1-शब्द ?
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
शब्द हमेशा शब्द नहीं होते
ये कभी शीतल नीर होते हैं
किसी बदज़ुबान के हत्थे पड़ जाएँ,
तो ज़हरीले तीर होते हैं
शब्द बहुत कम बन पाते मरहम
अधिकतर छीलते हैं मन की परतें
शब्द क्रूर होते हैं
पीड़ित करके खलनायक- से हँसते हैं
करैत साँप से डँसते हैं।
हम भी किस चमड़ी के बने हैं
कि रोज़ शब्दों की चोट खाते हैं
न जीते हैं, न मरते हैं
ये शब्द जब रिश्तों में बँधकर आते हैं
तब प्राणों के ग्राहक बन जाते हैं
जीभर रुलाते हैं
इनकी चोट के घाव
आत्मा तक को घायल कर जाते हैं।
शब्द केवल शब्द नहीं होते,
जिसके हाथ में होते हैं
उसी का रूप धारण कर लेते हैं
कभी शीतल नीर
कभी नुकीले तीर
कभी रिश्तों की चादर में छुपी शमशीर।
-0-18
दिसम्बर-17
काश ये शब्द केवल शीतल नीर होते ! बहुत ही सुंदर और सार्थक कविता। बधाई भैया
ReplyDeleteशब्दों की अनुभूति को अभिव्यक्त करती बेहतरीन कविता, हार्दिक शुभकामनाएँ सर ।
ReplyDelete'शब्द केवल शब्द नहीं होते'
ReplyDeleteसचमुच ! बहुत अच्छी कविता है 🙏
शब्दों की तासीर को अच्छे से अभिव्यक्त किया है।
ReplyDeleteयह लिखकर आपने आज मुझे हिला दिया | वाणी से निकलकर शब्द वापस नहीं आते |इसलिए हमें वाणी पर नियन्त्रण करना चाहिए |ऐसी वाणी बोलिए जिससे दूसरों का हृदय शीतल हो |बहुत ही हृदय स्पर्शी कविता , ज्ञान से भरपूर और सच्चे अनुभव की पुडिया | बहुत सुंदर विचार |श्याम हिन्दी चेतना
ReplyDeleteजिसके हाथ में होते हैं, उसी का रूप धारण कर लेते हैं, सत्य वचन आदरणीय!! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना... हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteसुंदर रचना भाई साहब बधाई.....सच है....शब्दों के घाव कभी भरते नहीं रिसते रहते हैं नासूर की तरह
ReplyDelete'अधिकतर छीलते हैं मन की परतें...'
ReplyDeleteबेहतरीन कविता-हार्दिक बधाई।
शब्दों की ही जादूगरी है कि हम कभी इससे हाइकु तो कभी कोई अन्य विधा रच देते हैं।
शब्दों को आमंत्रित करके रचने में आपकी महारत को नमन।
आह भी! और वाह भी! नमन आपको एवं आपकी लेखनी को आदरणीय भैया जी!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
कितना सही लिखा है आपने...एकदम मर्मस्पर्शी...बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteसार्थक एवं उत्कृष्ट रचना। शब्द की विभिन्न रूपों में कल्पना,बहुत सुंदर। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteशब्द केवल शब्द नहीं होते,
ReplyDeleteजिसके हाथ में होते हैं
उसी का रूप धारण कर लेते हैं
कभी शीतल नीर
कभी नुकीले तीर.....सदा की भाँति उत्कृष्ट एवं सन्देश देती कविता।सादर प्रणाम।
अत्यंत सार्थक कविता है कम्बोज जी, शब्दों का तीर सा चुभना तो कभी नीर बन बहना और जिसके पास हैं उसी के रूप में ढलना । शब्द मनभावन हों तो प्रेम बरसाते हैं शब्दों की महत्ता को बख़ूबी चित्रित किया है हार्दिक बधाई। सविता अग्रवाल”सवि”
ReplyDeleteगहन भाव सम्पन्न कविता।बहुत-बहुत बधाई आपको।
ReplyDeleteबहुत गहरे भाव लिए कविता।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर, हार्दिक बधाई शुभकामनाएं
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteसही कहा आपने -
शब्द केवल शब्द नहीं होते,
जिसके हाथ में होते हैं
उसी का रूप धारण कर लेते हैं
कभी शीतल नीर
कभी नुकीले तीर
कभी रिश्तों की चादर में छुपी शमशीर।
नमन गुरुवर
बधाई
वाहह... अत्यंत सार्थक भाव में रचित यह कविता..केवल उत्कृष्ट ही नहीं जीवन दर्पण भी है.... इस प्रणम्य लेखनी को पढ़ने का सौभाग्य सदैव मिलता रहे 🌹🙏
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ....नमस्ते बड़े भैया
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