पथ के साथी

Thursday, July 6, 2023

1343- लघुकथा -अनुवाद

    रतन चन्द रत्नेश की पसन्द    

 


बिजूखा-भाषान्तर (हिमाचली)-अशोक दर्द



11 comments:

  1. ऊँचाई जितनी बार पढ़ता हूँ,पिता के प्रति श्रद्धा भाव उतना बढ़ता है।भाव जगत को मथने वाली अद्भुत कहानी।दूसरी कहानी का भाषांतर भी उत्कृष्ट है।सभी को बधाई।

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  2. ऊँचाई लघुकथा मानवीय भावनाओं को समेटती एक उत्कृष्ट रचना है। जिसे बार- बार पढने को मन करता है। अनुवाद बहुत सुंदर है। आप सबको बहुत बहुत बधाई। सुदर्शन रत्नाकर।

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  3. आधुनिकता व एकल परिवार के दौर की कड़वी सच्चाई। पहले समय में सभी एक साथ खुशी से रहते थे क्यूंकि लोगों में आत्मीयता का भाव था और इच्छाएं सीमित। आजकल इच्छाओं की पूर्ति करते करते इन्सान पूरा हो जाता है परंतु इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं। अति सुन्दर रचना। बहुत बहुत बधाई।

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  4. एक पिता ही हैं जो बिना कहे ही अपने दायित्वों को निभातें है ।
    सत्यता को दर्शाती है लघुकथा।
    बहुत बहुत बधाई आपको ।
    सादर
    सुरभि डागर

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  5. ऊँचाई कहानी सामयिक है. हर घर समाज में दीखता है. बच्चे अपनी तकलीफ़ बताते नहीं हैं पर पिता सब समझता है.
    अनुवाद किस लघुकथा का है, समझ न आया. भाषा से कथा समझ आ गई. बहुत अच्छी लघुकथा. बहुत बधाई.

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  6. "ऊँचाई" लघुकथा परिवार में पिता पुत्र के आपसी रिश्ते की कटु सच्चाई दर्शाती एक कालजयी लघुकथा है । जिसपर उम्दा लघुफ़िल्म भी बन चुकी है । हिमांशु भाई एक वरिष्ठ लघुकथाकार , कवि हैं । जिनकी पकड़ छंदविधान व मुक्त छंद पर समान रूप से है । हिमाचल की ही किसी मुख्य
    भाषा , मुझे कांगड़ी भाषा लगी , में लघुकथा अनुदित है । हिमांशु भाई और अशोक दर्द को हार्दिक बधाई ।

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  7. विभा रश्मि

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  8. ऊँचाई लघुकथा जितनी भी बार पढ़ो, उतनी बार वो उतना ही गहरा असर छोड़ती है। दूसरी लघुकथा का भाषान्तर सहजता से ग्राह्य है, तीखा कटाक्ष बेहद खूबसूरती से पाठक के दिल तक जाता है । आदरणीय कांबोज जी और अशोक जी को बहुत बधाई

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  9. आप सभी का हृदय से आभार

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  10. "ऊँचाई" रिश्तों का सत्य उजागर करती, संतान के प्रति पिता का प्रेम और चिंता को दर्शाती उत्कृष्ट लघुकथा है।
    सुंदर तंज़ करती अनूदित लघुकथा में पंजाबी शब्दों की झंकार होने के कारण उसे समझने में समय नहीं लगा। आदरणीय भाई काम्बोज जी और अशोक दर्द जी को हार्दिक बधाई ।

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  11. ऊँचाई लघुकथा जब पहली बार पढ़ी तो मन बहुत उद्वेलित हुआ। बहुत देर तक पिता की छवि आंखों में तैरते रही। नेता जी का पुतला लघुकथा भी गहरा प्रभाव छोड़ती है। लाजवाब लघुकथाओं के लिए हार्दिक बधाई भैया। प्रणाम 🙏

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