1-होशियार /
भीकम सिंह
सभी
पहाड़ों ने बताया था
घने जंगलों का
संसाधन- आधार
परन्तु
दोहन के बाद हुआ
सरंक्षण में
कहाँ-कहाँ सुधार ?
दस्तावेजों में
विकास के लिए
योजनाएँ विकसित हुई
अनेकों बार
फिर भी
जमने ना दी
शिखर पर हिम
हर बार
सामान्य से
तापमान बढ़ा
मैदान चोटियों पर चढ़ा
बेशुमार
फिर
फफककर फूटा
पहाड़ का दुःख
जोशीमठ, कभी केदार
कितने
पर्यावरणविदों ने
दिखाये स्वप्न
ले-लेकर दो-चार
और कहा-
हम बचा लेंगे
कर देंगे सब ठीक
स्कीमें हैं तैयार
होशियार! होशियार! होशियार ।
-0-
2- प्रेम सुरभि डागर
आत्मिक
प्रेम में
मगन
हो जाती हूँ
झूमने
लगता है चित ,
आत्मा
निकल शरीर से
नृत्य
करने लगती है
तेरे
नयनों के पवित्र
प्रेम
में समा जाती हूँ
प्रकृति
के समर्थन से
मिल
पाती है
तुमसे
मेरी रूह
बहने लगती है
मन्द -मन्द सुगन्ध
चहचहा
उठते हैं
मोर, पपीहा आदि,
उड़ेल
देता है चाँद
अपनी चाँदनी को
हृदय
के प्याले में
मन उड़ता रहता है
मूरली
की धुन की ओर
समा
लेते हो तुम भी
मेरे
आत्मिक प्रेम को
अपने हृदय के किसी कोने
में।।
-0-
पर्यावरण के प्रति सचेत करती सुंदर रचना। हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति। बधाई सुरभि जी। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार ।
Deleteबहुत सुंदर रचनाएँ।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीय भीकम सिंह जी एवं आदरणीया सुरभि जी को।
सादर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनाएँ।
हार्दिक बधाई आदरणीय भीकम सिंह जी एवं सुरभि जी को।
सुंदर रचनाओं के लिए भीकम सिंह जी एवं सुरभि जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ सुंदर, भीकम सिंह जी और सुरभि जी को बधाई!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteरचनाकार द्वय को हार्दिक बधाई शुभकामनाएँ
अलग अलग भावभूमि की रचनाएँ।डॉ. भीकम सिंह जी की कविता में पर्यावरण से होते खिलवाड़ की पीड़ा और कटाक्ष है वहीं सुरभि जी की कविता प्रेम के आत्मीय भाव की सहज अभिव्यक्ति है।दोनो को बधाई।
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर रचनाएँ... 🌹🌹आद. भीकम सर जी की लेखनी अनन्य है...🌹🙏आद. सुरभि जी की कविता हृदयस्पर्शी है... 🌹🙏🙏
ReplyDeleteपर्यावरण से खिलवाड़ के परिणामों को इंसान अनदेखा करके अपने पाँवों पर कुल्हाड़ी मार रहा | सार्थक रचना के लिए भीकम जी को बहुत बधाई |
ReplyDeleteमनभावन कविता के लिए सुरभि जी को भी बहुत बधाई