दोहे
सुशीला शील
1.
धरती हमको पोसती, कर नाना उपकार।
शीतल जल, फल सँग हवा, सुंदरतम उपहार।।
2.
धरती को तू माँ समझ, देख हुआ क्या हाल।
चोटिल अंग-प्रत्यंग हैं, बेटा बन संभाल।।
3.
हरी-भरी रखना धरा, कहीं न जाए सूख।
डॉलर-रुपयों से नहीं, मिटे पेट की भूख।।
4.
धरती-सी रहना सदा, सहना दुख चुपचाप।
ठंडी-ठंडी छाँव दे, हरना जग का ताप।।
5.
गरजे पर बरसे नहीं, और बढ़ायी प्यास।
निर्मोही बादल हुए, तनिक न आए पास।।
6.
लहकी फसलें खेत में, शीतल बहे बयार ।
हलधर का पुलका जिया, पा धरती का प्यार।।
7.
पीली चूनर ओढ़कर, कर पूजा के फूल।
कहती संत वसुंधरा, चल मन हरि के कूल ।।
8.
हर मुश्किल छोटी लगे, पड़ें जहाँ भी पाँव।
मीत मिलें पग-पग तुझे, बस ख़ुशियों के
गाँव।।
9.
न्यायपालिका ही नहीं, करे समय पर न्याय।
दुखियारे फिर अन्य क्या, बोलो करें उपाय।।
10.
श्वेत-श्याम सब सामने, हों मौजूद प्रमाण।
घोटें न्यायाधीश क्यों, वहाँ न्याय के प्राण।।
11.
लोकतंत्र के ह्रास को, रोको करो उपाय।
भ्रष्टाचारी को सजा, जनता को दो न्याय।।
बहुत सुंदर....👏👏
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दोहे, हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteअति सुंदर। हार्दिक बधाई।सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दोहे...हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे दीदी 🙏👌👌🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
मीठे दोहों के लिए हार्दिक बधाई।
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