नवगीत
रमेश गौतम
आज भी ‘गोदान’ जैसी हैं
किसानों की कथाएँ ।
चार बीघा खेत
उल्कापात, ओले, आग–पानी
है खुले आकाश में
अस्तित्व की पूरी कहानी
अन्नदाता की हथेली
हैं यथावत् आपदाएँ ।
क्या करें मौसम हठीला
रंगदारी माँगता है
खंज़रों की नोक पर
फसलें सुनहरी टाँगता है
लूट कर सारा खजाना
ले गइ निर्मम हवाएँ ।
अब व्यथा इनकी कहें क्या
रह गए हैं प्राण आधे
राज–रजवाड़े सभी
बैठें हुए हैं मौन साधे
दफ्तरों की सीढि़याँ
चढ़तीं–उतरतीं वेदनाएँ ।
खेल
क्षतिपूर्ति का अब
बाजीगरों ने मूँछ ऐंठी
कृषकों की कुण्डली में
लालफीता शाही बैठी
आँकड़ों की खीर चखतीं
खूब जन–धन योजनाएँ ।
एक मुठ्ठी सांत्वना को
फिर यहाँ ‘होरी’ भटकता
हार कर फिर मौन हा–हाकार
सूली पर लटकता
लापता हैं राजधानी से
सभी संवेदनाएँ
-0-
रमेश गौतम
रंगभूमि 78–बी, संजय नगर, बरेली।
( चित्र:गूगल से साभार)
मर्मस्पर्शी नवगीत !
ReplyDeleteकृषक और कृषि की व्यथा कथा को खूब कहा आदरणीय !
एक मुठ्ठी सांत्वना को
फिर यहाँ ‘होरी’ भटकता
हार कर फिर मौन हा–हाकार
सूली पर लटकता
लापता हैं राजधानी से
सभी संवेदनाएँ.......सामयिक , सुन्दर ,प्रभावी प्रस्तुति !!
सादर नमन के साथ
~ ज्योत्स्ना शर्मा
आज भी ‘गोदान’ जैसी हैं
ReplyDeleteकिसानों की कथाएँ । युग बदले, सरकारें बदली किन्तु कृषकों की व्यथा नहीं बदली | ना जाने यह कैसा गणतंत्र है | गौतम जी को बहुत पढ़ा है और उनसे सीखा भी |
उनकी लेखनी को नमन एवं आभार काम्बोज जी |
bahut sundar samayik geet , lekhni ko naman hardik badhai
ReplyDeletesadar
shahsi purwar
आज भी ‘गोदान’ जैसी हैं
ReplyDeleteकिसानों की कथाएँ ।bada hi shakt arambh ....samyik marmsparshee navgeet...aur ant bhi bada hi nirala.एक मुठ्ठी सांत्वना को
फिर यहाँ ‘होरी’ भटकता-
हार कर फिर मौन हा–हाकार
सूली पर लटकता
लापता हैं राजधानी से
सभी संवेदनाएँ..aadarniy.gautam ji. naman hai aapki lekhni ko.
सचमुच! शहरों के घरों में बैठे हम लोग नहीं समझ पाते इन मेहनती किसानों के दुखों को!
ReplyDeleteइस मार्मिक नवगीत ने मन भिगो दिया!
आ. रमेश गौतम जी व उनकी लेखनी को नमन!
~सादर
अनिता ललित
मार्मिक नवगीत!
ReplyDeleteश्री गौतम जी को नमन!
बहुत मर्मस्पर्शी नवगीत!
ReplyDeleteआ. गौतम जी की लेखनी को नमन!
सादर
कृष्णा वर्मा
आप सभी आ. साहित्यधर्मी मित्रों ने मेरे नवगीत की संवेदना के साथ अपनी संवेदना बांटी बहुत
Deleteआभारी हूँ भाई काम्बोज जी को हार्दिक धन्यवाद इतने सुन्दर रूप में गीत प्रकाशित किया शुभकामनाएं
नमिता राकेश, फ़रीदाबाद द्वारा मेल से भेजी प्रतिक्रिया-
ReplyDeleteआदरणीय रमेश गौतम जी का बहुत मार्मिक नव गीत है , "होरी" का उल्लेख कर के गीतकार ने अत्यंत सहज ढंग से स्पष्ट कर दिया है कि किसान की दशा आज भी जस की तस है.... बधाई
सादर, नमिता राकेश
namita.rakesh@gmail.com>:
mausam ki mar, karZ aur shasak varg ki samvedan shunyata aj bhi kisan ko maut ka fanda dikhati hai samay badalta suvidhayen badalati hain kintu kisanon ki sthiti aj bhi 'hori'jaisi batate navgeet ka shabd- shbd marm ko chhu raha hai.gautam ji
ReplyDeleteapaki sashakt lekhani ko naman.
pushpa mehra .
कितनी मार्मिक...आँखे डबडबा आई पढ़ते हुए ही...| इतने गहन चित्रण के लिए मेरी बहुत बधाई...|
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