1-काफिर- श्री सुबोध ( पूर्व
अंग्रेज़ी-प्रवक्ता)
जो मानवता के दुश्मन है
वोही जग मे काफिर है
जो नव युवको को केवल
मौत का पाठ पढ़वाता है
स्वयं को छोड़ कर जग में
सबको काफ़िर बतलाता है
तू ख़ुद ही सोच जरा मन में
जीवन दान जब तुझे मिला
तब भी ओ मानव हित में
क्या तेरा नही ईमान हिला
जिसको तू धर्म कहता है
वो धर्म नही हो सकता है
मर्महीन होकर अब तू
यूँ ही बकता फिरता है
जब जग में न जीवन होगा
क्या तू ही बच पाएगा
निर्दोषो को पायेगा
तेरी मनसा न पूरी होगी
कितना चाहे जोर लगा
ले
तू
धर्म क्या बचा सकता
ख़ुद को ही तू आज बचा ले
भारत फिर भी भारत है
परसेवा है आदत जिसकी
पीड़ित की सेवा करना
नीति सदा रही इसकी
दमन अमन का करते हो
दमन तुम्हारा ही होगा
निर्दोष छात्र जो मारे तुमने
अब दण्ड भुगतना ही होगा
आतंकी का न धर्म कोई
तेरी इंसानियत सोई है
इंसानियत के दुश्मन तुम
सोचो अब तेरा क्या होगा
न हिन्दू मुस्लिम काफिर है
न सिख ईसाई काफिर है
जो मानवता का दुश्मन है
बस वो ही इंसा काफिर है
-0-गदरपुर, ऊधम सिंह नगर उत्तराखण्ड
2-कृष्णा वर्मा
1
कब क्यूँ और कैसे
बदला वजूद
वजह तलाशती
लगातार
रिसती रहीं स्मॄतियाँ।
कसमसाया मन
भर गया गुब्बार
झप्प से बुझा जो
आशाओं का दीप
कर गया आबनूसी
भीतरी दीवारें।
साथ ना देते
फिसल रहे थे
एकतार
ज़ुबान की हथेली से
शून्य होते शब्द।
अफ़सोस ओढ़े बैठी थीं
दो आँखें
हलदियाए चेहरे पर।
साँसों की पटरी पर
बेदम भाग रही थी
ज़िंदगी
और पसर गया था
सन्नाटा
बेरंग होंठों के घाट।
सोच के आँगन में
मौन को तोड़ती
साँसों की
आवाजाही के
कदमों की आहट
दे रही थी
मेरे ज़िंदा होने का।
सबूत।
-0-
2-मुठ्ठी भर उजियारे-कृष्णा वर्मा
जीवन के द्वंद्वों से मैंने
कभी ना मानी हार
विपदाओं से लड़-भिड़ के
की इक-इक सीढ़ी पार
शांत कहाँ भीतर बहती
लावे की सदा नदी
लगातार दे ख़बर ताव की
साँसों तपी लड़ी
ओढ़ा चिंताओं को बिछाया
पोर-पोर दुख का सहलाया
साथ ना छोड़ा उम्मीदों का
तब जा टुकड़ों में सुख पया
चहल-पहल खुशियों के सपने
आँखों बीच सजाए
चक्रवात के बीचों-बीच
हवा के महल बनाए
हमने अँधियारी रातों को
काटा गिन-गिन तारे
यूँही नहीं मिले मुठ्ठी भर
जीवन में उजियारे।
-0-
बहुत बढ़िया।
ReplyDeletebahut sundar bahut bahut badhai...
ReplyDeleteआतंकवादी का कोई धर्म होता ही नहीं और इंसान का सबसे बड़ा एवं पहला धर्म होता है 'मानवता'!
ReplyDeleteअनगिनत अँधेरी रातों के बाद ही मिलता है मुट्ठी भर उजियारा !
सशक्त एवं भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बधाई आपको सुबोध जी एवं कृष्णा जी !!!
~सादर
अनिता ललित
बहुत सार्थक रचनाएँ...| हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteदिल दहलाने वाले आतंक वाद से लोहा लेती कविता बहुत प्रभावी है सुबोध जी बधाई , हमने अँधियारी रातों को काटा गिन -गिन तारे यूँ ही नहीं मिले जीवन में\मुट्ठी भर उजियारे | कृष्णाजी सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बधाई |
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
बहुत प्रभावपूर्ण कविता सुबोध जी...बधाई!
ReplyDeleteमेरी रचनाओं को यहाँ सांझा करने के लिए आ० काम्बोज भाई जी का हार्दिक आभार। आप सभी मित्रों से मिले स्नेह के लिए बहुत धन्यवाद।
सार्थक रचनाएँ, दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई|
ReplyDeletebahut bhaavpravan rachanaayen ..haardik badhaii !
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