1- हरभगवान चावला
भेड़ें : कुछ कविताएँ
1.
हर भेड़ तक पहुँच जाते हैं
क़ानून के लम्बे हाथ
इन हाथों की पहुँच
हर भेड़िये तक भी होती है
पर लाख सर पटकने पर भी
भेड़ें कभी नहीं समझ पाईं कि
भेड़िये का हाथ क़ानून के हाथ में है
या क़ानून का हाथ भेड़िये के हाथ में।
2.
भेड़ियों ने भेड़ों को खदेड़ दिया
घसियाले मैदानों से बाहर
भूखी-प्यासी भेड़ें खेत-दर-खेत
बंजर धरती पर भटकती रहीं
घास और पानी की तलाश में
और फिर पानी की उम्मीद में
एक-एक कर
सूखे, अंधे कुएँ में कूद गईं।
3.
दुनिया में
कहीं नहीं बची तानाशाही
अब सर्वत्र लोकतंत्र है
और इस लोकतंत्र में
भेड़ें
किसी भी भेड़िये को
शासक चुनने के लिए आज़ाद हैं।
4.
भेड़िया मुख्य अतिथि होता है
भेड़ों के सम्मेलनों में
भेड़ों जैसा ही होता है
भेड़िये का भेस
भेड़ जैसा दीखता भी है भेड़िया
भेड़ें उसकी आरती उतारती हैं
भेड़ें भेड़िये की जात को गालियाँ देती हैं
भेड़िया मुस्कुराते हुए सुनता है
भेड़ें भी मुस्कुराती हैं भेड़िये के साथ
भेड़िया अंततः मंच पर होता है
भेड़ों की तारीफ़ करता
भेड़ों की दुर्दशा पर आँसू बहाता
भेड़ें इतनी प्रभावित होती हैं कि
भेड़िया हो जाना चाहती हैं
भेड़ और भेड़िये का फ़र्क़ मिट जाता है
भेड़ें भेड़िये को देती हैं स्नेहोपहार
भेड़िया आभार जताता है
भेड़िया प्रसन्न है कि क़ायम है
भेड़ों-भेड़ियों के बीच परंपरागत रिश्ता
भेड़ों की इसी निष्ठा पर ही तो टिका है
भेड़िये का साम्राज्य।
5.
बाड़े में अलसा रही हैं भेड़ें
और भेड़िये घात लगाए बैठे हैं
सावधान पहरुए!
आग न बुझने पाए।
6.
भेड़ें गद्गद हैं
कि भेड़िये उनके साथ
एक ही पाँत में बैठ
जीम रहे हैं भोज
पर भेड़ें क्या यह भी जानती हैं
कि भोज में परोसी गई हैं
भेड़ें ही।
7.
भेड़िया भेड़ों की पीठ सहलाता है
बहलाता है उन्हें इस अंदाज़ में
कि भेड़ों को ज़रा सा भी अंदेशा नहीं होता
कि दरअसल वह उन्हें बरगला रहा है
भेड़िये की ज़बान से शहद टपकता रहता है
कभी-कभी टपक पड़ता है भेड़ियापन भी
पर तुरंत ही वह सँभाल लेता है बात
और हालात
भेड़िये की आँखें तेज़ टॉर्च होती हैं
उस टॉर्च की रोशनी में
वह तौलता रहता है
भेड़ों की देह का मांस
अपनी बात ख़त्म करते-करते
वह निर्णय कर चुका होता है
कि कौन सी भेड़ बनेगी
आज रात का भोजन।
-0-
जेठ की दुपहरी/ डॉ.महिमा
श्रीवास्तव
छाया-रामेश्वर काम्बोज-2008
अमलतास से धूप झरती
किरणें रोशनी पर्व मनातीं हैं
आम्रकुंजों में कोकिल कूकता
जामुनों पुरवाई महकाती हैं ।
उन्मुक्त व्योम में विचरता दिनकर
तरुओं की छाँव पाने को मृग विकल,
बेला, चम्पा,
मालती भी कुम्हलाई है
वारिदों की राह तके जग यह सकल।
विरह- पीड़ा से
जिनके उर में ज्वाला
जेठ और भी तपाए तन-
मन सारा,
प्रभंजन उड़ाए धूल, मचाए शोर घोर
कहाँ गए वे ,जिन पर तन- मन वारा।
सुख- दुख का चक्र बताया जाता
चौमासा अब आने को ही तो है,
हरित ओढ़नी पहिने प्रकृति के सँग
बिरहन मन का मीत पाने को है।
-0- चिकित्सक, अजमेर
जीवन की सच्चाई को रेखांकित करता हुआ अति सुंदर व्यंग्य रचना के लिए-हरभगवान जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमहिमा जी की वर्षा ऋतु के स्वागत की कविता भी अच्छी है-बधाई।
रचना का सम्बन्ध अनुभव से भी है ,इसलिए गहन अनुभव से से लिखी बेहतरीन रचनाओं के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteगहन अनुभूति लिए सभी कविताएं, आ.हरभगवान जी को हार्दिक बधाई, महिमा जी की कविता भी खूबसूरत है,, बहुत बधाई💐💐
ReplyDeleteभेड़ों को प्रतीक बनाकर हरभगवान चावला जी ने तंत्र के अंतर्विरोधों को उद्घाटित करते हुए आम जन की नियति और नेतृत्व के शोषक चरित्र को बहुत सुंदर ढंग से चित्रित किया है,चावला जी को बधाई।डॉ.महिमा श्रीवास्तव की कविता में ग्रीष्म का यथातथ्य वर्णन किया है,सहज सी कविता के लिए महिमा जी को बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर एवं गम्भीर रचनाएँ, रचानाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteभेड़ों और भेड़िये को प्रतीक बनाकर शोषित और शोषक वर्ग का बहुत सुंदर चित्रण किया गया है। हर भगवान चावला जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुंदर कविता के लिए महिमा जी को बहुत बहुत बधाई।
हरभगवान चावला जी की विस्तृत फ़लक की कविताएं हैं। वैचारिक दृष्टि से बहुत उम्दा कहन है। बधाई।
ReplyDeleteडॉ. महिमा जी की प्रकृति पर सुंदर कविता। बधाई।
ReplyDeleteहरभगवान चावला जी की प्रतीकात्मक कविता ने समाज की कटु सच्चाई को बयान किया है,शोषक वर्ग के छली स्वभाव का बहुत सुंदर चित्रण। महिमा जी की प्रकृतिपरक कविता भी बहुत अच्छी है।
ReplyDeleteहर भगवान चावला जी की भेड़ कविताओं में गहन अभिव्यक्ति हैं समाज में भेड़ियों का ही साम्राज्य है । महिमा जी को भी जेठ की भरी धूप का सुंदर चित्रण है । दोनो रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteहरभजन जी की रचनाएँ बेहद सामायिक और तीक्ष्ण कटाक्ष करती हैं | सशक्त रचनाओं के लिए बधाई |
ReplyDeleteमहिमा जी ने बहुत मनभावन रचना प्रस्तुत की है, उन्हें भी बहुत बधाई |
सुन्दर रचनाएँ
ReplyDeleteहरभगवान चावला जी ने भेड़ों के माध्यम से बहुत यथार्थपरक और सटीक रचनाएँ लिखी हैं. हार्दिक बधाई आपको.
ReplyDeleteमहिमा जी की रचना बहुत सुन्दर और भावपूर्ण, बधाई आपको.
हरभजन जी की उम्दा गहन रचनाएँ। महिमा जी की बहुत मनमोहक रचना। आप दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteभेड़ें,यथार्थपरक और प्रतीकात्मक रचना, हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteपर भेड़ें क्या यह भी जानती हैं
ReplyDeleteकि भोज में परोसी गई हैं
भेड़ें ही।
प्रतिकात्मक भाषा, गहन अर्थ, व्यंग्य का पुट लिए अत्यंत प्रभावी कविताएँ ! हरभजन सिंह को उत्तम सृजन के लिए बधाई !
डॉ महिमा ने भी प्रकृति के उपादानों का प्रयोग करते हुए भावपूर्ण रचना से प्रभावित किया। बधाई !