1-श्याम त्रिपाठी ( मुख्य सम्पादक -हिन्दी चेतना-कैनेडा)
माँ बनना
आसान नहीं ,
वह हाड -मांस का केवल एक शरीर नहीं ,
वह
जन्मदायिनी , जग में
उससे बढ़कर ,
कोई और
नहीं ।
उनके
हाथों में है भविष्य ,
जो देती
हैं वलिदान ,
जन्मती
हैं , वीर
जवान,
जो एक दिन
बनते है ,
शिवाजी, राणा प्रताप ,
सुभाष और
लक्ष्मीबाई जैसी संतान ।
गर्व का
दिन है मेरे मित्रो ,
करो अपनी
माता का सम्मान,
कितने ही
बड़े हो जाओ ,
लेकिन कभी
न भूलो ,
माताओं के
अहसान ।
भगवान को
मैंने देखा नहीं ,
मेरे
लिए मेरी माँ ही है,
राम ,कृष्ण, जीसस,
मोहमद ,
नानक , बुद्ध सभी
भगवान ।
धन्य
!धन्य ! वह धरती है ,
जिसमें माँ की पूजा होती है,
बालक की
खातिर वह ,
भीगे
वस्त्र पर सोती है ।।
-0-
2-माँ-प्रकृति दोशी
उसकी
मुस्कान देख दिन ढ़ल जाता है....
साँवली
सी शाम को....
उसका दिया
रौशन कर जाता है
सपनों के
उन अँधेरों
में
उसका साथ
ही उम्मीद का उजाला है
ये रूह आज
जी रही है
क्योंकि
उसका ही सहारा है।
सर रख के
उसकी गोद में
रोका आँसुओं को पलकों पे है
क्योकि उस
एक बूँद में ही उसने
अपना जीवन
समेटा है।
मुझे उस
आँगन की कसम है
क्योकि ये
रुस्वाई है
अगर माँ
को मैं भूल जाऊँ
जिसने उस
आँगन में बैठ
तारों की
गिनती करवाई है।
मेरे खाने
के डिब्बे के पीछे
सारा
जमाना मरता है
वो जान है
मेरी
जिसके हाथ
का खाना
मुझे रोज
सताया करता है।
देसी घी ठूँसने के बाद भी
न जाने
उसे क्या हो जाता है
हर वक़्त
उसे मेरे भूखे होने का
सपना ही आ
जाता है।
उसकी उन
चूड़ियों की खनखनाहट
मुझे तबसे
याद है
जबसे उसने
अपने कोमल हाथो से
मेरी पीठ
को शाबाशी का
मतलब
समझाया है।
हाँ कुबूल
लूँ आज मैं
कि जान है
वो मेरी
उस काजल
के लिए जो उसने
अपनी
आँखों से बहाया है।
माँ मुझे
इस प्यार की कसम
जो गले से
तुझ आज न लगाया
उस रोटी
का वास्ता मुझे जिसे तूने
अपनी जली उँगलियों से
खिलाया है।
-0-
माँ बनना आसान नहीं ... bilkul sahi
ReplyDeleteबालक की खातिर वह ,
ReplyDeleteभीगे वस्त्र पर सोती है ।।
बहुत मार्मिक चित्रण .. त्रिपाठीजी को बधाई
उस रोटी का वास्ता मुझे जिसे तूने
ReplyDeleteअपनी जली उँगलियों से खिलाया है।
मेरे खाने के डिब्बे के पीछे
सारा जमाना मरता है
जिसने उस आँगन में बैठ
तारों की गिनती करवाई है।
माँ की ममता को शब्दों में ढालने के लिए प्रकृति जी को बधाई
'माँ बनना आसान नहीं'.....'भगवान को मैंने देखा नहीं,
ReplyDeleteमेरे लिये मेरी माँ ही है ,
राम,कृष्ण,जीसस,मोहम्मद,
नानक बुद्ध,सभी भगवान|'
निस्वार्थ भाव से स्वत:उपजी ममतावश अपना सुख भुला अपने बच्चों की खातिर सब कुछ अर्पण करने वाली माँ से बढ़ कर कोई भी प्राणी इस धरती पर नहीं है इस तथ्य का अहसास कराती और माँ के प्रति अपनी पूर्ण श्रद्धा रखने की चेतना जगाती कविता बहुत ही सशक्त शब्दों की गूँज है |आदरेय त्रिपाठी जी के सच्चे उद्गारों को | प्रकृति की कविता भी अच्छी है |
पुष्पा मेहरा
श्याम जी और प्रकृति दोषी जी दोनों के माँ के प्रति सुन्दर भावों को पढ़कर अपने बचपन के दिन और आज माँ बन कर जो भी महसूस करते हैं सभी एक बार फिर जीवित हो गया मेरे ओर से आप दोनों को हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteमाँ की ममता को शब्दों में पिरो कर सुन्दर रचना की है श्याम त्रिपाठी जी । और प्रकृति दोशी बहुत सुन्दर पंक्तियाँ लगी ...उसकी मुस्कान देख ... ।माँ की कुरबानियों का अनुभव माँ बनने पर ही होता है ।सुन्दर रचना के लिये आप दोनों को बधाई ।
ReplyDeleteश्याम त्रिपाठी जी,प्रकृति दोषी जी सुन्दर सृजन के लिये आप दोनों को हार्दिक बधाई।
ReplyDelete"माँ बनना आसान नहीं ... और ... उस रोटी का वास्ता " माँ को बेहद भाव पूर्ण रचनाओं के माध्यम से स्मरण करती ,माँ के प्रति श्रद्धा व्यक्त करती प्रस्तुति के लिए आदरणीय त्रिपाठी जी एवम् प्रिय प्रकृति के प्रति बहुत-बहुत आभार ..समस्त मातृशक्ति को हार्दिक शुभकामनाएँ !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता त्रिपाठी जी।
ReplyDeleteआपको ढेर सारी बधाई।
सुन्दर सृजन !
ReplyDeleteबालक की खातिर वह ,
भीगे वस्त्र पर सोती है ।।
aur
मेरे खाने के डिब्बे के पीछे
सारा जमाना मरता है
माँ पर बेहद भाव पूर्ण रचनाओं के लिए आदरणीय त्रिपाठी जी एवम् प्रिय प्रकृति को ढेर सारी बधाई।
दिल को छू लेने वाली रचना
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी कविताएँ...हार्दिक बधाई...|
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