रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
हरहराती
है ऊधम मचाती
पहाड़ी नदी
2
तोड़ती तट
बिखरी धारा-लट
अल्हड़ नदी
पत्थरों पर
उचकती -कूदती
रँभाती नदी
4
कुछ न सुने
ये कुछ मनमौजी
कुछ हठीली
5
चट्टानों तक को भी
नहीं लजाती
6
खेलती कभी
खोह में घाटियों की
चोर -सिपाही
7
कैसे पकड़ें ?
तनिक भी किसी के
हाथ न आती
8
चीड़ के वन
पार करके थकी
पहाड़ी नदी
9
मन्थर गति,
चूर-चूर हो गई
सुस्ताती नदी
-0-
(सभी चित्र गूगल से साभार)
पत्थरों पर
ReplyDeleteउचकती -कूदती
रँभाती नदी
nadi ka rambhana kamal li upma hai
खेलती कभी
खोह में घाटियों की
चोर -सिपाही
chor sipahi kya moulik soch hai
हरहराती
है ऊधम मचाती
पहाड़ी नदी
sare haiku chitr sa bana rahe hain
bahut sunder
saader
rachana
bahut hi sunder chitron ke saath pahadi nadi ka sajeev chitrand.badhaai aapko.
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुती........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...बधाई
ReplyDeleteचीड़ के वन
ReplyDeleteपार करके थकी
पहाड़ी नदी
मन्थर गति,
चूर-चूर हो गई
सुस्ताती नदी
गतिशील नदी भी बहती बहती थक जाती है...
अच्छा चित्रण है|
सभी हाइकु अच्छे लगे
सादर
ऋता
नदी के अच्छे चित्र खींचे हैं हाइकु में।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दृश्य उपस्थित किया पहाड़ी नदी का ..अच्छी हाईकू
ReplyDeleteचीड़ के वन
ReplyDeleteपार करके थकी
पहाड़ी नदी
मन्थर गति,
चूर-चूर हो गई
सुस्ताती नदी
nadi,prakrti....sabka manvikarn itna khubsurati se kiya hai ki prasansha ke liye shabd hi nahi mil rahe eak saath eak rachna malum padi bahut khub bahut 2 badhai..
khubsurat prstuti...
ReplyDeleteरामेश्वर जी,
ReplyDeleteआपने पहाड़ी नदी नैट पर बहा दी.....शब्दों की नदी के साथ-साथ ....
आपके शब्दों से लिखने का बल मिलता है ...
यह हाइकु तो बस कमाल है ...इसे पढ़कर नदी की धारा की कलकल ध्वनि सुनाई देने लगी
कुछ न सुने
ये कुछ मनमौजी
कुछ हठीली
इस के हठ को मैं कुछ ऐसे कहना चाहूँगी...
मस्त बहती
यूँ कलकल ध्वनि
सुनाती नदी
तोड़ती तट
बिखरी धारा-लट
अल्हड़ नदी......इस को कुछ ऐसे भी कहा जा सकता है
तट से खेले
लहरों को धकेले
नादान नदी
आपकी कलम को मेरा सलाम !
हरदीप
सुन्दर क्षणिकायें।
ReplyDeleteआपकी पहाड़ी नदी तो… अल्हड़ किशोरी है जो धमाचौकड़ी मचाए…। कभी करे कलकल किल्लोल तो कभी हरहराकर डराए…। कभी सींचे तरु वल्लरियां…तो कभी समूल उखाड़ डाले बहा ले जाए…। खेले अक्कड़ बक्क्ड़ छूकर भागे, विजन वन खेतों को…। पहाड़ी नदी आईना दिखाए बादलों को…। मोतियों का लहंगा पहन कूदे पहाड़ी से और झर-झर झरना कहलाए…। पर जब छूटा पहाड़ पीछे…शिखर हुआ उदास …घाटियों ने दी विदाई…भोली अल्हड़ नदी…भूली चपलता…गति हुई मंथर…उड़ गई चुनरिया…फ़ैल गया आंचल …। कदम रखे वो अब संभल संभल…
ReplyDeletepahaadi nadee ka chitran bahut khoob
ReplyDeleteकुछ न सुने
ये कुछ मनमौजी
कुछ हठीली
sabhi haaiku bahut sundar, badhai Kamboj bhai.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट " ब्लोगर्स मीट वीकली {३}"के मंच पर सोमबार को शामिल किया गया है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार ०८/०८/११ कोब्लॉगर्स मीट वीकली (3) Happy Friendship Day में आप आमंत्रित हैं /
ReplyDeleteखूबसूरत! मुझे लगता है एक शब्द काफ़ी है हिमांशु जी। वैसे खूबसूरती की कल्पना की भी नही जा सकती। रचनाकार जब कुछ लिखता है और पाठक उसे पढ़कर कितना आनन्द लेता है बस कह पाता है वाह! आप समझ सकते हैं...:)
ReplyDeleteसादर