1-जल (चौपाई)
ज्योत्स्ना प्रदीप
कितना प्यारा निर्मल जल है
वर्तमान है ,इससे कल है ॥
घन का देखो मन उदार है
खुद मिट जाता जल अपार है ॥
ज्यों गुरु माता ज्ञान छात्र को
नदियाँ भरती सिन्धु-पात्र को ।।
सागर कितना तरल -सरल था
निज सीमा में इसका जल था।।
मानव की जो थी सौगातें
अब ना करती मीठी बातें
॥
सागर झरनें , नदी ,ताल ये
कभी सुनामी कभी काल ये ॥
दुख से भरती भोली अचला
कैसा जल ने चोला बदला ।।
धर्म -कर्म हम भुला रहे है
सुख अपनें खुद सुला रहे है।।
मिलकर सब ये काम करें हम
आओ इसका मान करे हम।।
जल को फिर से सुधा बनाओ
जल है जीवन , सुधा बचाओ
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बहुत ही बढ़िया article है ..... ऐसे शेयर करने के लिए धन्यवाद। :) :)
ReplyDeleteशुभ प्रभात..
ReplyDeleteज्योत्स्ना प्रदीप की उच्चारण गलत है
सही यह होना चाहिए..
ज्योत्सना प्रदीप..
कृपया क्षमा करिएगा
सादर
ज्योत्सना ग़लत है । आप पहले शब्दकोश देख लेते , तब टिप्पणी करते। हिन्दी/ संस्कृत के कोश में देखिए्गा। सही है -ज्योत्स्ना। आप सम्पादक हैं, सुधार कर लीजिए।
Deleteजल के महत्व को समझती चौपाई छंद में लिखी रचना बहुत सुंदर और सार्थक ज्योत्स्ना जी हार्दिक बधाई सखी
ReplyDeleteमानव की जो थी सौगातें
ReplyDeleteअब ना करती मीठी बातें ॥
सागर झरनें , नदी ,ताल ये
कभी सुनामी कभी काल ये ॥
बहुत खूब ,सुंदर रचना
सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर निर्मल रचना सखी !
ReplyDeleteहार्दिक बधाई !
आद. भैया जी का साथ ही आप सभी का हृदय से आभार !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ज्योत्स्ना जी बधाई।
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