पथ के साथी

Saturday, May 18, 2024

1417-भक्ति की महिमा

विजय जोशी

 

- जब भक्ति भोजन में प्रवेश करती है,

भोजन प्रसाद बन जाता है।

- जब भक्ति भूख में प्रवेश करती है,

भूख तेज़ हो जाती है,

- जब भक्ति जल में प्रवेश करती है,

जल चरणामृत बन जाता है।

- जब भक्ति यात्रा में प्रवेश करती है,

यात्रा तीर्थयात्रा बन जाती है,

- जब भक्ति संगीत में प्रवेश करती है,

संगीत कीर्तन बन जाता है।

- जब भक्ति घर में प्रवेश करती है,

घर मंदिर बन जाता है,

- जब भक्ति कर्म में प्रवेश करती है,

क्रियाएँ सेवाएँ बन जाती हैं।

- जब भक्ति कार्य में प्रवेश करती है,

काम बन जाता है कर्म,

और

- जब भक्ति मनुष्य में प्रवेश करती है,

इंसान इंसान बन जाता है।

 

9 comments:

  1. वाह,बहुत सुंदर।हार्दिक बधाई

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  2. आदरणीय रामेश्वर जी 🙏🏽
    आप बहुत स्नेही हैं और आपके स्नेह से मैं अभिभूत हूं। इसमें खुद लिखने जैसा कुछ भी नहीं। सब कुछ पहले से विद्यमान है। केवल जिज्ञासा से उस तक पहुंच कर साझा करने का विनम्र प्रयास मात्र। बतर्ज़ रामचरित मानस :
    सब कुछ प्रभु की प्रभुताई
    मेरी कुछ भी नहीं बड़ाई
    हार्दिक आभार सहित सादर 🙏🏽
    (v.joshi415@gmail.com, 9826042641)

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  3. वाह!सराहनीय विचार 👌
    सादर

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  4. बहुत सुंदर।
    हार्दिक बधाई आदरणीय विजय जोशी जी को

    सादर

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  5. बहुत सुंदर वर्णन। बधाई आदरणीय

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  6. बहुत सुंदर...हार्दिक बधाई।

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  7. बहुत ही सुन्दर।
    हार्दिक बधाई आपको

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  8. बहुत सुंदर

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  9. उत्तम चिन्तन. हार्दिक बधाई.

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