डॉ .उपमा शर्मा
1
माता होती गुरु प्रथम,सविनय करो प्रणाम।
माँ के चरणों में सदा, बसते चारों धाम ।
बसते चारों धाम, ज्ञान नितदिन ही बाँटें
कर कष्टों को दूर, चुने ये पथ के काँटे।
कह उपमा यह बात, जुड़ा जीवन का नाता।
रखती अपने गर्भ ,साँस देती है माता।
2
देते हमें प्रकाश वो ,आप जले ज्यों दीप।
गुरु रहे यूँ सँवारते,मोती उगले सीप।
मोती उगले सीप, चमक गुरु से ही पाते।
माटी रख कर चाक, सलौना रूप बनाते।
बन जायें पतवार, वही नैया यूँ खेते।
उपमा जोड़े हाथ, गुरु जब ज्ञान हैं देते।
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बहुत सुंदर गुरु वंदना
ReplyDeleteमंजु मिश्रा
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वाह ! उपमाजी दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर । बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteवाह ! गुरु वंदन के सुन्दर वचन
ReplyDeleteबधाई उपमा जी
बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ. बधाई उपमा जी.
ReplyDeleteगुरु वंदन करती बहुत भावमय कुण्डलियाँ । बधाई प्रिय उपमा ।
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण रचना...आदरणीया 🙏🌹💐💐💐🌹🌹
ReplyDeleteसुंदर, भावपूर्ण छंद रचना,, हार्दिक बधाई।--परमजीत कौर 'रीत'
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...हार्दिक बधाई
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