विजय जोशी
- जब भक्ति भोजन में
प्रवेश करती है,
भोजन प्रसाद बन जाता है।
- जब भक्ति भूख में
प्रवेश करती है,
भूख तेज़ हो जाती है,
- जब भक्ति जल में प्रवेश
करती है,
जल चरणामृत बन जाता है।
- जब भक्ति यात्रा में
प्रवेश करती है,
यात्रा तीर्थयात्रा
बन जाती है,
- जब भक्ति संगीत में
प्रवेश करती है,
संगीत कीर्तन बन जाता है।
- जब भक्ति घर में प्रवेश
करती है,
घर मंदिर बन जाता है,
- जब भक्ति कर्म में
प्रवेश करती है,
क्रियाएँ सेवाएँ बन जाती हैं।
- जब भक्ति कार्य में
प्रवेश करती है,
काम बन जाता है कर्म,
और
- जब भक्ति मनुष्य में
प्रवेश करती है,
इंसान इंसान बन जाता
है।
वाह,बहुत सुंदर।हार्दिक बधाई
ReplyDeleteआदरणीय रामेश्वर जी 🙏🏽
ReplyDeleteआप बहुत स्नेही हैं और आपके स्नेह से मैं अभिभूत हूं। इसमें खुद लिखने जैसा कुछ भी नहीं। सब कुछ पहले से विद्यमान है। केवल जिज्ञासा से उस तक पहुंच कर साझा करने का विनम्र प्रयास मात्र। बतर्ज़ रामचरित मानस :
सब कुछ प्रभु की प्रभुताई
मेरी कुछ भी नहीं बड़ाई
हार्दिक आभार सहित सादर 🙏🏽
(v.joshi415@gmail.com, 9826042641)
वाह!सराहनीय विचार 👌
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीय विजय जोशी जी को
सादर
बहुत सुंदर वर्णन। बधाई आदरणीय
ReplyDeleteबहुत सुंदर...हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आपको
बहुत सुंदर
ReplyDeleteउत्तम चिन्तन. हार्दिक बधाई.
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