रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जब ज़िन्दगी थी, तब प्याला न था ।
जब साँसें मिलीं तब हाला न था ।
साँझ अब जीवन की चली आई,
देखा कि संग में उजाला न था ।
तभी कुछ पुराने मीत आ गए ।
साँस जितनी बची , हमें भा गए ।
दो पल की खुशियाँ बनी ज़िन्दगी
आज मोड़ पर जब उन्हें पा गए ।
बहुत अच्छा लिखा है आपने सर,सकारात्मक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबस दो पल की खुशी, और क्या चाहे जीवन ।
ReplyDeleteतभी कुछ पुराने मीत आ गए ।
ReplyDeleteसाँस जितनी बची , हमें भा गए ।
दो पल की खुशियाँ बनी ज़िन्दगी
आज मोड़ पर जब उन्हें पा गए ।bahut hi badhiya prastuti.
thanks.
यही तो ज़िंदगी है... सब कुछ सब वक़्त अपना चाहा तो नहीं होता, पर जब जो मिले उसी में आनंद उत्सव मना लें... यदि यह इंसान को आ जाये तो ज़िंदगी सफल.... निराशा में आशा का संचार करती बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसादर
मंजु
Chand panktiyon men man ke saare hi bhav udel diye ye kala aapke paas khub hai...bahut2 badhai...
ReplyDeleteखूबसूरत यथार्थ ।
ReplyDeletesandesh dete bhaav...
ReplyDeleteतभी कुछ पुराने मीत आ गए ।
साँस जितनी बची , हमें भा गए ।
sach hai ki jivan kab kaise gujar jata pata hi na chalta. jo bhi pal bacha hai pure shiddat se ji lena chaahiye. shubhkaamnaayen.
जीवन के सांझ से पहले प्रज्ज्वलित होना जीवन की रीत है और संगीत भी....बहुत सुन्दर....
ReplyDeletejeevan yahi hai .pr jo hai jitna hai usme hi khush rahna achchhi soch hai
ReplyDeletebahut khub
saader
rachana
बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना ! बधाई !
ReplyDeleteदो पल की खुशियाँ बनी ज़िन्दगी !!
ReplyDeletebahut khub sundar rachana
बहुत सुंदर प्रस्तुति,सकारात्मक,बेहतरीन रचना
ReplyDeletewelcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
bhawnaon ki sankshep mein bahut sundar abhivyakti.. achhi lagi..
ReplyDelete"जब ज़िन्दगी थी, तब प्याला न था।
ReplyDeleteजब साँसें मिलीं तब हाला न था।"
बहुत खूब...!
सुंदर भावाभिव्क्ति।
पुराने मीत से मिल दो पल कि खुशी ही काफी है जिंदगी बिताने के लिए .. बहुत सुन्दर .
ReplyDeletenice presentation...........
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