पथ के साथी

Saturday, June 5, 2021

1107-कहो मुसाफ़िर (पर्यावरण दिवस पर विशेष)

 हरभगवान चावला

 


कितनी बारिश, कितना पानी

या इस बार भी वही कहानी?

कहो मुसाफ़िर!

धरती के मुख का रंग कैसा

वही मनहूस या अब की धानी?

कहो मुसाफ़िर!

बरसों से बारिश को तरसती

ज़िंदा है या मर गई नानी?

कहो मुसाफ़िर!

ढका पेट या पाँव भी ढक गए

कैसे गाँव ने चादर तानी

कहो मुसाफ़िर!

कुछ बदली या अब भी वैसी

हाड़ तोड़ती भूख की रानी?

कहो मुसाफ़िर!

तिनका-तिनका बिखरी बेटियाँ

सलामत हैं कि पिस गईं घानी

कहो मुसाफ़िर!

 

तुम चुप हो और आँख में पानी

तुम्हें देख हम पानी-पानी

समझे फिर से वही कहानी

अब कुछ भी मत

कहो मुसाफ़िर!

               ‌‌‌‌‌-0-

परिचय

जन्म : नवम्ब, 1958

जन्म- स्थान : गाँव बिज्जुवाली, जिला-सिरसा (हरियाणा)

शिक्षा : एम.ए. (हिंदी ), एम.फिल.।

प्रकाशन : पाँच कविता -संग्रह ‘कोई अच्छी ख़बर लिखना ‘, ‘कुंभ में छूटी औरतें ‘, ‘ इसी आकाश में‘, ‘ जहाँ कोई सरहद न हो ‘, ‘इन्तज़ार की उम्र’; एक कहानी संग्रह ‘हमकूं मिल्या जियावनहारा’। सारिका, जनसत्ता, हंस, कथादेश, वागर्थ, रेतपथ, अक्सर, जतन, कथासमय, दैनिक भास्कर, दैनिक,ट्रिब्यून, हरिगंधा आदि में रचनाएँ प्रकाशित। कुछ साझा संकलनों में रचनाएँपुरस्कार/सम्मान : एक बार कहानी तथा एक बार लघुकथा के लिए कथादेश द्वारा पुरस्कृत । कविता संग्रह ‘ कुंभ में छूटी औरतें ‘ को वर्ष 2011-12 के लिए तथा कविता संग्रह ‘ इसी आकाश में’ को 2016-17 के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान ।

सम्प्रति : राजकीय महिला महाविद्यालय, रतिया से बतौर प्राचार्य सेवानिवृत्ति के बाद स्वतंत्र लेखन ।

सम्पर्क :406, सेक्टर-20, हुडा, सिरसा-125055 (हरियाणा)


14 comments:

  1. धरती के मुख का रंग कैसा
    वही मनहूस या अब की धानी?
    ज्वलंत समस्या पर बहुत सुंदर, भावपूर्ण कविता। बधाई

    ReplyDelete
  2. आला दर्ज़े की कविता पढ़ने को मिली।
    शुक्रिया

    ReplyDelete
  3. कुछ बदली या अब भी वैसी ही,
    हाड़ तोड़ती भूख की रानी।

    हृदयस्पर्शी रचना।
    हार्दिक बधाई आदरणीय।

    सादर

    ReplyDelete
  4. बहुत बेहतरीन और प्रवाहमयी कविता है, हार्दिक बधाई |

    ReplyDelete
  5. वाह!!!!
    बहुत ही सुन्दर... लाजवाब सृजन।

    ReplyDelete
  6. सुंदर रचना,बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete
  7. बेहतरीन कविता ।

    ReplyDelete
  8. लाजवाब रचना, हार्दिक बधाई |

    ReplyDelete
  9. चावला जी आपकी हृदय स्पर्शी रचना पढकर मन को शांति मिली |इतने सुंदर भाव कम ही देखने को मिलते हैं | ऐसा प्रतीत होता है कि अब भी आप जैसे कवि इस संसार में हैं जो प्रसाद और पन्त के परिवार से हैं |अति सुंदर ! श्याम त्रिपाठी हिंदी चेतना

    ReplyDelete
  10. सुन्दर सृजन, हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  11. बढ़िया रचना है चावला जी हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  12. लाजवाब सृजन,हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  13. उम्दा रचना. बहुत मार्मिक और भावपूर्ण -

    तुम चुप हो और आँख में पानी

    तुम्हें देख हम पानी-पानी

    समझे फिर से वही कहानी

    बधाई इस सुन्दर सृजन के लिए.

    ReplyDelete