रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
मन दर्पन
दरक गया जब,
बिखर गया
सारा सुख-जीवन ।
पाती अनाम
आती है आजकल
लूटे किसने ?
वे प्यारे सम्बोधन ।
आदि बेनामी
नहीं कुछ भीतर ,
लिये उदासी
हो रहा समापन ।
कोई न जाने
वह चुप्पी का दंश,
खूब रुलाए
साँसों पर बन्धन ।
सपने खोए
ज्यों गर्म तवे पर
थे आँसू बोए
किया सब तर्पण ।
कहाँ कन्हैया ?
गुम कहाँ बाँसुरी
भटके राधा
शापित वृन्दावन ।
मज़बूरी जो
हम वह भी जाने
व्याकुलता से
भरे, नयन करें
दु:ख का आचमन ।
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भाई साहब, आपने यह जानकारी देकर बहुत अच्छ किया। कईबार हाइकु में जब बात पूरी नहीं हो पा रही होती है तो एक पंक्ति की और ज़रूरत महसूस होती है। अगर मैं सही हूँ तो यह कमी चौका में पूरी हो सकती है। आपका यह चौका गीत बहुत सुन्दर और सटीक उदाहरण बन कर सामने आया है। बहुत बहुत धन्यवाद आपका इतनी महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए।
ReplyDeleteसही शब्द 'चोका' है जिसे मैं 'चौका' लिख गया हूँ। क्या करूँ, अभी अभी आईपीएल का खुमार खत्म हुआ है। 'चौका' 'छक्का'ही जेहन में बसा है।
ReplyDeleteअति सुन्दर, भाव... अद्भुत रचना... मन दर्पन / दरक गया जब / बिखर गया / सारा सुख-जीवन....इतनी सहजता से सरल शब्दों में पूरा का पूरा जीवन दर्शन व्यक्त हो गया
ReplyDeleteचुप्पी का दंश,/ खूब रुलाए /.एकदम सच्ची बात... चुप्पी का दंश सबसे जादा पीड़ा देता है... और
".सपने खोए / ज्यों गर्म तवे पर / थे आँसू बोए " गर्म तवे पर आँसू बोने की कल्पना तो एकदम अनूठी है, यह तो एकदम अभिनव प्रयोग है ...
बहुत सुन्दर ..हर चोका गहन बात कहता हुआ
ReplyDeleteकोई न जाने
ReplyDeleteवह चुप्पी का दंश,
खूब रुलाए
साँसों पर बन्धन ।
ख़ूबसूरत पंक्तियाँ! बहुत ही सुन्दर, शानदार और लाजवाब हाइकु ! बेहतरीन प्रस्तुती!
मज़बूरी जो
ReplyDeleteहम वह भी जाने
व्याकुलता से
भरे, नयन करें
दु:ख का आचमन ।bahut sunder rachanaa.badhaai aapko.
please visit my blog and leave a comment.thanks
fir ek nai vidha .kya baat hai .aapke pas jankariyon ka khazana hai .ab to lagta hai sikhne ko ye umr kuchh kam hai.
ReplyDeletekitna sunder likha hai .
lute kisne pyare sambodhan kitna sunder likha hai
chup ka dansh kamal
ek ek shabd bemisal
saader
rachana
कोई न जाने
ReplyDeleteवह चुप्पी का दंश,
खूब रुलाए
साँसों पर बन्धन ।...
बहुत अच्छी रचना और नई विधा के बारे में जानकारी मिली धन्यवाद
आप जैसे साहित्यकार की कविता पर टिप्पणी देने में बहुत संकोच अनुभव कर रहा हूं । साहित्यिक पत्रिकाओं के माध्यम से आपके नाम से परिचित हूं। धृष्टता क्षमा करे। किसने लूटे प्यारे सम्बोधन केवल इसकी ही व्याख्या की जाये तो एक अच्छा खासा लेख तैयार हो जाये। ये ही क्यों 'चुप्पी का दंश रुलाये' ' गर्म तवे पर आंसू बोना' बांसुरी गुम होना' माने संसार से स्नेह प्रेम आनंद आल्हाद उमंग का खत्म हो जाना । यदि मै यह लिखता हूं कि अच्छी कविता लिखी है तो ऐसा लगेगा जैसे कोई बच्चा बाबा रामदेव से कहरहा हो कि अच्छा अनुलोम विलोम किया है।
ReplyDeleteरामेश्वर जी ,
ReplyDeleteआप एक ऐसे इन्सटीट्युशन हो जहाँ साहित्य की हर विधि में लिखा ही नहीं जा रहा बल्कि लिखना सिखाया जाता है | हम को आपके छात्र बनने का रब ने मौका दिया जिसके लिए हम रब और आपका धन्यवाद करते हैं |
आज चोका लिखने की नई विधा से परिचित हुएँ हैं !
जादू भरा है
अक्षर -अक्षर में
हम तो मानो
यूँ तेरी कलम के
कायल हुए
शब्दों से बुनी ऐसे
फुलकारी हो जैसे !
हरदीप
deri se aane ke liye maafi chaungi...
ReplyDeleteye vidha bahut pasnd aayi..in panktiyon ne man moha liya...
सपने खोए
ज्यों गर्म तवे पर
थे आँसू बोए
saral bhasha me saral kavitaye padne me achchhi lagti hai
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