पथ के साथी

Friday, September 18, 2015

खामोशी भी हम सुन लेंगे



1-खामोश स्वर
कमल कपूर

अब जब तुम आना तो लाना गीतों वाली वही किताब
जिसके भीतर रख न पाये थे तुम कभी कोई गुलाब।

कुम्हलाये हाथों पे उकेरना मेहंदी के फूल बहुत सारे
और आँचल में भर देना तोड़ गगन के रेशमी तारे।

श्वेत हो चले बालों में गूंथना दूध मोगरे का गजरा
सपनीले नयनों मे आंजना अपनी चाहतों का कजरा।

नहीं ओढ़नी लाल चुनरिया गोटे और किनारी वाली
हमें लुभाती है बस केवल पान रंगे होठों की लाली।

माथे पर बिंदिया की जगह धर देना प्रिय लाल अधर
जैसे सजते सूरज चंदा नीले काले ऊदे नभ पर।

प्रियवर! करना होगा तुमको एक और जरूरी काम
इस शहर के हर दरख्त पर लिखना होगा मेरा नाम।

एक शब्द भी न कहना खामोशी भी हम सुन लेंगे
उन खामोश स्वरों से ही फिर नया हीत एक बुन लेंगे।

(काव्य संग्र भीगी चाँदनी से)

-0-कमल कपूर,२१४४/९सेक्टर,फरीदाबाद१२१००६
हरियाणा-मोबाइल-०९८७३९६७४५५
-0-
2-मंजूषा मन

नशेमन जितने बनाये उजाड़ डाले गए।
खुद अपने ही घर से हम निकाले गए।

बहुत ग़ुरूर है तुमको तो ज़रा ये सुन लो,
एक न एक दिन सितम करने वाले गए।

पत्थर की मूरतों से टकरा के ज़ख्म खाए,
अपने ही कदम न हमसे सँभाले गए।

अपनी पलकों में काँटे तो चुभने ही थे,
ऐसे सपने अगर पलकों में पाले गए।

सख्तियाँ अपने दिल पर न मन कर सके,
न उसके अंदाज़ हमसे देखे -भाले गए।
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3-सुनीता पाहूजा

हिन्दी  हो हम सबके अंतर्मन में,
थी यही बात चहुँ दिश सम्मेलन में

उन्तालीस  देशों से अतिथि पधारे थे
और भी हिन्दी  के प्रेमी यहाँ सारे थे

बधाई! जिन्हें मिला विश्व हिन्दी  सम्मान
हिन्दी  उनका जीवन है, हिन्दी  है अभिमान

भाषण थे - आशाओं भरे, ओजस्वी भी,
अब हम पर है - देखें कितना कार्य  करें

वक्तव्यों,सुझावों की बहार थी
बस हिन्दी  की जयजयकार थी

कहीं सराहना थी, कहीं रोष हुआ
पर हर क्षण हिन्दी  का उद्घोष हुआ

समानांतर चलते रहे अनेक सत्र वहाँ
 कुछ सुना कुछ कहा, कुछ रह भी गया

प्रदर्शनियों में बिखरा था हिन्दी  -ज्ञान
वातावरण में थी हिन्दी  गुंजायमान

रोचक- रोचक इतना कुछ था
कुछ देख लिया कुछ छूट गया

वर्षों से बिछुड़े कुछ मित्र मिले
और कितने ही नए बने

आई टी, पत्रकारिता या  प्रशासन
न्यायालय, विज्ञान या शिक्षण

हर क्षेत्र में हिन्दी  का शोर था
सब कुछ हिन्दी  में सराबोर था

हिन्दी  को मिले जो करनी का रंग
तब होगी सचमुच मन में उमंग

हर ज़ुबान हर घर की बने भाषा
तब संयुक्त राष्ट्र की बनेगी आशा

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सहायक निदेशक,केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो,गृह मन्त्रालय    -
-0-

13 comments:

  1. अब जब तुम आना तो लाना गीतों वाली वही किताब
    जिसके भीतर रख न पाये थे तुम कभी कोई गुलाब।




    अपनी पलकों में काँटे तो चुभने ही थे,
    ऐसे सपने अगर पलकों में पाले गए।


    हर ज़ुबान हर घर की बने भाषा
    तब संयुक्त राष्ट्र की बनेगी आशा

    manbhavan panktiyan sabko hardik badhai...

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  2. कमलजी,मंजुषाजी,सुनीताजी बहुत सुंदर कविताएँ ।बधाई।

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  3. sbhi kvitaa sundr shashkt haen

    कमलजी,मंजुषाजी,सुनीताजी बधाई।

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  4. अरे वाह ! आज तो शब्दों और भावों की विविधता ने मन मोह लिया | कमल जी, सुनीता जी , मंजू जी , सुंदर सृजन के लिए बधाई |

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  5. बहुत खूबसूरत और गहन भाव...

    अब जब तुम आना तो लाना गीतों वाली वही किताब
    जिसके भीतर रख न पाये थे तुम कभी कोई गुलाब।


    नशेमन जितने बनाये उजाड़ डाले गए।
    खुद अपने ही घर से हम निकाले गए।


    हर ज़ुबान हर घर की बने भाषा
    तब संयुक्त राष्ट्र की बनेगी आशा

    कमल जी, मंजूषा जी और सुनीता जी को बहुत बधाई.

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  6. कमल कपूर जी ,मंजूषा जी और सुनीता जी भावात्मक रचनाएं हैं हार्दिक बधाई |

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  7. आप सभी का हार्दिक धन्यवाद!

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  8. आप सब की अच्छी अच्छी रचनाएँ पढ़कर मैं भी प्रेरित हो जाती हूँ और कलम यूँ ही चल पड़ती है। मन बहुत आनंदित हो जाता है आप सबको पढ़कर, सच!
    साभार

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  9. बहुत सुन्दर सभी रचनाएँ....कमल जी, मंजूषा जीऔर सुनीता जी बहुत बधाई।

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  10. कमल जी,मंजूषा जी व सुनीता जी आप तीनों ने शब्दों की गागर
    में भावों के सागर भर दिए।
    बहुत बधाई।

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  11. बहुत सुन्दर रचनाएँ सभी ! कमल जी , मंजूषा जी एवं सुनीता जी को हार्दिक बधाई !!

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  12. अब जब तुम आना तो लाना गीतों वाली वही किताब
    जिसके भीतर रख न पाये थे तुम कभी कोई गुलाब

    बहुत ग़ुरूर है तुमको तो ज़रा ये सुन लो,
    एक न एक दिन सितम करने वाले गए

    हर ज़ुबान हर घर की बने भाषा
    तब संयुक्त राष्ट्र की बनेगी आशा

    कमल जी, मंजूषा जी एवं सुनीता जी तीनों को सुन्दर सुन्दर रचनाओं के लिये बहुत-बहुत बधाई

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  13. बहुत मनभावन रचनाएँ हैं...| आप तीनो को हार्दिक बधाई...|

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