1-भावना सक्सैना
राह में जब शूल हों
गोद में लेकर बढ़े
हर तूफ़ान के सामने
बनकर शिला खड़ी रहे
तम हो जब गहरे घनेरे
विश्वास का दीपक धरे
हर ताप सहने को सदा
माँ ही बस आगे बढ़े।
-0-
2-घर- सात कविताएँ- डॉ सुधा गुप्ता
1
तिनके, धागे
कतरन , पर
नन्ही चिड़िया ने
बना लिया
घर ।
2
नन्हीं काली चिड़िया
तेज़ बारिश में
घने पेड़ के पत्तों पीछे
दुबकी बैठी रही
बारिश थमी
तो पंख फरफराके
उड़ गई/अपने घर !
3
घर,
जहाँ सुकून है
थोड़ा
किच-किच/समस्या
अभाव/ताने-तिश्ने
ज़्यादा
फिर भी काम ख़त्म होते ही
जाने को मचल उठता है
हर इंसान
अपने घर
4
घर
दो दिन घूम-फिरकर
लौटकर, आओ
तो
नया-सा लगता है घर !
5
घर,
तिनके-तिनके जोड़ा
प्राण-रस से सींचा
सजा-सँवारा
थोड़ा-सा दम्भ
थोड़ा अहंकार
कुछ ग़लतपफहमी
आए दिन
वाक्-युद्ध
न झुकने की ज़िद
उजड़ गया घर !
6
कुछ बाँस-बल्ली
कुछ छप्पर-छानी
थोड़ा-सा चून-पानी
कुछ कछरी-बिछावन
‘आले’ में रक्खे
लक्ष्मी-गणेश
माटी का चूल्हा
और कुछ जलावन
सर्वहारा का सर्वस्व ।
निर्मम बाढ़ / हरहराती आई
उसे बेघर कर
पेड़ पर टाँग
बहा ले गई घर !
7
घर उदास था
मैंने वजह पूछी
तो फफक पड़ा-
क्या कहूँ अपनी कहानी ?
मैं घर नहीं
सामान-गोदाम बना कर
रख दिया है मुझे
बड़ी सुबह / रसोई में
थोड़ी-सी चहल-पहल
रौनक़, शोर-शराबा
आठ बजते-बजते
मुझमें ताले जड़
सब चले जाते/ जाने कहाँ
पूर दिन/उदास/अकेला
ऊँघता रहा हूँ ।
रात नौ-दस लौटकर
उल्टा-सीधा खा-पीकर
अपने-अपने कमरों में
कै़द हो जाते हैं
या तो मैं गोदाम-घर हूँ
या फिर कोई होटल !
नहीं हूँ मैं घर !!
-0-
डॉ. सुधा गुप्ता ,120 बी / 2, साकेत , मेरठ– 250003
माँ तो बस माँ है भावना जी सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुधा दी ने घर की एक एक ईट का मन पढ़ लिया उत्कृष्ट रचनाये नमन :)
भावना जी माँ की भावनाओं का सुंदर चित्रण।बधाई।
ReplyDeleteआदरणीया सुधाजी घर के विविध रूपों का सरल शब्दों
में सटीक चित्रण मन प्राण प्रसन्न हो गए पढ़कर।शुभकामनाएँ।
भावना जी, सुधा जी बधाई! बहुत सुंदर रचनाएँ, इतने कम शब्दों में इतनी सारी भावनाएँ-- बिल्कुल गागर में सागर!
ReplyDeleteमाँ पर बहुत ही भावपूर्ण कविता है भावना जी बधाई |घर का महत्व बताती , घर से ही घर की व्यथा सुनवाती कविता अपने में ही अनूठी है आदरणीय सुधा दीदी
ReplyDeleteके वर्ण- वर्ण को नमन |उनकी अनुभूतियों की गहराइयों को नमन|
पुष्पा मेहरा
भावनाजी भावपूर्ण कविता सुधाजी के घर के विविध रूपों की व्यथा गाथा दिल को छू गई। बधाई।
ReplyDeleteबंधुवर, सप्रेम नमस्कार. डा. सुधा जी की घर पर कविताएँ पढ़वाने के लिए आपका आभार। घर और उससे जुडी अनेक बातें फिर से चित्रित हो उठीं। फ़ोन करके बधाई दे रहा हूँ। सानंद होंगे। आपका - भगवत सरन अग्रवाल
ReplyDeleteBhagwatsaran Agarwala
भावना जी गहरे भावों को व्यक्त करती कविता। बधाई
ReplyDeleteआदरणीय सुधा जी ने घर को विभिन्न रूपों में चित्रित किया। हर कविता ने आँखों के सामने भाव भरी तस्वीर खींच दी। नमन
aadarniya sudha ji ne ghar ke vibhinn roopon ka bada hi sajeev chitran kiya ...jo sach bhavuk karta hai
ReplyDeletema par likhi kavita behad bhaavpurn hai bhawna ji ......aise kavitao ko mera sadar naman hai !
maa par rachna achhi hai sudha ji ne ytharth likha hai...man ka kona kona hila gayi ghar par itni gahri soch sudha ko naman..
ReplyDeleteतिनके, धागे
कतरन , पर
नन्ही चिड़िया ने
बना लिया
घर ।
bahut masum lagi ye rachna...
बड़ी सुबह / रसोई में
थोड़ी-सी चहल-पहल
रौनक़, शोर-शराबा
आठ बजते-बजते
मुझमें ताले जड़
सब चले जाते/ जाने कहाँ bahut gahan bhav jaise ghar hi bol raha hai...man bheeg gaya bechare ghar ki vyatha sun tabhi main kahti hun sabse ki kitna bada ya chhota bana lo ghar lagta to tala hi hai kuchh hi ghante ham ghar men hote hain samjho ki bas sone..fir kyon maramri ki kitne rooms hon?
भावना जी माँ मन की भावनाओं का सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteबधाई!!
सब चले जाते जाने कहाँ?????इस एक पंक्ति ने हर तरह की व्यथा को वाणी दे दी है।कटु सच है जीवन का।घर घर नहीं रहे मकां हो गये हैं।कोई मतलब नहीं किसी को किसी के साथ।इंसान से ही मतलब नहीं है तो फिर घर का दर्द कौन समझेगा।।प्रेरित करती है ये पंक्ति कि चलो मिलकर फिर से घर को घर बनाएं।सकारात्मक सोच पर पहरा देती है ।
ReplyDeleteउम्दा सृजन!!
भावना जी माँ मन की भावनाओं का सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteबधाई!!
बहुत सुन्दर रचना, भावना जी, शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteकविता की गंगोत्री डॉ. सुधा गुप्ता जी को सादर नमन!!
माँ पर भावना जी की भावुक कर देने वाली सुंदर रचना के लिए उन्हें बधाई !
ReplyDeleteसुधा दी घर को जो ज़ज़्बात और अहसास दिए हैं वे मर्म को छू जाते हैं। क्या कहूँ ......शब्दातीत .....निशब्द ! नमन सुधा दी
माँ पर भावना जी की भावुक कर देने वाली सुंदर रचना के लिए उन्हें बधाई !
ReplyDeleteसुधा दी घर को जो ज़ज़्बात और अहसास दिए हैं वे मर्म को छू जाते हैं। क्या कहूँ ......शब्दातीत .....निशब्द ! नमन सुधा दी
काम ख़त्म होते ही / जाने को मचल जाता है / हर इंसान / अपने घर !
ReplyDeleteघर को सार्थक करती कितनी सार्थक बात कही गई है! सुधाजी को साभिनंदन बधाई.
भावना सक्सेना की माँ पर भावुक कविता बहुत भावपूर्ण है, बधाई सुरेन्द्र वर्मा
घर की मनोव्यथा का बहुत सही चित्रण। सच में आजकल घरों को घर होने का सुख तो किश्तों में ही मिलता है। आज के समय में घर अधिकतर मकान ही बन के रह जाते हैं। आ० सुधा गुप्ता जी सादर नमन।
ReplyDeleteमाँ पर लिखी बहुत भावपूर्ण कविता...भावना सक्सेना जी बधाई।
-घर- कविताएँ आदरनीय डॉ सुधा गुप्ता जी की पुनः पढने को मिली . सभी उत्कृष्ट हैं जितनी बार पढो नई लगती हैं बधाई
ReplyDeleteमाँ तो तप का नाम है भावपूर्ण कविता...भावना सक्सेना जी बधाई।
सुधा जी ,घर की व्यथा एक सुन्दर सजीव चित्रण लगा | घरों में रहने वाले ही नहीं रहते, केवल सामान रखने की जगह ही तो बन गए हैं घर |आपको हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteमाँ तो सदा हर ताप सहने को तैयार ही रहती है...| बहुत भावपूर्ण कविता...हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteआदरणीय सुधा जी ने तो घर को लेकर अप्रतिम रचना रच डाली...मन को छू गई सब...| बहुत बधाई...|
माँ को समर्पित सुन्दर कविता भावना जी ..बधाई !
ReplyDeleteघर की 'घर' से 'बेघर' होने तक की व्यथाकथा कहती मर्मस्पर्शी रचनाएँ ...सादर नमन दीदी ..आपको ..आपकी लेखनी को !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा