1-दोहा
मंजूषा मन
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गौरैया उड़ जा अभी, बुरे हुए हालात।
आ जाना उस रोज़ जब, बीते दुख की रात।।
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2-राख
मंजूषा मन
कुरेदते रहे
मुद्दतों तक
रिश्तों पर जमी राख,
इसी उम्मीद में
कहीं शायद बची होगी
थोड़ी सी आँच
थोड़ी तपन....
जितना टटोला,
जितना खोला
यही पाया
हरबार
कि बुझ चुकी थी आग
लम्बे अरसे से,
बच रही थी
सिर्फ और सिर्फ राख...
जो उड़ -उड़कर
ढकती रही चेहरे के रंग
बनाती रही सब कुछ
बदरंग।
अब जुटाने होंगे
नये साधन
फिर सुलगाने के लिए
एक नई आग।
-0-
3-अपने हिस्से का अमृत
कृष्णा वर्मा
भीतर की बारादरी में
भटकती
बेस्वाद कसैली यादों का
बोझ
उनींदी रातें खिंडता
सुकून
और लम्बी सूनी
दोपहरियाँ
आठों पहर - इस बिन्दु के आस-पास
चकरघिन्नी सी घूमती
थक गई है ज़िंदगी - इस
व्यवसाय से।
साय की तरह साथ चलती
मेरी तन्हाई
और चिन्दी-चिन्दी होता
मेरा मन
शून्य में टटोलता है
नित कुछ नया
मेरी ग़ैरत मेरी
खुद्दारी
फड़फड़ा रही है घायल पंछी
-सी
और मैं ! तड़ से पड़े
तमाचे के ताप से
तमतमाई गाल- सी खड़ी हूँ स्तब्ध
बहुत हुआ नहीं सह
पाऊँगी और
काटनी ही है अब
मुझे
अपने संस्कारों से जुड़ी
परम्पराओं की नाल
पैरों की गति के आड़े
आती
यह रुनझुनाती साँकलें
नहीं चाहिए मुझे अब
जीने को
तुमसे उधार की साँसें
बंद करो अब तुम -खेलना
यह चौसर
क्योंकि नहीं लगना मुझे
अब तुम्हारे दाव पर
पाना है मुझे मेरी
मुठ्ठी में बंद
अब मेरा अपना सूरज
सिरजना है अब अपने ही ढंग
से
मुझे अपना वजूद
आसमाँ की अलगनी पर
टाँग कर अपनी नाम पट्टी
गढ़्नी है मुझे एक
अद्भुत पहचान
ताकी लौटा सकूँ तुम्हें
सूद समेत
तुम से ही मिली जीवन भर
की तमाम पीड़ाएँ
तुम्हारे भ्रम को बल
क्या देती रहीं
मेरी मिथ्या मुसकाने
तुम ने तो यूँ समझ लिया
कि
वाकिफ हो गए तुम मेरी
नस-नस से
सुनो-तुम अपने रुतबे
में ऐसे अंधे हुए
यह तक ना जान पाए कि कब
अपने हिस्से का अमृत
पीने की ठान ली मैंने।
-0-
मंजूषा मन जी का दोहा व कविता बहुत सुंदर । कृष्णा वर्मा जी की कविता अपने हिस्से का अमृत उम्दा रचना । आप दोनों को बेहतरीन रचनाओं के लिये हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteमंजूषा मन जी का दोहा व कविता बहुत सुंदर । कृष्णा वर्मा जी की कविता अपने हिस्से का अमृत उम्दा रचना । आप दोनों को बेहतरीन रचनाओं के लिये हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन मंजूषा जी
ReplyDeleteकृष्णा जी बहुत भावपूर्ण सृजन
आप दोनों को हार्दिक बधाई
बहुत बढ़िया दोहा और कविता मंजूषा जी...बधाई आपको!
ReplyDeleteमेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आ० भाई काम्बोज जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
मंजूषा जी दोहा बहुत उम्दा...
ReplyDeleteमंजूषा जी का दोहा और राख कविता और कृष्णा जी की अपने हिस्से का अमृत बहुत भावपूर्ण कविता हैं आप दोनों को बधाई |
ReplyDeleteमंजूषा जी आप का दोहा और कविता दोनों बहुत अच्छी लगी ।राख कविता ने तो गाँव के वो दिन याद करा दिये जब एक बार चूल्हे का काम खतम हो जाने के बाद आँच को फरोल कर पुन: आग सुलगाई जाती थी नन्ही सी चिन्गारी से ही काम चल जाता था । बहुत आच्छा वर्णन है । बधाई स्वीकारें ।
ReplyDeleteकृष्णा वर्मा जी आप की कविता जैसे हर नारी के मन की बात कहने के लिये ही लिखी गई हो ।पढ़ कर अतीव प्रसन्नता हुई । भावों की पिटारी है यह कविता । जितनी बार पढ़ो और अच्छी लगती है ।आप भी बधाई स्वीकारें ।
mnjusha ji evn krishnaa ji ,
ReplyDeleteaap donon hii hain is kalpshila ke srajan ke lie badhaaee ke paatr .Jeevan ki schchaaee aur fir unmen parwat jaisin uunchaaee aur mahasagar jaisi ghraaee hai > Ati Sunder. Manjusha ji ka Doha to hraday sparshii hai | Shiiam Tripathi -Hindi Chetna
बहुत सुंदर दोहा एवं कविता मंजूषा जी !
ReplyDeleteकृष्णा दीदी ... आपकी कविता के लिए क्या कहें... निःशब्द कर दिया ! बहुत ही सशक्त प्रस्तुति !
हार्दिक बधाई आप दोनों को इस सुंदर सृजन के लिए !!!
~सादर
अनिता ललित
मंजूषा जी, बहुत कमाल लिखती हैं आप...|
ReplyDeleteकृष्णा जी...बहुत बढ़िया...|
आप दोनों को बहुत बधाई...|