1-मंजूषा ‘मन’
दरिया थे
मीठे इतने कि
प्यास बुझाते
निर्मल कि पाप धो जाते
अनवरत बहे
कभी न थके
निर्बाध गति से
भागते रहे
सागर की चाह में
मिलन की आस में
न सोचा कभी
परिणाम क्या होगा
मेरा क्या होगा।
अपनी धुन में
दुर्गम राहें,
सब बाधाएँ
सहीं हँस।के
और अंत में
जा ही मिले
सागर के गले।
पर हाय!!
स्वयं को मिटाया
क्या पाया
ये क्या हाथ आया
कि
खारा निकला सागर
खाली रह गई
मन की गागर।
-0-
2- कचरा बीनते बच्चे
-कमला घटाऔरा
हे
! प्रभु ,
यह कैसी छबि
मेरे देश के नौनिहालों की।
माँ के कोमल कर नही जगातें उन्हें
दे कर वात्सल्य भरा मृदुल स्पर्श।
उठ जातें हैं अपने आप
उदित होती सूर्य
-किरणों के साथ।
पेट की भूख गुद -गुदा देती
है उन्हें
कर देती है विवश उठने को
एक झपकी और ले लें
नहीं चाह सकते इतना भी।
पलने वाले हैं झुँगी झोपड़ियों के
अभावों के आँगन में
,
ध्येय जीने का उन्हें लगता है
बस पेट की भूख मिटाना।
रात कटती है जैसे तैसे
लम्बी पहाड़- सी तारे
देखते
सोचते कब हो उजाला
चलें काम पर।
भोर उगते ही देख नभ में लाली
चल पड़ते कर्मयोगी की तरह
कन्धों पर उठाये
खाद के फटे पुराने बोरे।
भरना है जिनमें उन्हें
टूटा-फूटा काँच,बेकार लोहा
चिथड़ी हुई प्लास्टिक की बोतलें
,
उनके पैरों में गति भर देती है
चढ़ती सूर्य - किरणें।
मन में उठने वाली चिंता
कहीं उन से पहले पहुँच न जाए
कचरा उठाने वाली गाड़ी।
उन्हें खाली हाथ लौटा दे।
और उन्हें -आज का दिन
बिताना पड़े भूखे रहकर
प्रतीक्षा में अगले दिन की।
नहीं लिखा नसीब में उनके
जाएँ स्कूल, उठायें बस्ते
खेले -कूदें मस्ती
से जियें
हीं जानते मायने बचपन के।
उनका रुखा सूखा मुरझाया चेहरा
पूछता हो अपने आप से जैसे,
हमें इतनी भूख क्यों लगती है
?
-0-
ध्येय जीने का उन्हें लगता है
ReplyDeleteबस पेट की भूख मिटाना ... bahut hi marmik...
मंजूषा जी, कमला जी बहुत भावपूर्ण रचनाओं की बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी कवितायेँ हैं , कमला जी व मंजूषा जी बधाई
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
सुन्दर कविताएँ , मञ्जूषा जी और कमला जी शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteमन्जूजी, अनिता मन्डा जी ,पुष्पा मेहरा जी,आप सब का कविता के बारे विचार रखने का बहुत बहुत आभार ।सम्पादक जी का भी धन्यबाद और आभार।
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी कवितायेँ हैं , कमला जी व मंजूषा जी बधाई ... शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteमंजूषा जी मीठे पानी के सागर में मिलने पर खारे होने पर ख़ूबसूरती से भाव रखे हैं हार्दिक बधाई |कमला जी आपकी कविता बहुत मर्मस्पर्शी है |हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteकमला जी सुंदर कविता । हमने इन बच्चों के साथ काम किया है और इनको करीब से देखा है।
ReplyDeleteकमला जी बहुत से ऐसे बच्चों को शाला भेजने का अवसर मिला। भावपूर्ण कविता
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक आभार हमारी कविता पसन्द करने के लिए।
आभार
मन्जूषा जी मैं जब पंजाब में थी इन बच्चों को इस रूप में देखा था ,उन के प्रति उपजी करूणा लम्बे अरसे के बाद कविता का रूप ले कर प्रकटी ।पढ़ने वालों के मर्म को छुआ मेरा प्रायास सफल हुया आप सब का बहुत बहुत आभार ।
ReplyDeleteबहुत भावप्रवण रचनाएँ...| आप दोनों को हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति ...बहुत बधाई !
ReplyDelete