधाई।
    आदरणीया सुशीला जी का सहज साहित्य परिवार में हार्दिक स्वागत है।

    सादर

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  3. आप दोनों की रचनाएँ बहुत ही ह्रदयस्पर्शी है। आपको आपकी रचनाएँ प्रकाशित होने पर हार्दिक बधाई।

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  4. बहुत मनभावन, आप दोनों को ढेरों बधाई

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  5. वाह! दोनों रचनाकारों की रचनाएँ बड़ी ही मनभावन। पढ़कर बहुत आनन्द आया। आप दोनों को हार्दिक बधाई।

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  6. बहुत सुंदर रचनाएँ। सुशीला जी एवं उपमा जी को हार्दिक बधाई।

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  7. बहुत ही भावपूर्ण रचनाएँ

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  9. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचनाएं। रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

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  10. बहुत भावपूर्ण रचनाएँ...आप दोनों को हार्दिक बधाई।

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  11. सुशीला जी एवं उपमा जी, आप दोनों की रचनाएँ बहुत सुन्दर, आप दोनों को हार्दिक बधाई.

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