1-पहाड़ों का दर्द
सुनीता शर्मा
महत्वाकांक्षी मानव के अहंकार देख
बदहाल पहाड़ अब रोता
ही नहीं
बारिश भी उसका
अंतर्मन भिगो नहीं पाती ,
औ उसके फेफड़ों में
जमने लगी दर्द की झील ,
जो कालांतर में कहर
बरपाएगी जरूर ,
चूँकि तुम्हारा जीवित होना ही उसकी मृत्यु है ,
तो इन दरकते पहाड़ों
की मृत संवेदनाओं ने ,
वेदनाओं में जीना
सीख लिया है शायद ,
ममता के आँगन पहाड़
पर हे मानव !
खनन में मगन तूने
अपने अस्तित्व को
अंतहीन खतरे में
डाल ही दिया है,
पूर्वजों के पूजे-सँवारे पहाड़ों की सम्पदा बेचकर
तेरा जीवन मद की
भेंट चढ़ ही जाएगा ,
और कालांतर में बाढ़
का उग्र वेग
बहा ले जाएगा तेरे वीभत्स अरमानो को ,
तेरे अहंकार की
बढ़ती मीनारों को ,
तब हे मानव ! तेरा
अस्तित्व !
अँजुली भर मीठे
पानी को तरसेगा ,
क्योंकि अभी नदी
तेरे लिए नाला भर है ,
जिसमें तू बहाता
अपने तन-मन के अवसादों को ,
उन जहरीली नदियों में जीवन का आधार ढूँढ लेना तुम ,
वृक्ष रहित बंजर
पर्वत पर कैक्टस के उपवन उगा लेना तुम !
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2
- केदारनाथ आपदा
सुनीता शर्मा
समय कहाँ कब
किसी के लिए ठहरता है ,
थम जाती हैं
यहाँ केवल साँसें ,
प्राकृतिक हों
या कृत्रिम ,
रूह की देह को
त्यागने की परंपरा ,
फिर ब्रह्मलीन हो जा जाना ,
जहाँ शायद वेदनाओं की ,
पाषाणी धरती न हो ,
केदार घाटी की भाँति जो ,
पत्थरों का शहर बन गया ,
प्यासी रूहें भटक रही है ,
अपनों की तलाश में ,
जीवन की आस में ,
जैसे हर पत्थर के नीचे
लिख दी गई हो
दम तोड़ती तड़पती
अनगिनत मार्मिक दास्तान ,
जिनका इतिहास भूगोल ,
जानने के लिए फिर
असंख्य बेरोजगारों को
रोजगार मिल ही जाएगा
,
क्योंकि आपदा का असर ,
लोगों के जेहन में
साल छह माह ही रहता है ,
फिर समय चक्र में सबको सब ,
भुलाने की विवशता ही तो है ,
पुराने दर्द पर मरहम बोझ लगने लगता है ,
हर पल नवीन हादसों का इंतज़ार करती ,
मानवता वक़्त के साथ ढलती जाती हैं ,
वेदनाओं के नए सफर के लिए ।
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आदरणीय सर रामेश्वर हिमांशु जी आपने अपने सुप्रसिद्ध सहज साहित्य में मेरी रचनाओं को सम्मिलित कर आपने मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया ,बहुत बहुत आभार प्रणाम । उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि ये सुधि पाठकों को रुचिकर लगेगी ।
ReplyDeletemarmik samvedanshil ...
ReplyDeleteरचना के मर्म समझने व अपनी बहुमूल्य विचार देने हेतु हृदय से सादर नमन सुनीता जी |
Deleteसुनीता जी ने अपनी इन दोनों कविताओं में पहाड़ों का दर्द बहुत गहनता से चित्रित किया है। इन कविताओं में उठाई गई समस्या केवल चिन्तित ही नहीं करती बल्कि भयभीत भी करती है। तात्कालिक लाभ की कीमत पर हम आने वाली पीढ़ियों का भविष्य उजाड़ रहे हैं।
ReplyDeleteSavedandhel, shikashaprd rachnayen bahut bahut badhai...
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteमार्मिक चित्रण।बहुत सुंदर।
ReplyDeleteBahut sundar!
ReplyDeletebahut sundar ,marmik v samvedansheel kavitaayen....sunita ji ko naman ke saath -saath badhai.
ReplyDeleteसुन्दर एवं सार्थक रचनाएँ
ReplyDeletesatya ko ujagar karati kavitayen , ane vale purn vinash ko anadekha kar vikasonmukh kadam hamein jitana bhaybhit karte ja rahe hain vahin sukh- suvidhaon ki xudha hamari ankho mein parda dal rahii hai. kavi jagrit ka vahak hai jo matr kalpnik star
ReplyDeletepar, sambhavnaon par hi jeevit rahta hai, hamako milane vali suvidhayen aur arjit dhan ki pyas prakriti ka dohan karane mein jab tak lagi rahegi tabtak prakriti ke sabhi ang svayam peedit rahenge sath hi jeevn -jagat ko rulayenge.humare vastr phat jate hain to hum naye vastr le ate hain isi tarah anya cheejen bhi juta lete hain to phir apai vansampda aur pahadon ko loot kar phir unaki or mud kar nahin dekhate . jab ham chetan hokar unaki rktata nahin bharana chahate to hamari samvedansheel maun prakriti bina bole pratishodh karegi,karati bhi rahi hai. hami jzarooraton ka havala dekarvikas-path par vinash ka tandav dekhne par amada hain .kyonki kisi bhi achhe-bure karm ka phal turant nahin samay ane par hi milata hai sunita ji apaki kavitayen padh kar mere man men vikas ke us mafiya ke prati. akrosh jaga jinaka hum kar bhi kuchh kar nahin pate.vikas -vikas-vikas,isaki dharaon mein uphan marata shiraon mein dhiire -dhiire phailata vish.......yahi meri prtikriya hai.ek sandesh deti kavtayen sunder. badhai.
pushpa mehra.
मर्मस्पर्शी, सार्थक रचनाएं!
ReplyDeleteयथार्थ चित्रण करती कविताएँ । बधाई
ReplyDeleteमानव को पर्यावरण के प्रति सचेत करती संवेदनशील रचनाएँ !
ReplyDeleteसुनीता शर्मा जी को बहुत - बहुत बधाई !
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत मार्मिक रचनाएँ...सीधे संवेदना के तार झंकृत करती हुई...| बहुत बधाई...|
ReplyDeleteसंवेदनशील हृदय ही दर्द को परिभाषित कर सकता है ।चाहे इन्सान का हो या जल थल या पहाड़ का ।आने वाली प्रकृतिक आपदायों की संभावना से मानव ना चेता तो इस का मुआबजा आने वाली पीढ़ी को तो भुगतना ही पड़ेगा ।बहुत सुन्दर मार्मिक रचना वधाई सुनीताशर्मा जी को ।
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