पथ के साथी

Friday, December 24, 2010

कुछ हाइकु : डॉ0 सुधा गुप्ता

यादें


[ डॉ0 सुधा गुप्ता जी के कुछ हाइकु उन्हीं की हस्तलिपि में ]
ज़ख़्म


13 comments:

  1. सुधा जी की हस्तलिपि देखकर उनके जीनव का एक सुन्दर रूप नज़र आता है..अक्षरों की बनावट व लिखने के ढंग से व्यक्ति का व्यक्तित्व देखा जा सकता है ।
    अब रही बात लिखा क्या है....यह तो सोने पे सुहागा है....
    यादें='यादों की लोई'में कितना दर्द भरा है जब पुरानी बातों ( यादों) को सुनने वाला भी कोई नहीं होता तो .....
    जख्म= गुलाब की फसल/ अपनों के दिए जख्म/ फूलों का बोजा सभी हाइकु एक से बढ़कर एक है जिनमें लिए गए जिन्दगी के बिम्ब हमारी सोच से बहुत ऊपर हैं ।
    सुधा जी की कलम को नमन !

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  2. ... bahut sundar ... prasanshaneey lekhan !!!

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  3. सारी रचनाएँ बहुत सुन्दर ..

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  4. एक एक शब्द अनेकों भाव व्यक्त करता मानो पूरी कहानी ही कह गया... आँसू तो सूखे , आँखें चिरमिरातीं, दर्द की मारी... //
    फफोले उठे गजब की धूप थी नंगे पाँव थे .... // मन की संपूर्ण छटपटाहट कितनी सहजता से इन चंद शब्दों में व्यक्त हुयी है

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  5. उगाई मैंने
    गुलाब की फसल
    हाथ घायल...
    बहुत सुंदर रचनाएँ.
    आपको क्रिस्मस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  6. ज़ख्म हरे हैं
    अपनों ने दिए थे
    नहीं भरे हैं !
    बहुत सुन्दर ! सभी हाइकू लाजवाब हैं ! आपके ब्लॉग पर आना सुखद अनुभव रहा !

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  7. aap ki haathse likhi in panktiyon me ek khushbu hai aap ki ,aap ki soch ki .ek ek shbd hajaron bhav liye huye hai.
    in bhavon se gujarna ek yatra jaesa hai .asim sukhdai yatra.
    saader
    rachana

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  8. haaiku ke saath hin hastlipi mein prakaashan dekhkar aur bhi achha laga, shubhkaamnaayen.

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  9. dr sudha ji
    saare hi hiku bemisaal hain .
    bahut hi sasshakt
    aur bahut hi prbhav purn prastuti.
    aapko nav varshhh ke liye hardik abhinandan.
    poonam

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  10. नववर्ष की ढेरों हार्दिक शुभभावनाएँ.

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  11. सभी हाईकु बहुत अच्छे लगे। सुधा जी की रचनायें हमेशा प्रभावित करती हैं। अपको भी सपरिवार नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।

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  12. बहुत ही सुन्‍दर रचनायें ...बधाई इस प्रस्‍तुति के लिये ।

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  13. बहुत ही अच्छे लगे सुधा जी के हाईकु !
    कुछ तो दिल पर उतर गए…
    ००
    किसे दिखाएं/दिल की टूट-फूट/ मिस्त्री गुम
    ०००
    ज़ख्म हरे हैं/अपनों ने दिए थे/नहीं भरे हैं
    ०००
    भूलता नहीं/एक सूखा गुलाब/ बन्द किताब…

    वाह ! भाई काम्बोज जी, इधर मैं देखता हूँ कि कई लोग बस हाईकु लिखने के लिए ही हाईकु लिख रहे हैं लेकिन उनमें कविता जैसी बात नहीं होती, इनमें विचार और संवेदना का होना भी मैं आवश्यक समझता हूँ जैसे कि सुधा जी के ये हाईकु !

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