1-अफ़ग़ानिस्तान : कुछ
कविताएँ / हरभगवान
चावला
1.
एक अफ़ग़ान माँ ने
अपनी बच्ची को
कँटीले तारों के ऊपर से
एयरपोर्ट के भीतर उछाला
और चिल्लाकर कहा -
मेरा जो हो, सो हो
यह बच्ची शायद ज़िंदा रहे
बच्ची से अलग होने के बाद
वह माँ क्या कर रही होगी?
रो-रोकर मर गई होगी
या अपनी बच्ची जैसी बच्चियों को
बचाने के लिए लड़ रही होगी?
2.
माँ मुझे हर क़ीमत पर ज़िंदा देखना चाहती है
इसीलिए बुर्क़ा पहनने के लिए मिन्नतें करती है
मैं बुर्क़ा पहनती हूँ, तो मेरी
पहचान जाएगी
बुर्क़ा नहीं पहनती हूँ तो मेरी जान जाएगी
मुझे लगता है कि रोज़-रोज़ मरने से बेहतर है
कि मैं लड़कर मरूँ और मरकर ज़िंदा रहूँ
3.
तालिबान के कंधों पर भारी-भरकम बंदूकें
धर्मांध पौरुष के रुआब की तरह लदी हैं
और अफ़ग़ानिस्तान के कंधों पर अभिशाप की तरह
4.
अफ़ग़ानिस्तान में न डॉक्टर होंगे
न वैज्ञानिक, न इंजीनियर, न वकील
न कलाकार, न दार्शनिक, न लेखक
सिर्फ़ एक अमूर्त मज़हब होगा
और उसकी हिफ़ाज़त में जुटे हत्यारे
किसी भी दौर में, कहीं भी मज़हब
जब मनुष्यों को नियंत्रित करता है
मनुष्यता ख़ून के आँसू रोती है
5.
धर्मांध तानाशाह
किताबें जलाते हैं सबसे पहले
जिसके पास किताब होती है
उसे फंदे से लटका देते हैं
भयावह हथियारों और
सेहतमंद शरीरों के बावजूद
वे किताबों से इतना क्यों डरते हैं
कि किताबों से बिहूना कर देना चाहते हैं
करोड़ों की आबादी का मुल्क
क्या सचमुच बेक़िताब हो जाएगा मुल्क?
कुछ लोग तो ज़रूर होंगे
जो किताबों को उनसे बचाकर रखेंगे
वे किताबों को छुपा देंगे ठीक वैसे ही
जैसे कोई बच्चा छुपाता है अपने कंचे
जैसे नौजवान छुपाते हैं अपनी मुहब्बत
या जैसे किसी पेड़ की दुरूह शाख पर
घोंसले में पंछी छुपा लेता है अपने बच्चे
6.
अफ़ग़ानिस्तान महज़ एक मुल्क नहीं है
कँटीली झाड़ियों से भरा एक भूखंड है
सारे फूल यहाँ कुचल दिए गए हैं
सारी हरी घास उखाड़ी जा चुकी है
यहाँ की धरती साँपों बिच्छुओं से पटी है
यहाँ पाँव धरने का अंजाम सिर्फ़ मौत है
दुनिया के बहुत से हिस्सों में तानाशाह
ऐसे ही भूखंडों के निर्माण में जुटे हैं
ऐसे तानाशाहों पर हम अगर मुग्ध रहे
दुनिया में हर जगह होंगे अफ़ग़ानिस्तान
7.
अफ़ग़ानिस्तान महज़ एक मुल्क नहीं है
यह इतिहास का रक्तरंजित अध्याय है
इस ख़ूनी अध्याय के पन्ने पलटते हुए
उंगलियाँ रक्त से सन कर झुरझुराती हैं
ऐसे अध्याय वहशियों की प्रेरणा होते हैं
मनुष्यता के पक्षधरों के लिए नसीहत
इस अध्याय को पढ़ते हुए जो लोग मज़े से
चटख़ारे लेते हुए उंगलियाँ चाट रहे हैं
उन पर पैनी नज़र रखी जानी चाहिए
ये वही लोग हैं जो मनुष्यता के इतिहास में
ऐसे अध्याय जोड़ने के लिए कसमसा रहे हैं
8.
अफ़ग़ानिस्तान महज़ एक मुल्क नहीं है
यह लाभ-हानि के गणित की बिसात भी है
अफ़ग़ानिस्तान में पसरी चीखों से निर्लिप्त
शासनाध्यक्ष जोड़ घटा गुणा भाग में लगे हैं
कि दरिंदों के समर्थन से क्या हासिल होगा
और कौन सा हासिल विरोध से खो जाएगा
वे विरोध भी करते हैं तो उनका नाम नहीं लेते
शासनाध्यक्षों ने यह गणित गिद्धों से सीखा है
या मुर्दाखोर गिद्धों ने इन शासनाध्यक्षों से?
9.
अफ़ग़ानिस्तान महज़ एक मुल्क नहीं है
यह ख़ूबसूरत दृश्यों की क़त्लगाह है
मज़हबी हुकूमत को शोर नापसंद है
उसे मरघटी सन्नाटा ही अच्छा लगता है
इस हुकूमत में चहकने पर रोक होगी
पेड़ों पर चिड़ियाँ नहीं चहकेंगी
स्कूल जाती बच्चियाँ नहीं चहकेंगी
बाज़ार में घूमते या काम पर आते जाते
मर्द और औरतें नहीं चहक सकेंगे
चहकने पर सज़ा-ए-मौत दी जाएगी
चहकने वालों पर नज़र रखी जाएगी
हालात ऐसे बना दिए जाएँगे कि चहक
सपनों में भी आए तो सिसकी की तरह
चहकते लोग दुनिया भर के तानाशाहों की
आँखों में कंकड़ियों की तरह कसकते हैं
10.
अफ़ग़ानिस्तान महज़ एक मुल्क नहीं है
यह नफ़रत का लावा उगलता ज्वालामुखी है
ऐसे ज्वालामुखी एक जगह तक महदूद नहीं
दुनिया के हर हिस्से में यह लावा धधक रहा है
यक़ीन न हो तो अपने आसपास ही देखिए
आपके कहकहों के शोर में भी गूँज उठती हैं
आग से जले, झुलसे लोगों की चीख़ें, कराहें
मनुष्यता के पक्षधरों को समझना ही होगा कि
विलाप दुनिया के किसी भी हिस्से में हो, कँपाता है
लावा किसी भी ज्वालामुखी से फूटे, जलाता
है
-0-
2- पेड़ों
के बोल / भीकम सिंह
पेड़ों के -
भर उठे बोल
मेह-मेह टेरते ,
सूखी पत्तियाँ रोईं
कोंपलों की आँखें
सिसकी …
सुबकी …
कोयल कूकी
चिड़िया हूकी
फूलों ने
पँखुड़ी झुकाई
पर मेघों को
दया ना आई ।
चुप्पी साधे
सिन्धु तक
पत्तों-पत्तों ने
बात पहुँचाई
सिन्धु चीखा
हुआ खारा-तीखा
बुलाए सारे
काले , सफेद, कपासी
ठाकुर, पंडित, पासी
और फटकार लगाई
सब दो-
हिसाब पाई-पाई ।
नन्हे-नन्हे
मेघों के बच्चे काँपे
कच्छे धोती
बदली के
अच्छे-अच्छे मर्द काँपे
इन्द्र ने
इरादे भाँपे
अपनी
कमजोरी को ढाँपे
सुलह की
अर्जी लगाई
सिन्धु ने
सभा बुलाई ।
नभ में फैले
जो रीते-रीते
लगने लगे
खाते -पीते
हुआ गर्जन-वर्जन
फिर अँधियारा
व्याकुल दिखी
विद्युत धारा
धड़ाम से गिरा
पारा-वारा
पेड़ों की साँस ,
तब -
साँस में आई ।
-0-
विलाप दुनिया के किसी भी कोने में हो, कँपाता है
ReplyDeleteलावा किसी भी ज्वालामुखी से फूटे, जलाता है।
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
चुप्पी साधे
सिन्धु तक
पत्तों-पत्तों ने
बात पहुँचाई ...
उत्कृष्ट रचना।
आदरणीय चावला जी एवं डॉ• भीकम सिंह जी को श्रेष्ठ सृजन की हार्दिक बधाई।
सादर
हरभजन चावला जी - अफगानिस्तान की घटना को आईना दिखाती बेहतरीन कविता-बधाई।
ReplyDeleteअफगानिस्तान आधारित श्रेष्ठ कविताएँ बधाई आदरणीय
ReplyDeleteभीकम सिंह जी की कविता प्रकृति पर बहुत सुंदर
ReplyDeleteयथार्थ परक सुंदर कविताएँ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार 23 ,अगस्त 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हर भगवान् जी की दिल दहलाती सामयिक कविता ने अमिट छाप छोड़ दी है | भीकम जी द्वारा भी सुन्दर सृजन है हार्दिक बधाई दोनों रचनाकारों को |
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति।
ReplyDelete
ReplyDeleteभावपूर्ण समसामयिक कविताएँ ..... चावला जी को हार्दिक शुभकानाएँ
भीकम जी को सुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ
मर्मस्पर्शी भावपूर्ण रचनाएँ... चावला जी हार्दिक शुभकानाएँ।
ReplyDeleteप्रकृति पर बहुत सुंदर रचना... भीकम जी हार्दिक शुभकानाए।
अति उत्तप्त अभिव्यक्ति । मर्म तक प्रज्वलित होती हुई ।
ReplyDeleteश्री चावला जी की अफगानिस्तान पर रचित कविता पढकर मेरा हृदय पिघल गया और मेरी आँखें नम हो गयीं | कहाँ गयी मानवता ? जो हो रहा यह सारी दुनिया देख रही है | यह आग जो भडक रही है वह बहुत भयानक है | कवि ने जो क्रूरता और निर्दयता का चित्रं किया रोंगटे खड़े हो जाते हैं | ऐसी बर्बरता की कहानी पढकर हमें मौन रहकर काम नहीं बनेगा | हमें इसके विरुद्ध आवाज़ उठानी होगी | चावला जी ने हमें एक हथियार दिया है | लेखक ले प्रति मेरी संवेदना और कृतज्ञता है |श्याम -हिन्दी चेतना
ReplyDeleteहरभजन चावला जी की कविताओं ने एक ऐसा शब्द चित्र उकेरा जिसे पढ़कर मन-मस्तिष्क हिल गया. बधाई और साधुवाद अफगानिस्तान की घटनाओं के साक्षी बनाने हेतु। भीकम सिंह जी की रचना प्रासंगिक और चिंतनीय विषय पर अच्छी लिखी गयी है; हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण और मार्मिक कविताएंँ। अफगानिस्तान इस वक्त जिस दर्द और टीस में भरा है उसे केवल वही समझ सकता है।हम तो केवल अनुमान भर लगा सकते है।
ReplyDeleteसमुद्र की सभा और कटघरे में होंगे इंद्र।बहुत खूब।पेड़,पत्तो, चिड़ियों आदि के माध्यम से बारिश ना होने की परेशानी का सुंदर चित्रण।आपको बधाई सुंदर कविताओं के लिए।💐
भावपूर्ण समसामयिक कविताएँ
ReplyDeleteमन को भीतर तक झकझोर गई आदरणीय हरभगवान चावला जी रचनाएँ! इतिहास गवाह है, जब भी किसी देश पर आफ़त आई है, स्त्रियाँ एवं बच्चे भीषण बर्बरता के शिकार हुए हैं। इन मर्मस्पर्शी रचनाओं के सृजन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय!
ReplyDeleteआदरणीय भीकम सिंह जी की कविताएँ भी सुंदर हैं! हार्दिक बधाई आदरणीय!
~सादर
अनिता ललित
चावला जी को हार्दिक शुभकामनाएँ और आप सभी का आभार ।
ReplyDelete
ReplyDeleteअफगानिस्तान आधारित उत्कृष्ट कविताएँ बेहद भावपूर्ण हैं,आँखें नम हो गईं।
हृदय-तल से बधाई आदरणीय हरभगवान चावला जी!
ReplyDeleteप्रकृति पर लाजवाब रचना!
हृदय-तल से बधाई आपको आदरणीय भीकम जी।
अफगानिस्तान पर लिखी कविताओं ने झकझोर दिया | प्रकृति पर लिखी कविता भी बहुत छू गई | आप दोनों को हार्दिक बधाई
ReplyDeleteकृपया इस वेब पेज पर अपनी रचनाएं प्रकाशित कराने हेतु मेल आईडी प्रेषित करने का कष्ट करें।
ReplyDeleteअग्रिम आभार